Saturday, January 14, 2017

History of Shaharwali Jain community of Murshidabad


History of Shaharwali Jain community of Murshidabad: A request
Jyoti Kothari

It is a well-known fact tat Shaharwali community of Azimganj-Jiaganj-Murshidabad has a very rich tradition of vibrant culture. In fact, this community has enriched the culture of Bengal in one hand and of the Jain society on the other. However, it is regrettable that no systemic research work has done to document the history of Shaharwali society.





It is a well-known fact that Shaharwali community of Azimganj-Jiaganj-Murshidabad has a very rich tradition of vibrant culture. In fact, this community has enriched the culture of Bengal in one hand and of the Jain society on the other. However, it is regrettable that no systemic research work has done to document the history of Shaharwali society.

Murshidabad Heritage Society has taken an initiative to popularize the rich culture through various events. Few books are also published. However, we need a systemic research and that cannot be completed without referring to the Jain temples of Murshidabad, contributions of Sripujjya Ji, Yatis, and Sadhu-Sadhvis.

The culture of Shaharwali society was so embedded with the Jain religion that cannot be separated. The Jain community of Rajasthan (Rajputana, Marwad) was migrated from Rajasthan to find their fortune in Bengal, especially Murshidabad. They have contributed to the economic and social development of Murshidabad in Bengal.

Though the Shaharwali community was working continually with the Muslim Nawabs and the local Bengali society, they never forget their religion and carefully protected the same. The huge Jain temples, Poshals, Amil khata are the symbols of the dedication to the Jain religion.

I am trying to collect and preserve history and culture of the Shaharwali society for many years through writing blogs and propagating those I social media. I, take the opportunity to request, the office-bearers and executive of Murshidabad heritage society along with the Sri Sangh and Murshidabad Sangh to make it a point to conduct systemic research.

I believe, they will take my request seriously.

Jyoti Kothari
(Jyoti Kothari is proprietor of Vardhaman Gems, Jaipur, representing Centuries Old Tradition of Excellence in Gems and Jewelry. He is a Non-resident Azimganjite.) www.vardhamangems.com

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Sunday, January 1, 2017

अजीमगंज नेमिनाथ स्वामी का प्राचीन स्तवन


अजीमगंज स्थित श्री नेमिनाथ स्वामी का एक अति प्राचीन स्तवन अभी अभी देखने मिला है. दो सौ वर्षों से भी अधिक प्राचीन यह स्तवन उपाध्याय श्री क्षमाकल्याण जी द्वारा रचित है. इस स्तवन के रचना की तिथि अज्ञात है. क्षमाकल्याण जी महान साधक एवं वरिष्ठ विद्वान् थे जिनके स्वर्गवास का दो सौ वर्ष मनाया जा रहा है. खरतर गच्छ परम्परा में उन्होंने क्रियोद्धार कर सुवुहित मार्ग को दृढ किया था. आज भी दीक्षा के समय क्षमाकल्याण जी का वासक्षेप प्रदान किया जाता है.


Kshamakalyan Khartar Gachchh Upadhyay in Bikaner Kripachandra Suri upashray
उपाध्याय क्षमाकल्यन जी, बीकानेर 
उन्होंने अजीमगंज के नेमिनाथ भगवन का स्तवन लिखा है जिसका अर्थ ये है की यह स्तवन दो सौ वर्षों से अधिक पुराना है, इससे यह नया तथ्य भी प्रकाशित होता है की नेमिनाथ स्वामी का मंदिर दो सौ सालों से भी अधिक पुराना है. अभी तक यह माना जाता रहा है की यह मंदिर लगभग सवा सौ साल पहले बना था.

अजीमगंज नेमिनाथ मंदिर मूलगंभारा 
उपाध्याय श्री क्षमाकल्याण जी के स्वर्गवास के द्विशताब्दी वर्ष के उपलक्ष्य में खरतर गच्छाधिपति आचार्य श्री मणिप्रभ सूरीश्वर जी के शिष्य श्री मेहुलप्रभ सागर जी ने "क्षमाकल्याण जी कृति संग्रह" नाम से एक पुस्तक संकलित की है जिसके भाग १, पृष्ठ ९७ में यह स्तवन प्रकाशित हुआ है.  खरतर गच्छ साहित्यकोषः क्रमांक ३५४७ से इसे संकलित किया गया है.

