Monday, March 30, 2009

रीति रिवाज़: सिलामी व व्याह १


लड़का लड़की के बड़े होने पर लगभग माँ बाप या घर के बड़े शादी तय करते थे। अक़्सर लड़का या लड़की ख़ुद पसंद नही करते थे। शादी में खानदान को बहुत महत्व दिया जाता था पैसे को नहीं। खानदान के अलावा लड़की का चाल चलन और सुन्दरता को महत्व देते थे। अगर थोडी उमर होने के बाद व्याह होता था तब लड़के की कमाई देखी जाती थी। लड़के की सुन्दरता को ज्यादा महत्व नही दिया जाता था। व्याह के पहले लड़के लड़की की कुंडली जरूर मिलवाई जाती थी और कुंडली मिलने पर ही सम्बन्ध किया जाता था नही तो नहीं। अजीमगंज में खानदानी पंडित जी थे। कुछ समय पहले तक पंडित देव नारायण जी शर्मा थे, जो ज्योतिष के अच्छे जानकर थे। उस समय पंडित जी के खाते में अजीमगंज-जियागंज व आसपास के जैन, पांडे व नाइ के यहाँ होने वाले प्रत्येक व्यक्ति के जन्म का व्यौरा रखा जाता था।

व्याह पक्का होने के बाद किसी भी कारण से छोड़ा नहीं जाता था। पक्का होने के कुछ दिन बाद सगाई की जाती थी जिसे शहरवाली में सिलामी पड़ना बोलते थे। सिलामी में सवा मन दूध और मिश्री लड़की वाले लड़के वाले को भेजते थे जिसे पुरे समाज में बांटा जाता था। सिलामी में विशेष लेन देन का रिवाज़ नहीं था।


रीति रिवाज़: सिलामी और व्याह भाग २ 
ज्योति कोठारी 


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रीति रिवाज़: खीर चटाई व मुंडन

 शहरवाली समाज में अन्नप्राशन  को खीर चटाई कहते थे. इस के अपने रीति रिवाज़ थे.

बच्चा अन्न खाने लायक होता था तब शुभ मुहूर्त में चांदी के कटोरे चम्मच से खीर चटाई करवाते थे। चांदी शुभ माना जाता है और स्वास्थ्यप्रद भी है। उससे पहले कोई अन्न बच्चे को नही देते थे। खीर चटाई के उपलक्ष्य में कार्यक्रम होता था। खीर चटाई भुआ करवाती थी।

मुंडन: तीसरे या पांचवें साल में बच्चे का मुंडन होता था। उस समय बाजे के साथ बच्चे को लेकर कुलदेवता, भैरव जी, माता जी आदि (जिनके घर का जो रिवाज़ हो) के यहाँ ले जा कर मुंडन करवाते थे वहां तेल सिन्दूर आदि चढाया जाता था। बच्चे को मन्दिर दर्शन करवा कर गुरु जी के पास बासक्षेप डलवाते थे और बच्चे को अक्षर ज्ञान करवाते थे। उस समय यती जी को ही गुरु जी कहा जाता था। यतीजी स्लेट में पेंसिल से ॐ नमो सिद्धं लिखवाते थे। मुंडन का विशेष महत्वा था और उस समय ख़ास उत्सव होता था। 


रीति रिवाज़: सिलामी और व्याह भाग २ 
ज्योति कोठारी 

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कुछ रीति रिवाज़: जापा और जनम


शहरवाली में जनम से ले कर मृत्यु तक अनेकों रीति रिवाज़ प्रचलित थे। वहां लगभग हर घर में जापा घर होता था एवं बच्चे का जन्म वहीँ होता था। दाई जापा करवाती थी। वोही जच्चा बच्चा को कड़वे (सरसों) तेल से मालिश करती थी। वहाँ कड़वे तेल का दीपक २४ घंटे जलता रहता था। उस दीपक से काजल बना कर जच्चे बच्चे को लगाया जाता था। दरवाजा और खिड़की बंद रहता था। एक महीने तक उस कमरे में कोई भी मर्द नहीं जाता था एवं जच्चा बच्चा बाहर नहीं निकलता था। कोई भी ठंडा चीज यहाँ तक की कच्चा पानी भी नही पीने देते थे।
कभी दाई से जापा नही करवाने पर अस्पताल में भी जापा होता था तब पालकी में बैठा कर अस्पताल ले जाते थे और अस्पताल से वापस आ कर फिर उन्हें जापा घर में ही रखा जाता था।

जापे का खाना अलग बनता था जिसमे सौंठ, अजवायन, गोन्द, मखाने, बादाम और घी का बहुत प्रयोग होता था। जच्चे को अछ्वानी और बच्चे को जनम घुंटी दिया जाता था। साँची पान में छुहारा और अजवायन डाल कर जच्चे को खिलाया जाता था। बिमारी होने पर कबिराजी (वैद्यकी) दवाएं दी जाती थी। कम से कम ६ महीने तक बच्चे को माँ का दूध ही पिलाया जाता था।

