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उद्देश्य और सारांश
अजीमगंज मे नवपद ओली की समृद्ध परम्परा रही है. यहां एक समय मे बड़ी संख्या मे ओलि हुआ करता था. और आज भी श्री नेमिनाथ स्वामी मंदिर मे ओली की तपस्या प्रति वर्ष होती है. इसी परम्परा को फिर से समृद्ध करने एवं पावन परंपरा को पुनरुज्जीवित करने हेतु आगामी वर्ष आश्विन महीने मे 2024 मे (9 से 17 अक्टुबर) 108 ओली हो ऐसा संकल्प लिया गया है. आप से भी परिवार / मित्र जनों सहित सम्मिलित होने हेतु निवेदन है. आप सभी के सम्मिलित प्रयास एवं नव पद जी के प्रभाव से यह प्रयास अवश्य सफल होगा और 2024 के आश्विन मे 108 ओलि जरूर होगा.
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प्रति वर्ष की भांति गत वर्ष 2023 में नवपद मंडल पूजन कराने हेतु अजीमगंज गया था. कुल 12 लोग नवपद ओली कर रहे थे एक ओली अष्टापद की थी. पारणे के दिन तपस्वी अभिनन्दन समारोह था उसमे संघ के मंत्री एवं मेरे सहपाठी श्री सुनील जी चौरड़िया ने बताया की कुछ वर्ष पूर्व ओली करनेवालों की संख्या मात्र 2 रह गई थी. अनेक प्रयत्नों से अब ये संख्या 12 हुई है. उन्होंने आह्वान किया की अगले वर्ष यह संख्या 20 हो.
नवपद मंडल पूजन, अजीमगंज |
उसी समय नवपद जी की प्रेरणा से मेरे मुँह से निकला 20 नहीं 108 !! उपस्थित सभी इसे मज़ाक में ले रहे थे, तभी मेरे मुँह से निकला (यह सब मानो नवपद जी के प्रभाव से ही मेरे मुँह से निकल रहा था), नहीं, 108 !! मैंने आगे कहा "यदि 108 का संकल्प हो तो 20 मैं अकेले जोड़ूंगा". उसी समय उपस्थित लोगों से बात करना शुरू किया, उन्हें प्रेरित किया, और नवपद जी की कृपा से २१ नाम उसी समय जुड़ गए. इसमें एक नाम संघ के अध्यक्ष संजीव जी बैद का भी था. इस घटना से संकल्प को वल मिला और उपस्थित सभी ने संकल्प लिया की अगले वर्ष आश्विन माह 2024 में 108 ओली की संख्या जरूर पुरी करेंगे.
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अजीमगंज में नवपद ओली, मंडल पूजन एवं आयम्बिल की विषेशताएं
प पू प्रवर्तिनी श्री शशिप्रभा श्री जी महाराज उस समय शिष्या मंडली सहित चातुर्मास हेतु कोलकाता में विराजमान थीं. अजीमगंज से कोलकाता आने के बाद 1 नवम्बर 2023 को उनसे मिलकर पूरे घटना क्रम की जानकारी दी एवं उन्हें 108 ओलि के लिए लोगों को प्रेरित करने के लिये निवेदन किया. उन्होंने हर्षित होते हुए इस पुनीत कार्य को पूर्ण समर्थन देना स्वीकार किया. उनसे बात होती रही और चातुर्मास समापन के कार्यक्रम में उनकी प्रेरणा से 8 लोग ओली जी के लिये जुड़ गए.
चातुर्मास समाप्ति के बाद कोलकाता व हावड़ा में विभिन्न कार्यक्रमों में उन्होंने प्रेरणा देने का कार्य जारी रखा. इसी बीच खड़गपुर में उनकी तीन समीपस्था साध्वियों के दीक्षा स्वर्ण जयंती कार्यक्रम की घोषणा हुई. मैंने निवेदन किया की साध्वी जी महाराजों की 50 वर्ष पूर्ति उपलक्ष्य में कम से कम 50 लोगों को जोड़ें। उन्होंने इस निवेदन को सहर्ष स्वीकार किया और कहा कि कम से कम 50 लोगों को तो वो जोड़ ही देंगी. उन्होंने कार्यक्रम को आशीर्वाद प्रदान किया और कहा कि यह लक्ष्य अवश्य पूरा होगा.
