मुर्शिदाबाद आमों के लिए प्रसिद्ध है. यहाँ जितने प्रकार के आम मिलते हैं उतने और कहीं नहीं. यहाँ के नवाबों व रईसों ने आम की अनेक स्वादिष्ट एवं सुगन्धित किस्में विकसित करवाई. यहाँ के आम बड़े नाजुक किस्म के होते हैं. शहरवाली समाज आमों का बड़ा शौकीन था व आज भी है. यहाँ आम खाना एक कला के रूप में विकसित हो गया था. सिर्फ आम खाना ही नहीं परन्तु आम को तैयार करना भी एक कला था.
आम को पेड़ों से यूँ ही नहीं तोडा जाता था. आम तोड़ने में भी नजाकत थी. इसके लिए एक लम्बे बांस एवं हंसिया ( धारदार ) .का उपयोग किया जाता था. हंसिये के ठीक नीचे बांस में एक छिका बंधा होता था. पेड़ से टूटने पर आम उस छिके में आ जाता था. छिके का प्रयोग आम को जमीं पर गिरने से बचाने के लिए होता था. आम को पेड़ से कच्चा ही तोडा जाता था. उन आमों को फिर एक टोकरी में सजाया जाता था व बीच बेच में आम के पत्ते डाल दिए जाते थे जिससे एक आम को दुसरे आम से रगड़ न लगे. रगड़ लगने से आम दागी हो जाता था.
टोकरी में रख कर आमों को घर लाया जाता था और उसे बड़ी हिफाज़त से पकाया जाता था. सामान्यतः आमों को लकड़ी के पाटे पर पत्तों के ऊपर एक एक कर बिछा देते थे एवं उसके ऊपर फिर से पत्ते ढक देते थे. समय समय पर उन आमों को ऊपर नीचे पलता जाता था जिससे वो आम चरों तरफ से बराबर व सही तरीके से पक सके. पके हुए आमों को कई घंटों तक पानी में भिगो कर रखते थे जिससे उसके अन्दर की गर्मी निकल जाये. इस क्रिया से आम स्वास्थ्य वर्धक व स्वादिस्ट एवं शीतल हो जाता था.
शहरवालिओं को आम छिलने में महारत हासिल थी. आम को पहले एक तरफ से छिला जाता था. छिलने के बाद आम के गुदे के ऊपर चक्कू से निशान बनाया जाता था व उसके बाद उसे बनाया जाता था. एक तरफ से आम के फांक निकल लेने के बाद ही उसे दूसरी तरफ से छिला जाता था. इस से आम काला नहीं पड़ता था व उसकी सुन्दरता बनी रहती थी.
परंपरागत रूप से घर के बड़े व मर्दों को गुठली नहीं दी जाती थी. प्रायः कर के घर के बच्छे गुठली चुसना पसंद करते थे या फिर उसका अमरस बनाने में उपयोग कर लिया जाता था.
आम के मौसम में नाते रिश्तेदारों के यहाँ आम भेजने की भी प्रथा थी. इस प्रकार एक दुसरे के यहाँ आमों का आदान प्रदान भी होता था. अपनी अपनी हैसियत के अनुसार कम या ज्यादा आम भेजे जाते थे.
With regards,
Jyoti Kothari
(N.B. Jyoti Kothari is proprietor of Vardhaman Gems, Jaipur, representing Centuries Old Tradition of Excellence in Gems and Jewelry. He is a Non-resident Azimganjite.)
Vardhaman Infotech
A leading IT company in Jaipur
Rajasthan, India
E-mail: info@vardhamaninfotech.com
आम को पेड़ों से यूँ ही नहीं तोडा जाता था. आम तोड़ने में भी नजाकत थी. इसके लिए एक लम्बे बांस एवं हंसिया ( धारदार ) .का उपयोग किया जाता था. हंसिये के ठीक नीचे बांस में एक छिका बंधा होता था. पेड़ से टूटने पर आम उस छिके में आ जाता था. छिके का प्रयोग आम को जमीं पर गिरने से बचाने के लिए होता था. आम को पेड़ से कच्चा ही तोडा जाता था. उन आमों को फिर एक टोकरी में सजाया जाता था व बीच बेच में आम के पत्ते डाल दिए जाते थे जिससे एक आम को दुसरे आम से रगड़ न लगे. रगड़ लगने से आम दागी हो जाता था.
टोकरी में रख कर आमों को घर लाया जाता था और उसे बड़ी हिफाज़त से पकाया जाता था. सामान्यतः आमों को लकड़ी के पाटे पर पत्तों के ऊपर एक एक कर बिछा देते थे एवं उसके ऊपर फिर से पत्ते ढक देते थे. समय समय पर उन आमों को ऊपर नीचे पलता जाता था जिससे वो आम चरों तरफ से बराबर व सही तरीके से पक सके. पके हुए आमों को कई घंटों तक पानी में भिगो कर रखते थे जिससे उसके अन्दर की गर्मी निकल जाये. इस क्रिया से आम स्वास्थ्य वर्धक व स्वादिस्ट एवं शीतल हो जाता था.
शहरवालिओं को आम छिलने में महारत हासिल थी. आम को पहले एक तरफ से छिला जाता था. छिलने के बाद आम के गुदे के ऊपर चक्कू से निशान बनाया जाता था व उसके बाद उसे बनाया जाता था. एक तरफ से आम के फांक निकल लेने के बाद ही उसे दूसरी तरफ से छिला जाता था. इस से आम काला नहीं पड़ता था व उसकी सुन्दरता बनी रहती थी.
परंपरागत रूप से घर के बड़े व मर्दों को गुठली नहीं दी जाती थी. प्रायः कर के घर के बच्छे गुठली चुसना पसंद करते थे या फिर उसका अमरस बनाने में उपयोग कर लिया जाता था.
आम के मौसम में नाते रिश्तेदारों के यहाँ आम भेजने की भी प्रथा थी. इस प्रकार एक दुसरे के यहाँ आमों का आदान प्रदान भी होता था. अपनी अपनी हैसियत के अनुसार कम या ज्यादा आम भेजे जाते थे.
With regards,
Jyoti Kothari
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