बच्चा एक महीने का होने पर मन्दिर में स्नात्र पूजा करवाया जाता था। माँ व बच्चे को सब से पहले मन्दिर ले जा कर दर्शन करवाया जाता था। एक महीने बाद स्नान कर के जब बच्चा बाहर आता था तब माँ को लाल साड़ी व ओधनी पहना कर नेक चार किया जाता था। नेक चार में नाइन व पड्यानी की बहुत भूमिका होती थी। लड़के का एक महिना और लड़की होने पर सवा महीने का सूतक रखा जाता था।

पंडित जी से कुंडली बनवाई जाती थी और कुंडली के अनुसार नाम रखा जाता था। देव नारायण शर्मा वहां के प्रसिद्ध पंडित थे,जो ज्योतिष के अच्छे जानकर थे। उस समय पंडित जी के खाते में अजीमगंज-जियागंज व आसपास के जैन, पांडे व नाइ के यहाँ होने वाले प्रत्येक व्यक्ति के जन्म का व्यौरा रखा जाता था। यह एक प्रकार से जन्म की रजिस्ट्री होती थी जिसे कोर्ट में भी मान्यता प्राप्त थी। आवश्यकता होने पर इस खाते को कोर्ट में पेश किया जाता था। मैंने ये खाते देखे हैं जिनमें लगभग संवत १८४० से २००० अर्थात इस्वी सन १७८५ से ले कर १९५५ तक के सभी जन्म का संक्षिप्त व्यौरा दर्ज है। इसमें पिता का नाम, जन्म का समय, तारीख, संवत, नक्षत्र व संतानोत्पत्ति का क्रम दर्ज है।

छूना (M.C) होने पर भी जनाना लोग जापा घर में रहती थी। वहां पर इस चीज का बहुत विचार था।

रीति रिवाज़: सिलामी और व्याह भाग २ 
ज्योति कोठारी 

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Thursday, March 26, 2009

Chaturmas Shashiprabha Shreeji

Chaturmas of sadhvi Shashiprabha Shreeji is decided for Azimganj. Shashiprabha shreeji is learned desciple of late Pravartini shree Sajjan shreeji maharaj.
This is likely to be announced in Dadaguru Mahapujan at Dadabari, 29, Badridas Temple Street, Kolkata 700004, organized by Azimganj Shree sangh on April 1, 2009, as reported by Suraj Nowlakha.

Dadaguru Mahapujan will be followed by sadharmi vatsalya.

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Thursday, March 12, 2009

Gems and Jewelry in Shaharwali society

It is believed that Jagat Seth had best quality emeralds in their possession. There is a dialect about how did he acquire emeralds. It is told that merchant envoy of Jagat Seth was in a voyage, and sold all his merchandise. While returning the captain felt that the ship is too light and could not face storm. They put boulders of stones in the ship to make it heavy.

When back to home they found those boulders emeralds. It is a known fact among the Jewelers that those are the best emeralds in the world but of Jahangir's cups.

View: Researching the Emerald city

Bahadur Singh Singhi of Singhi family was fond of diamonds. He had great collection of flat diamonds i.e. Parava, Polki and English Polki. He was the main person behind the famous diamond studded "Angi" of shree Dharmanath Swami, Tulapatti Jain temple, Kolkata. It is believed that all flat diamonds studded in that Angi are flawless.

The Dugar family also loved Gems and Jewelry a lot. There was a great collection of Kundan Meena Jadau Jewelry and solitaires with Maharaj Bahadoor Singh Dugar and other members of that family. It is believed that the family was at a time in possession of a bangle pair of Begum of Alauddin Khiljee, Badshah of Delhi.

Raja Bijay Singh Dudhoria, Rai Budh Singh Dudhoria, Nirmal Kumar Singh Nowlakha, Sitab Chand Nahar families also have excellent collection of Gemstones, Basra Pearls and diamond and Kundan Meena Jadau Jewelry in their collections.

Many other Shaharwali families also had nice collections of Precious Gemstones, diamond and Kundan Meena Jadau Jewelry. Mursheedabad Meena is supposed to be the best Meena (Enamel) in the world.

Shaharwali society had very good relationship with Johari Sath, the Jewelers community in Kolkata and purchased awesome collections of Gemstones and Jewelry from them.

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Monday, March 2, 2009

पहेलियाँ

शहरवाली साथ में कुछ पहेलियाँ काफ़ी प्रचलित थी। इन्हे मैंने अपनी माँ, दादीमा आदि से सुना है। आप के लिए उनमे से कुछ यहाँ लिख रहे हैं। इनका उत्तर यहाँ नहीं दे रहें हैं ताकि आप इसका उत्तर ढूंढने की कोशीश करें।
यदि आप को भी कुछ याद हो तो हमें अवश्य लिखें।

हरी थी मन भरी थी , नव लाख मोती जडी थी,
राजा जी के बाग में, दुशाला ओढे खड़ी थी।

कटोरे पे कटोरा, बेटा बाप से भी गोरा।

दौडे दौडे गए दो, थम्ब गाड़ आए ,
बड़े मिया गिर पड़े, हम झट भाग आए।

मारा ना खून किया, बीसों का सर काट दिया।

एक अचम्भा मैंने देखा, मुर्दा रोटी खाए,
बोलें तो बोले नहीं, पीटो तो चिल्लाये।

६. आया लटकन, दिया पटकन.

७. जल मछली जल मछली, जल में करे वासा
हाथ नहीं पाऊँ नहीं, करे तीन तमाशा.

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