Sunday, February 24, 2019

शहरवाली शब्दों का वाक्य प्रयोग: मुर्शिदाबाद की भाषा भाग ७

शहरवाली शब्दों का वाक्य प्रयोग: मुर्शिदाबाद की भाषा भाग ७ 

१. बेशी (बहुत) ओदा-खोदा (कुरेदना) करने से कुछ नहीं होगा। जो हमलोग को मालूम है उससे बेसी उल्लोग (उनलोग) को बी (भी) मालूम नई (नहीं) है.
२. उत्ता (उतना) टुकु (सा) खाइस (खाया) है.
३. कुएं से बैङ्गि में पानी पडिंदे में भर दो.
४. गोरु (गाय) को घांस (घास) और पाखी (चिड़िया) को चाबल दे दीजो (देना).
५. बड़ा भाई, मझला भाई, सझला (तीसरा) भाई, छोटा भाई, नन्हा भाई (बहुत छोटा,पांचवां)), फुच्ची (छठा) भाई और नन्हा-फुच्ची (सातवां) भाई सब कोई सझली भुआमा और नन्ही फुच्ची मासिमा के संग जात्रा (यात्रा) करने पालीताना गिया (गया) है.
६. बीकानेर में सिरि (श्री) पुजजी (पूज्यजी) म्हाराज (महाराज) का पुषाल (पौषाल, उपाश्रय) है. हुवाँ (वहां) उनके संग (साथ) भौत (बहुत) सारे गुरूजी (यति) लोग भी रहें (रहते हैं).
७. उसके मन में भौत छक्का पंजा (मायाचारी, कपट) है और सात पांच भी बेसी करे बोलके (इसलिए) उससे कोई भिड़ने नइ (नहीं) मांगे (मांगता है).
८. कोई भी मसाले के गुंड़े (चूर्ण, पाउडर) को बुकनी बोले. तरकारी सिझाने के पहले उसमे मसाले का बुकनी डालना चहिए?
९. भौत गरम है. इत्ता (इतना) सट-सट (नज़दीक-नज़दीक) के मत बैठो.
१०. बाबू को बुखार है, आज न्हलइयो (नहलाना) मत, खाली मु (मुँह)-हाथ धुला दीजो.
११. आज बदली (बादल) करके रक्खीस (रखा) है,  गुमस (उमस) है, लेकिन बरसात नइ होये.
१२. आंग (शरीर) हात (हाथ) में दरद (दर्द) होये (होता है) तो कबराज (कविराज-वैद्य) जी को दिखाओ नइ क्यों?
१३. गोटे (पुरे) बदन (शरीर) में कादा (कीचड़) माख (मल) के आया है.
१४. चाँई-मुलाइन (सब्ज़ी बेचनेवाली जाती विशेष) लोग से तरकारी (सब्जी) खरीद लियो? अच्छा जामुन ले के अइयो (आना) कल के तरे (तरह) खुदी जाम (जामुन की जंगली जाति, छोटा होता है) मत ले अइयो।
१५.  छत में एक ठो तीर और दो ठो बरगा  बदलाना है.  दागरेज़ी (मरम्मत) कराने के लिए मिस्त्री को तो बोल दियो किन्तु पायेट (मज़दूर) का बोलियो नइ. दूसरे छत के लिए सुरकी (सुर्खी) कम पडेगा थोड़ा राबिस भी ले लीजो. दीवाल का प्लास्टर आज नइ होगा क्योंकि मिस्त्री करनी तो ले आया रूसा लाना भूल गिया। पलस्तर हो जाये तो हात (हाथ) के हात पुचारा (पुताई) भी करवा लीजो (लेना).
१६. आज बड़ी कोठी के पुश्ते में सरभाव (सभी का) जीमण होगा.
१७. थोड़ा सा पैसा क्या हो गिया, अदराने (इतराने) लग गिया, बेसी (ज्यादा) बोली फूटने (बोलने) लग गिया। सोजा सोजी (सीधे सीधे) बोले तो इत्ता (इतना) घमंड हो गिया की......
१८. कडबेल (कपीठ) के पाचक (चूर्ण) से फुट्टापुड़ी खा लो.
१९. बाप दादे (बुजुर्गों) के जमाने से से देखते आये हैं नेचु (लीची) के झुक्के में २८ ठो नेचु , छाते (कमलगट्टा) के मुट्ठे में २५ ठो छाता होता था, आम तो बराबर इ २८ गंडा (चार) का सौ होये.
२०. चवारा ठो भौत दिन से बंद था, गोटे (पुरे) जाला धर गिया और एकठो कैसा गुमसानी (उमस) गंध भी हो गिया था.
२१. लड़काबाला (बच्चे) लोग को बोलियो उधिर (उधर) से नइ जाए, उ (उस) रस्ते (रास्ते) में पिच्छल (फिसलन) है गिरेगा तो गोटे (पुरे) आंग में क़ादा मख जागा।
२२. लालू हमसे बाज़ी (शर्त) लगाइस (लगाया) था की मोहनबागान जीतेगा किन्तु हार गिया।
२३ बग़ान (बगीचा) में एकठो नरंगी (नारंगी) का गाछ (पेड़) पोतीस (रोपा) था, किन्तु लगा नइ.
२४. बदमाईशी तो देखो, ढेला (पत्थर या ईंट का टुकड़ा) मार के कांच फोड़ दिस.
