अजीमगंज की जैन पाठशाला का नाम पवन कुमारी ज्ञान मंदिर था। श्री परिचंद जी बोथरा परिवार ने अपनी माँ एवं प्रसन्न चंद जी बोथरा की धर्मं पत्नी के नाम से नाम से इस पाठशाला की स्थापना की गई थी।
इस पाठशाला में कक्षा शिशु से ५ वीं तक हिंदी, गणित एवं धर्म की पढाई होती थी। प्रख्यात विद्वान महोपाध्याय श्री हेमचंद जी यति के शिष्य करमचंद जी एवं प्रशिष्य श्री कीर्ति चंद जी इस जैन पाठशाला में धार्मिक अध्ययन करवाते थे. दोनों ही संस्कृत के अधिकृत विद्वान् थे एवं शुद्ध उच्चारण पर बड़ा जोर देते थे। मुख्य रूप से यहाँ सामायिक, चैत्यवंदन एवं बाद में प्रतिक्रमण सिखाया जाता था। विशिस्ट विद्यार्थियों को भक्तामर, कल्याण मंदिर आदि स्तोत्र भी सिखाया जाता था.
परीक्षा लेने के लिए शहरवाली समाज के ही धार्मिक विद्वानों को बुलाया जाता था। यति जी स्वयं परीक्षा नहीं लेते थे जिससे निष्पक्षता बनी रहे. प्रायः मेरे परिवार के लोग ही परीक्षक के रूप में उपस्थित रहते थे। स्वनाम धन्य विद्वान् श्री रणजीत सिंह जी दुधोडिया लम्बे समय तक इसकी व्यवस्था सँभालते रहे।
अजीमगंज में रहने वाले लगभग सभी लोग इस पाठशाला में पढ़ते थे परन्तु सत्तर के दशक से इसमें उपस्थिति बेहद कम होने लगी थी। धार्मिक शिक्षण के प्रति लोगों का रूझान कम होने लगा था एवं विद्यालयीन शिक्षा की ओर झुकाव बढ़ रहा था। उस समय नव स्थापित महावीर मंडल ने पाठशाला को पुनरुज्जीवित करने का सार्थक प्रयास किया एवं कुछ वर्षों के लिए छात्र संख्या भी बढ़ी थी। परन्तु यह प्रयास भी लम्बे समय तक पाठशाला को जीवित नहीं रख सका एवं अंततः यह बंद हो गया।
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(Vardhaman Gems, Jaipur represents Centuries Old Tradition of Excellence in Gems and Jewelry)
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