अजीमगंज में नवपद मंडल पूजन की परम्परा
अजीमगंज में श्री नवपद मंडल पूजन की बहुत पुरानी परम्परा रही है। वर्तमान में प्रति वर्ष आश्विन शुक्ल पूर्णिमा अर्थात नवपद ओली के अंतिम दिन यह पूजा श्री नेमिनाथ जी के बड़े मंदिर में पढ़ाई जाती है। नवपद अर्थात सिद्धचक्र। यह पूजा सिद्धचक्र महापूजन से मिलती जुलती है। लेकिन उससे कुछ भिन्नता लिए हुए है. अजीमगंज में यह पूजा चैत्र मॉस में करवाने का रिवाज़ नहीं है परन्तु इस वर्ष परम पूज्या सुलोचना श्री जी महाराज की उपस्थिति के कारण नवपद मंडल पूजन चैत्र शुक्ल पूर्णिमा को भी करवाया गया था .
नवपद मंडल पूजन की परंपरा संभवतः बीकानेर से यहाँ आई। महा विद्वान यति ज्ञानसार जी द्वारा बीकानेर में नवपद मंडल का उल्लेख मिलता है एवं वे तत्कालीन श्री पूज्य श्री जिन सौभाग्य सूरी के आज्ञानुवर्ती थे. श्री जिन सौभाग्य सूरी का मुर्शिदाबाद से घनिष्ठ सम्वन्ध रहा है।
मंडल जी की पूजा पहले श्री सम्भवनाथ स्वामी का मंदिर, अजीमगंज, में दुगड़ परिवार द्वारा करवाई जाती थी. श्री हरख चन्द जी रूमाल ने सर्व प्रथम यह पूजा श्री नेमिनाथ जी के मंदिर में प्रारंभ करवार्इ. तबसे यह पूजा यहीं पर होती आ रही है। अधिकांशतः मंडल जी की पूजा संघ द्वारा करवाई जाती है लेकिन कभी कभी यह पूजा व्यक्ति विशेष के द्वारा भी करवाने की परंपरा है। प्रायः कर के ओली जी पारने वाले लोग यह पूजा करवाते हैं .
मंडल जी की पूजा यहाँ बहुत ही धूम धाम व ठाट वाट से होती है जिसमे एक विशाल चोकी पर कपड़ा बिछा कर उसमे भिन्न भिन्न रंगों के चावल से मांडला किया जाता है। फिर शुभ मुहूर्त में चांदी की बनी हुई चिट्ठी रख कर अरिहंत आदि नवपद एवं देवी देवताओं का आह्वान किया जाता है। इसके साथ ही शुभ मुहूर्त में ज्वारारोपण आदि किया जाता है। ये सभी काम पूजन के तीन चार दिन पहले कर लिया जाता है। पूजन के दिन सुबह से ही धूम मची रहती है। नवपद जी की ओली करनेवाले लोग पूजा के लिए तैयार हो जाते हैं। पुरे शहर के सभी क्षेत्रपालों को तेल सिन्दूर चढ़ाया जाता है। बलि बाकूल, भूमि शुद्धि, अंग शुद्धि, आत्मा रक्षा आदि के बाद मूल पूजन का विधान प्रारंभ होता है।
सबसे पहले सिद्धचक्र के ९ पदों में गोला चढ़ाया जाता है। सूखे नारियल के गोले के अन्दर घी, मिश्री, आदि भर कर उस पर नवपद के वर्णों के अनुसार रंग किया जाता है। श्वेत एवं पीले वर्ण के लिए चांदी एवं सोने का वर्क चढ़ाया जाता है जबकि लाल हरे एवं नीले में रंगों का प्रयोग होता है। इन सुसज्जित गोलों को चांदी के सिंहासन पर विराजमान कर उसमे वर्णानुसार रत्नों की पोटली रखी जाती है। फिर इन ९ गोलों को क्रम से मंत्रोच्चार एवं प्रदक्षीना पूर्वक मंडल पर चढ़ाया जाता है। शहरवाली समाज में नवपद मंडल पूजन विशेष कर गोला चढाने का बहुत अधिक महत्व रहा हुआ है। गोला चढ़ने के बाद अन्य वलयों की पूजा प्रारंभ होती है। यह पूजा ५-६ घंटों के लम्बे समय में पूरी होती है। इस पूजन में बहुत बड़ी मात्र में मिष्टान्न एवं फल चढ़ाया जाता है। ओली करने वाले पूजा सम्पूर्ण होने के बाद ही आयम्बिल करते हैं एवं आयम्बिल करने का समय साम तक ही मिल पाता है। इस दिन बहुत लोग ९ दाने का ही आयम्बिल करते हैं।
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(Vardhaman Gems, Jaipur represents Centuries Old Tradition of Excellence in Gems and Jewelry)
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