प्रवर्तिनी साध्वी श्री शशिप्रभा श्री जी महाराज |
इस तरह पूज्य श्री के आशीर्वाद एवं संघ के अध्यक्ष, मंत्री एवं अन्य सभी के सम्मिलित प्रयास से कड़ी से कड़ी जुड़ती गई. अनेक लोगों ने आगे बढ़ कर प्रेरणा देना और अन्य लोगों को जोड़ना शुरू किया, इस तरह कारवाँ बढ़ता गया. प्रेरणा देने में श्रीमती डॉली गोलेच्छा, पिंकी बैद, शशिलता छाजेड़, मधुमिता धाड़ीवाल, श्री संजीव बैद, सुनील चौरड़िया, संजय बैद, मोहित बोथरा, स्नेहिल बोथरा आदि ने सराहनीय भूमिका का निर्वहन किया. (प्रेरक में यदि गलती से किसी का नाम छूट गया हो तो सूचित करें, उनका नाम जोड़ देंगे). पूज्या प्रवर्तिनी साध्वी जी, प्रेरकों, संघ के सदस्यों सभी के सम्मिलित प्रयास से अब तक 75 नाम जुड़ चुके हैं और सफर जारी है. पूरा विश्वास है की जल्द ही संख्या 108 के भी पार चली जाएगी.
ओली करनेवालों की सम्पूर्ण आवास, भोजन, आयम्बिल, पारणे आदि की सभी व्यवस्था अजीमगंज श्री संघ की और से की जाएगी. यह सभी व्यवस्था साधर्मी वात्सल्य के अंतर्गत निःशुल्क रहेगी. कृपया शीघ्र अपना नाम लिखवाएं.
अजीमगंज में नवपद ओली का इतिहास जो जानना जरूरी है
श्री सम्भवनाथ स्वामी, अजीमगंज |
अजीमगंज मे श्री धनपत सिंह जी दुगड ने श्री सम्भव नाथ स्वामी मंदिर के प्रतिष्ठा के समय से ही नवपद मंडल पूजन की परंपरा का शुभारंभ किया. श्री धनपत सिंह जी दुगड के पौत्र श्री सुरपत सिंह जी दुगड ने भी आजीवन ओलि की आराधना कर इस परम्परा को वल प्रदान किया. उनके पुत्र श्री नरेंद्र पत सिंह दुगड भी जब तक अजीमगंज रहे तब तक श्री सम्भव नाथ स्वामी मंदिर मे नवपद मंडल पूजन की परंपरा को चालू रखा.
इसके बाद श्री हरख चंद जी रुमाल ने 70 वर्ष पूर्व श्री नेमिनाथ जी के मंदिर मे नवपद मंडल पूजन की परंपरा का शुभारंभ किया, जो की अब तक चल रही है.
रुमाल जी की पुत्री श्रीमती तिलक सुन्दरी नौलखा परिवार आज भी इस परम्परा को समृद्ध करने मे अग्रणी है.
श्री धनपत सिंह जी दुगड की 2 पौत्री का विवाह अजीमगंज के कोठारी एवं बोथरा परिवार मे हुआ था. बाद के दिनों मे इन दोनों परिवार ने अजीमगंज मे नवपद ओलि की परम्परा को आगे बढ़ाने मे विशेष योगदान किया. इस सम्बंध मे श्री मोती चंद जी एवं जगत चंद जी बोथरा का नाम उल्लेखनिय है.श्री परिचंद जी बोथरा परिवार द्वारा आमिल एवं पारने का पूरा खर्च आज तक किया जा रहा है. कोठारी एवं बोथरा परिवार मे लगभग सभी लोग ओलि की तपस्या करते थे साथ ही क्रिया आदि कराने मे भी विशेष भूमिका होती थी.
