Thursday, January 26, 2012

अजीमगंज जियागंज में नीमस, पीठा और मेवा सलोनी खिचड़ी खाने का मौसम

 ये ठन्डे (सर्दी) का मौसम है. सबलोग निहाली (रजाई) ओढ़कर सो रहे हैं. ये मौसम अजीमगंज जियागंज के जैन समाज में  में नीमस, पीठा और मेवा सलोनी खिचड़ी खाने का मौसम होता है. शहरवाली रईस लोग खाने पीने के बहुत शौकीन थे और बढ़िया बढ़िया खाने की चीजें यहाँ पर बनती थी. ठन्डे के दिन में भोरे भोर नीमस खाने का मज़ा ही कुछ और है.

याद आता है जब भोरे भोर माँ या दादीमा सुते हुए को उठा देती थीं और बोलती थीं नीमस खा लो. जब हम बच्चे थे तब रात को औंटाया हुआ दूध रात को खुले छत में कपडे से बांध कर रख दिया जाता था. उस को ओस में रखा जाता था. सुबह उस दूध को घोंटा जाता था जिससे फेन निकलता था. उस फेन में इलाइची, केशर और गुलाबजल डाल कर कटोरे में दिया जाता था.

इसी तरह से खाने के समय पीठा बनता था. मीठा बनता था मावे से और नमकीन भापिया, दाल का. जब हूँ वहां रहते थे तब तो पीठे का न्योता भी होता था और उसमे बाई बेटी को जरूर बुलाया जाता था.

इसके साथ ही वहां मेवा सलोनी का खिचड़ी भी बनता था. मेवे का खिचड़ी मीठा होता था जिसमे बिदाम, पीसता, इलाइची और केशर डलता था. काजू और अखरोट नहीं डाला जाता था.  सलोनी का खिचड़ी मटर से बनता था. यह खिचड़ी सब जगह बन्ने वाले पुलाव से अलग था क्योंकि इसमें दही डाला जाता था. दही से इसमें थोडा खट्टापण भी आता था जो इसके स्वाद को बाधा देता था.

अब भी शहरवाली समाज में ये चीजें बनती है. जो लोग अब बहार रहने लग गए हैं वो लोग भी शायद बनाते होंगे. यहाँ जयपुर में मैंने लोगों को कई बार ये सब चीजें खिलाई है और वो लोग बहुत पसंद करते हैं.

(इस ब्लॉग में हम जान के थोडा बहोत शहरवाली बोली लिखा है. पूरा ठीक हिंदी में नहीं लिखा है)
अजीमगंज शहरवाली साथ का खाना

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