अजीमगंज में नवपद ओली, मंडल पूजन एवं आयम्बिल की विषेशताएं
अजीमगंज में नवपद ओली एवं आयम्बिल की विषेशताएं
जैन धर्म में सिद्धचक्र अर्थात नवपद का विशेष महत्व है. आश्विन एवं चैत्र मास की शुक्ल सप्तमी से पूर्णिमा तक नव दिन आयम्बिल कर नवपद की आराधना की जाती है. नवपद ओली का विशेष महत्व होने के कारण पुरे भारत में उत्साहपूर्वक यह तपस्या की जाती है. मयणा सुंदरी- श्रीपाल की कथा से प्रेरित नवपद ओली की तपस्या अनेक स्थानों में होती है, फिर अजीमगंज की विशेषता क्या है?
मयणा सुंदरी- श्रीपाल नवपद आराधना करते हुए |
पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद जिले का अजीमगंज एक छोटा सा स्थान है. यहाँ जैनों की एक छोटी सी आवादी है. अपनी जाहो-जलाली के समय भी यहाँ जैनों की बस्ती 500 से अधिक नहीं थी. इतनी कम आवादी के बाबजूद यहाँ नवपद ओली करनेवालों की बड़ी संख्या होती थी. जिस समय मैं ओली करता था (1970 से 1980) उस समय यहाँ लगभग 300 लोग रहते थे और श्री नेमिनाथ स्वामी के मंदिर में 70-80 ओली होती थी.
श्री नेमिनाथ स्वामी मंदिर के अंदर का दृश्य |
गुजरात में बड़ी संख्या में सभी तपस्याएं होती है परन्तु वहां जैनों की जनसँख्या भी बहुत अधिक है, इसलिए गुजरात से अजीमगंज की तुलना नहीं हो सकती. दुसरी बात ये है की गुजरात में प्रायः आयम्बिल में नमक एवं कुछ अन्य वस्तुएं भी उपयोग में ली जाती है जिससे आयम्बिल करना सरल हो जाता है. जबकि अजीमगंज में आयम्बिल में नमक या अन्य वस्तुओं का उपयोग नहीं होता है केवल एक अनाज एवं पानी ही काम में लिया जाता है. इससे आयम्बिल का भोजन नीरस एवं बेस्वाद होता है और तपस्वियों को अपनी रसनेन्द्रिय का विशेष संयम करना होता है.
बिगत वर्षों में अजीमगंज में जैनों की जनसँख्या विशेष रूप से कम हो जाने के कारण ओली करनेवालों की संख्या भी बहुत कम हो गई, 2023 में यह संख्या १२ ही रह गयी. उस समय संघ द्वारा यह संकल्प लिया गया की अगले वर्ष नवपद ओली करनेवालों की संख्या बढ़ा कर 108 की जाये. इसमें सफलता भी मिली, 9 अक्टूबर से 17 अक्टुबर 2024 तक होनेवाली आश्विन ओली के लिए अब तक 75 नाम आ चुके हैं. अभी कार्यक्रम में सात महीने का समय शेष है और पूर्ण विश्वास है की संख्या 108 के पार चली जाएगी.
अजीमगंज में नवपद मंडल पूजन की विषेशताएं
जैन धर्म में सिद्धचक्र एवं सिद्धचक्र महापूजन का विशेष महत्व है. भारत भर में समय समय पर सिद्धचक्र महापूजन का आयोजन होता रहता है. अजीमगंज में सिद्धचक्र महापूजन नवपद मंडल पूजन के नाम से होता है. यहाँ यह पूजन अत्यंत भक्तिभाव पूर्वक विशेष आडम्बर के साथ किया जाता है. इसकी एक विशेषता ये भी है की यह एक निश्चित दिन शरद पूर्णिमा (आश्विन ओली का अंतिम दिन) को ही होता है. यह पिछले लगभग 125-150 वर्षों से हो रहा है. पहले यह श्री सम्भवनाथ स्वामी के मंदिर में होता था और विगत 60-65 वर्षों से यह श्री नेमिनाथ स्वामी के पञ्चायती मंदिर में होता है.
श्री सम्भवनाथ स्वामी मंदिर |
पूजन के लिए लकड़ी की एक चौरस चौकी पर सफ़ेद कपडा बिछाया जाता है और उस पर चावल, गेहूं, चना, मुंग और उड़द से नवपद के 9 पद बनाये जाते हैं. सिद्धचक्र यंत्र के शेष वलय रंगीन चावल से कलात्मक रूप से बनाये जाते हैं. मांडला करने का काम ओली करनेवालों के द्वारा ही किया जाता है. इस कार्य को पूरा करने में 4 से 5 दिन लग जाते हैं. इस तरह ओली के तपस्वियों द्वारा बनाये गए कलात्मक मांडले की सुंदरता देखते ही बनती है.
मनोहर कलात्मक नवपद मण्डल |
शरद पूर्णिमा के दिन विशेष विधि विधान से उत्कृष्ट द्रव्यों एवं उपकरणों से मंडल पूजन का कार्यक्रम होता है. नवग्रह, दस दिकपाल पूजन व वली वाकुल के बाद नवपद के अरिहंत, सिद्ध आदि 9 मूल पदों की पूजा होती है। इसमें विशेष रूप से तैयार किये हुए पञ्च वर्णी गोले चांदी के सिंहासन में विराजमान कर नवपद के प्रथम वलय में चढ़ाया जाता है. यह पूजन भी केवल मात्र नवपद ओली के तपस्वियों द्वारा ही किया जाता है. अजीमगंज में गोला चढाने का विशेष महत्व है और इस समय पूरा श्री संघ उपस्थित रहकर इस पूजन की अनुमोदना करता है.
नवपद जी की बड़ी पूजा करते स्नात्रिये |
गोला चढाने के बाद अन्य सभी वलयों की पूजा होती है और इसमें चांदी के बने हुए कलात्मक सुन्दर फलों, पान के पत्तों आदि का उपयोग होता है. अंत में नवपद की बड़ी पूजा पढ़ा कर कलश अभिषेक किया जाता है. इस प्रकार विशिस्ट रीती से अजीमगंज में नवपद मंडल संपन्न होता है.
(Jyoti Kothari is proprietor of Vardhaman Gems, Jaipur, representing Centuries Old Tradition of Excellence in Gems and Jewelry. He is a Non-resident Azimganjite.)
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