लड़का लड़की के बड़े होने पर लगभग माँ बाप या घर के बड़े शादी तय करते थे। अक़्सर लड़का या लड़की ख़ुद पसंद नही करते थे। शादी में खानदान को बहुत महत्व दिया जाता था पैसे को नहीं। खानदान के अलावा लड़की का चाल चलन और सुन्दरता को महत्व देते थे। अगर थोडी उमर होने के बाद व्याह होता था तब लड़के की कमाई देखी जाती थी। लड़के की सुन्दरता को ज्यादा महत्व नही दिया जाता था। व्याह के पहले लड़के लड़की की कुंडली जरूर मिलवाई जाती थी और कुंडली मिलने पर ही सम्बन्ध किया जाता था नही तो नहीं। अजीमगंज में खानदानी पंडित जी थे। कुछ समय पहले तक पंडित देव नारायण जी शर्मा थे, जो ज्योतिष के अच्छे जानकर थे। उस समय पंडित जी के खाते में अजीमगंज-जियागंज व आसपास के जैन, पांडे व नाइ के यहाँ होने वाले प्रत्येक व्यक्ति के जन्म का व्यौरा रखा जाता था।
व्याह पक्का होने के बाद किसी भी कारण से छोड़ा नहीं जाता था। पक्का होने के कुछ दिन बाद सगाई की जाती थी जिसे शहरवाली में सिलामी पड़ना बोलते थे। सिलामी में सवा मन दूध और मिश्री लड़की वाले लड़के वाले को भेजते थे जिसे पुरे समाज में बांटा जाता था। सिलामी में विशेष लेन देन का रिवाज़ नहीं था।
रीति रिवाज़: सिलामी और व्याह भाग २
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(Vardhaman Gems, Jaipur represents Centuries Old Tradition of Excellence in Gems and Jewelry)
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