नेमिनाथ स्वामी सुसज्जित रंगमंडप 
अजीमगंज मंडन 
श्री नेमिनाथ जिनेन्द्र स्तवन
(ढाल-नीबडलीनी)

जगपति नेमि जिनंद प्रभु म्हारा, जग. 
वाविसम शासन धनी, गिरुवा गुणनिधि राज। 
समुद्रविजय शिवा नन्द प्रभु म्हारा, जग 
सांवल वरन सुहामणा, गिरुवा गुणनिधि राज. 
यादवकुल शणगार प्रभु म्हारा,
शंख लांछन प्रभु शोभता,  गिरुवा गुणनिधि राज।
सौरिपुर अवतार प्रभु म्हारा, 
अपराजित सुरलोक थी, गिरुवा गुणनिधि राज।
देह धनुष दस मान प्रभु म्हारा,  
रूप अनूप विराजता, गिरुवा गुणनिधि राज।
आऊ थिति परमान  प्रभु म्हारा,  
वरस सहस इक अति भलो, गिरुवा गुणनिधि राज।
प्रभु म्हारा,  गिरुवा गुणनिधि राज।
नवयौवन वर नार प्रभु म्हारा,
उग्रसेन नृप नन्दनी  गिरुवा गुणनिधि राज।
नाव भव नेह निवार प्रभु म्हारा,
राजुल राणी परिहरि, गिरुवा गुणनिधि राज।
पशुआँ तणी पुकार प्रभु म्हारा,
सांभली करुणा रास भर्या, गिरुवा गुणनिधि राज।
रथ फेरी तिण वार प्रभु म्हारा,
फिर आया निज मंदिरे,
गिरणारे संयम ग्रह्यो, गिरुवा गुणनिधि राज।
देइ संवत्सरी दान प्रभु म्हारा,  गिरुवा गुणनिधि राज।
पामी केवलज्ञान प्रभु म्हारा,
संघ चतुर्विध थपियो, गिरुवा गुणनिधि राज।
पंच सयां छत्तीस प्रभु म्हारा,
मुनिवर साथे मुनिपति, गिरुवा गुणनिधि राज।
शिव पुहूता सुजगीश प्रभु म्हारा,
पद्मासन बैठा प्रभु, गिरुवा गुणनिधि राज।
मासखमण तप मान प्रभु म्हारा,
करि अणशण आराधना, गिरुवा गुणनिधि राज।
गढ़ गिरनार प्रधान प्रभु म्हारा,
तीन कल्याणक जिहां थया, गिरुवा गुणनिधि राज।
योगीश्वर शिरताज प्रभु म्हारा,
निरुपाधिक गुण आगरु, गिरुवा गुणनिधि राज।
अविचल आतमराज प्रभु म्हारा,
पाम्यो परमानन्द मैं, गिरुवा गुणनिधि राज।
सकरण वीरज अंत प्रभु म्हारा,
निरुपाधिक गुण आगरु,गिरुवा गुणनिधि राज।
नगर अजीमगंज भाण प्रभु म्हारा,
नेमि जिनेश्वर साहिबा,गिरुवा गुणनिधि राज।
शुद्ध क्षमाकल्याण प्रभु म्हारा,
आतम गुण मुझ दीजिये  गिरुवा गुणनिधि राज।

श्री नेमिनाथ भगवान् का मंदिर १२५ वर्ष प्राचीन माना जाता है, परंतु कुछ ऐतिहासिक तथ्यों से संकेत मिलता है की यह मंदिर उससे कहीं अधिक पुराना है. प्राचीन मंदिर के गंगा के कटान में जाने के बाद यह नया मंदिर बनाया गया था ऐसा मुझे अजीमगंज के श्री विमल नवलखा ने बताया था. क्षमा कल्याण जी द्वारा रचित यह स्तवन मिलने से उनके कथन की पुष्टि होती है और श्री नेमिनाथ जी के मंदिर का दो सौ वर्ष से अधिक प्राचीन होना सिद्ध होता है. परंतु यह मंदिर वास्तव में और कितना पुराना है यह अभी भी शोध का विषय है.

अभी ये पता करना है की श्री नेमिनाथ स्वामी के नए मंदिर में जो मूलनायक विराजमान हैं वो प्राचीन मंदिर के ही हैं या और कहीं से लाइ गई है? उस प्राचीन मंदिर को किसने और कब बनाया था? पुराना मंदिर कब गंगा के कटान में चला गया? इस प्रकार अनेक तथ्य सामने लाने के लिए शोध की आवश्यकता है; इस सम्वन्ध में किसी भी प्रकार की जानकारी हो तो अवश्य संपर्क करने का कष्ट करें.

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Jyoti Kothari
(Jyoti Kothari is proprietor of Vardhaman Gems, Jaipur, representing Centuries Old Tradition of Excellence in Gems and Jewelry. He is a Non-resident Azimganjite.)
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