२५. बरात में गिये थैं हुवाँ (वहां) सब कोई तास खेलने लगे. बड़े लोग (वयस्क) रमी और स्वीप खेल रहे थे. और बच्चे लोग? तीन दो पांच, सात आठ, गधा लोडिंग, और गुलाम चोर. कोई कोई कोट-पीस भी खेल रा (रहा) था. तीन दो पांच में बुज़ को ले के बच्चे लोग में झगड़ा भी हो गिया। सबसे बेसी मजा बीबी धसानी (ब्रे) खेलने में आया था.
२६. कतली (ईंट- तास के खेल में) का छक्का खेलने में एक जने के पास झबड़े (हुकुम) का टिक्का (इक्का), साहेब (बादशाह), और कतली का बीबी (बेगम) आया था.
२७. घाट में माझी नई था, नउका (नाव) नई मिला तो गंगा जी हेल (तैर) के आ गिया।
२८. गल्ली (गली) ठो बरसात से एकदम सैंतसैंते (गीला गीला) हो गिया है.
२९. झड़ी-पानी (बरसात) का दिन है, मेघ (बादल) कर के रक्खीस है, गड़ गड़ भी करे हे, गंगा जी में ढेउ (तरंग) भी भौत (बहुत) है; अभी उ (उस) पार जाना ठीक नई.
३०. कल अक्खय (अक्षय) निधि का मौच्छव् (महोत्सव- वरघोड़ा) निकलेगा, सबकोई जरूर से अइयो (आना).
३१. उसके माथे में घाउ (घाव) हो गिया था बोलके नापित (नाइ) को दे के नैड़ा (गंजा) हो गिया।
३२. धरम चन्द जी के कबीले (विधवा) का ५ रुपिया चांदा (चन्दा) लिखा गिया था.
३३. छमछरी (संवत्सरी) का पड़कौना (प्रतिक्रमण) कियो (किया) थो (था)? सुत्तर (सूत्र- कल्पसूत्र) जी सुनियो ? (सुना क्या)?
३४. उ (वह) इंरेजि (अंग्रेजी) का बई (किताब) पढ़े (पढ़ रहा) हे (है).
३५. बाबाजी (ताऊजी) सूत (सो) गिये (गए) हैं.
३६. तामे (ताम्बे) के ततैड़े (टंकी या कढ़ाई) में पानी भरा हुआ है.
३७. पहले तो बेसी होम्बी तोम्बी (घमंड से बोलना) किस (किया) अब नैका (जैसे कुछ जानता न हो) सजके बैठा है.
३८. अबकी बरस इत्ता पानी बरसा की बान (बाढ़) आ गिया।
३९. लड़का ठो एकदम बिलल्ला हो गिया है, इत्ता बिहोद्दापना (बेहूदापन) करे की पूछो इ मत.
४०. फल सब झाँपी (बेत से बनी हुई ढंकने की) से ढांक के रखियो नइ तो मक्खी से भर जागा (जायेगा)।
४१. मेघराज बाबू हमलोग को हरदम मंडा (सन्देश जैसी छेने की मिठाई) खिलाते थें।
४२. छोटू उसको इत्ता करके बुझाइस (समझाया) तो भी मानिस (माना) नइ (नहीं).
४३. लण्ठन बुता (बुझा) के सुत (सो) जाओ. सीड़ी से चप (चढ़) के जाओगे तो उप्पर दुछत्ती है. हुवाँ से सामान ले के फेर नीचे नम (उतर) जइयो।
४४. रस्ते में देख के चलियो नइ तो गाड़ी से चापा (दब) पड़ जाओगे।
४५. अरे थोड़ा जल्दी करो, ऐसे शुटुर शुटुर (बहुत धीरे) करोगे तब तो हो गिया।
४६. बेटा, दूध गुटगुट (जल्दी से) कर के पी लो.
४७. इ देखो, सब घामड़ घिट्ट (घृनाष्पद ,गन्दा) कर दिस है.
४८. मोड़ी (नाली) से अभी कङ्गोजर (कानखजूरा) निकला था. 
४९. धनपत सिंह जी की कबीला (विधवा) ने पुशाल (उपाश्रय) के कहते में २० रूपया चिटठा भरा था।  
५०. एक दम नन्हा गिगले (एक दम छोटा बच्चा) के तरे करे हे. 
५१. उसके भौत कुटीचाली (कपटी) बुद्धि है.  
५१. तरकारी में धनिये का बुकनी (पिसा धनिया) डाल दियो?
५२. मुरब्बा बनाने के लिए तो एक गछिया (एक ही पेड़ का)) आम चहिये (चाहिए)। 
५३. माँ आज कंजाल (केले के पेड़ के तने का अंदरूनी भाग) का तरकारी बनाइन (बनाया) हैं। 
५४. खाते (कॉपी) के उप्पर (ऊपर) काली (स्याही) गिर गिया और पुरे लिभड़ (बुरी तरह फ़ैल) गिया (गया)।  
५५.  पानी में कल्का फुट गिया (उबाल आ गया) है, चुले (चूल्हे) से उतार लीजो (लेना). 


शहरवाली शब्दकोश (शब्दावली) Murshidabad Dictionary

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Jyoti Kothari, Proprietor, Vardhaman Gems, Jaipur represents Centuries-Old Tradition of Excellence in Gems and Jewelry. He is an adviser, Vardhaman Infotech, a leading IT company in Jaipur. He is also ISO 9000 professional. 


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