Sunday, February 24, 2019

कैसे बनी शहरवाली बोली? मुर्शिदाबाद जैन समाज की भाषा


कैसे बनी शहरवाली बोली? मुर्शिदाबाद जैन समाज की भाषा 

हम भौत दिन से इ ब्लॉग लिक्खें हैं किन्तु हरदम हिंदी नइ तो इंग्रेजी में इ लिक्खें. लेकिन मन में किया की इ  ब्लॉगपोस्ट ठो  शहरवाली बोली में इ लिक्खङ्ग। सबको शायत मालूम नइ है की शहरवाली बोली कैसे बना. अब तो बेसी भाग आदमी शहरवाली बोलना इ  छोड़ दिस है. हो सके नया लडक़ावाला लोग को तो इसका पता इ नइ हो.

जब दो अढ़ाई सौ वरस पहले हमलोग राजस्थान- मारवाड़ से हियाँ मुर्शिदाबाद  आयें थैं तब हमलोग का बोली मारवाड़ी इ था. मारवाड़ी हिंदी के तरे इ है और धरम का बई भी सब हिंदी में था. हियाँ बीकानेर से गुरु जी और सिरिपुज्जी लोग का भौत आना जाना था, उलोग पाठशाला में भी धरम और हिंदी पढ़ाते थे इससे शहरवाली बोली हिंदी से मिलता जुलता इ था. धरम का पढ़ने से संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश भाषा का शब्द भी इसमें मिला. फेर हियाँ आने के बाद नवाब और मुसलमान लोग के संग रहेने से उलोग का बोली उर्दू उसमे मिल गिया। हियाँ का आदमी लोग बंगाली था और बँगला बोलता था तो आस्ते आस्ते उसमे बंगला भी मिल गिया। अजीमगंज, जियागंज, बालूचर में रहने वाले लोग मज़े का पढ़े लिखे थे और अच्छा इंग्रेजी भी जानते थे. साहब लोग के संग भी हियाँ के बड़े आदमी लोग का अच्छा उठ बैठ था. सो हियाँ की बोली में इंग्रेजी भी मिक्स हो गिया. थोड़ा भौत फ़ारसी, तुर्की, आर्मेनियन, फ्रेंच भाषा का शब्द भी उसमे मिला. ऐसे कर के इत्ता जगे का शब्द, भाषा और बोली मिलके शहरवाली बोली बन गिया। किन्तु इसका कोई बैकारोन नइ  है, इसलिए इसको भाषा के गिनती में  नइ लिया जा सके.

४०-५० बरस पहले जब हमलोग अजीमगंज में रहते थें तब सबकोई अइ बोली में इ बोलता था. मेरा नानाबाड़ी कलकत्ते में झौरी साथ में है, हुवाँ तो सबकोई हिंदी इ बोलता था. छोटे में जब हमलोग नानाबाडी जातें तब हमलोग के बोली का सबकोई भौत मज़ाक उड़ाता था लेकिन हमलोग ठीक से हिन्दी नइ बोल सकते थें, तो सुनना पड़ता था और अच्छा नइ लगता था. अब बेसी भाग आदमी अजीमगंज जियागंज से भार रहने लग गिया है बोलके उलोग भी अब आस्ते आस्ते अपना बोली भूलने लग गिया। नया लड़काबाला लोग बेसी करके इंग्रेजी स्कूल में पढ़े और थोड़ा हिंदी और बांग्ला भी सीखे। घर में भी अब शहरवाली बोली का चलन काम हो गया है बोलके उलोग तो अपना भाषा मोटामोटी जाने इ नई.

हम भी ३५ बरस पैले जैपुर आ गियें थैं सो हियाँ की बोली इ बोलने लगैं किन्तु अजीमगंज के बोली से अभी भी प्रेम है बोलके आज इठो लिखने का मन हो गिया। भौत  दिन बाद लिखैं बोलके कुछ भूल होये तो ठीक कर लीजेगा. और हाँ, एक ठो बात और, आप लोग भी इसमें थोड़ा लिखिए तो अपना भाषा थोड़ा लोग को मालूम पड़ेगा. नया बच्चा लोग को भी थोड़ा इसब पढईये, और बोलना सिखइये तब तो अपना भाषा ज़िंदा रैगा।

शहरवाली शब्दों का वाक्य प्रयोग: मुर्शिदाबाद की भाषा भाग ७


Jyoti Kothari
(Jyoti Kothari is the proprietor of Vardhaman Gems, Jaipur, representing a centuries-old tradition of Excellence in Gems and Jewelry. He is a Non-resident Azimganjite.) 

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