श्री समरेन्द्र पत जी कोठारी एवं श्री धीरेन्द्र पत जी कोठारी ने अनेक वर्षों तक नवपद मंडल पूजन हेतु कोलकाता से धन संग्रह करने एवं सामग्री आदि की व्यवस्था करने मे अपनी भूमिका निभाइ. श्री बहादूर सिंह जी एवं श्री राजेद्र सिंह जी बच्छावत परिवार व वर्तमान मे चौरड़िया परिवार का उल्लेख करना भी आवश्यक है. इस प्रकार अन्य भी अनेक लोगों के सहयोग से नवपद मंडल पूजन एवं ओलि की परम्परा आज तक चल रही है.
मंडल जी के पूजा की सभी विधि यति श्री करमचंद जी और कीर्ति चन्द जी की देखरेख में होता था. दोनों संस्कृत के अच्छे विद्वान थे एवं स्पष्ट और शुद्ध उच्चारण से विधि विधान करवाते थे. उन दोनों के बाद श्री गजेंद्र पत जी कोठारी व उनके बाद श्री विजयपाल सिंह जी बच्छावत मंडल जी की पूजा निरंतर रूप से करवाते रहे. श्री विजयपाल सिंह जी बच्छावत गले के कैंसर से पीड़ित हो गए थे और शारीरिक अवस्था अत्यंत प्रतिकूल थी. इसके बावजूद मेरे निवेदन पर वो अंतिम बार मंडल जी की पूजा करवाने पधारे थे, एवं सुन्दर तरीके से पूजा करवाई थी.
अंतिम बार नवपद मंडल पूजन करवाते हुए श्री विजयपाल सिंह जी बच्छावत |
१९७० व ८० के दशक की बात है जब हमलोग अजीमगंज में ओली किया करते थे, उस समय ओली जी की सभी क्रिया करवाने मे श्री बहादुर सिंह जी बच्छावत की बड़ी भूमिका रहती थी. देव वंदन, प्रतिक्रमण आदि के ज्यादातर सूत्र वो ही बोलते थे. श्री निर्मल चंद जी बोथरा का गला बहुत अच्छा था और वो मधुर कंठ से भजन और पूजा गाते थे. श्री गजेन्द्र पत जी कोठारी संस्कृत मे चैत्य वंदन और स्तुति बोला करते थे.
श्री समरेन्द्र पत जी कोठारी ओली तो नही करते पर कभी कोलकाता से आते तो प्रतिक्रमण मे गंभीर आवाज मे बड़ी शांति आदि बोलते थे. आमिल खाते मे श्रीमती कनक जी कोठारी और भानुमति जी बच्छावत बहुत सारी व्यवस्था संभालती थी.
रसोई का काम बिबली बाइ जी आदि के देखरेख मे होता था. कालीपद बर्तन धोने बगैरह काम किया करता था. मंदिर मे बड़े पुजारी छेल जी सब इंतजाम देखते थे पर छोटे पुजारी पृथ्वी चंद जी बड़े मस्त स्वभाव के थे. वो भरपूर मनोरंजन भी करते थे.
नव पद की महिमा अनंत है
कहते हैं "नव पद महिमा जग मे मोटी, गणधर पार न पाए रे"
ऐसे नव पद का महत्व नवपद जी की पूजा (जिसे हम गाते रहते हैं) मे बताया गया है. यह पूजा उस समय के तीन अत्यंत समर्थ विद्वान आचार्य ज्ञान विमल सूरी, उपाध्याय यशोविजय जी, एवं उपाध्याय श्रीमद देवचंद जी की सम्मिलित रचना है. नवपद जी के रहस्य को इसी पूजा के माध्यम से जानने का छोटा सा प्रयास किया गया है.
जानने के लिए इस लिंक पर क्लीक करें.
Jyoti Kothari
(Jyoti Kothari is the proprietor of Vardhaman Gems, Jaipur, representing Centuries Old Tradition of Excellence in Gems and Jewelry. He is a Non-resident Azimganjite.)
www.vardhamangems.com
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