Friday, March 14, 2014

शहरवाली होली के रंग और भांग कि तरंग

शहरवाली होली के रंग और भांग कि तरंग 


होली आ रही है और ऐसे मौके पर अजीमगंज कि होली याद न आये ये कैसे हो सकता है. होली तो भारत में सभी जगह खेली जाती है पर शहरवाली होली कि बात ही कुछ और थी. न सिर्फ रंग बीर बल्कि पुआ- पकोड़ी और भांग-ठण्डाई! होली के सांग और सैल को भला कौन भूल सकता है. अब तो सब सपने जैसा लगता है।  अजीमगंज छोड़े ३० वर्ष से भी ज्यादा हो गया अब तो बस याद शेष है. होली में बचपन में इतना हुड़दंग करते थे कि …

फाल्गुन शुक्ल पूर्णिमा के दिन होली खेल जाता था और उस दिन पिचकारी भर के रंग डालते थे. मुझे याद है कि मेरे पूज्य पिताजी स्वर्गीय श्री धीरेन्द्र पत जी कोठारी हम बच्चों के साथ होली का खूब आनंद लेते थे. वो जान बुझ कर नया सफ़ेद धोती और अद्दी का कुरता पहन कर सुबह सुबह सामने आ जाते थे. बच्चे तो सब होली के दिन पुराना कपडा पहनते थे।  सफ़ेद नया धोती कुरता देख हमारा मन ललचा जाता था पर थोडा डर भी लगता था. लेकिन हिम्मत कर के मैं उन पर रंग दाल देता था और वो मुस्करा देते थे.

माँ पूवे बनती थीं होली के रंग भरे हाथों से पूवे पकौड़ी खाने का जो मजा… बाल्टी भर रंग घुले पानी किसी को नहला देना। … बलून और मोम से बनाया कुमकुम और फिर रंग छुड़ाने के लिए घंटों गंगा जी में नहाना

दूसरे दिन अबीर से खेलते थे. बड़ों के पैर में अबीर डाल उनसे आशीर्वाद लेते थे और बड़े भी बच्चों के सर पर अबीर डाल देते थे. बराबर कि उम्र वालों के मुह में अबीर मल दिया जाता था. होली के सैल में रामबाग जाते थे वहाँ जलेबी बनती थी कभी कभी दाल बाटी भी.कोई अगर ठंडाई के साथ भांग खा केता तो फिर अलग ही मज़ा आता था. होली में सांग भी सजते थे और होली का जुलुश भी निकलता था. घर में जमाई आने पर केशर गुलाब जल से चांदी के गुलाब पाश से होली खिलाया जाता था

हम लोगों ने नहीं देखा पर पहले शहरवाली समाज में सात आठ दिन तक होली खेल जाता था. श्री निर्मल कुमार सिंह जी नौलखा होली के बहुत शौक़ीन थे और शान से, रईसी से होली खेल करते थे.

होली कि बहुत बहुत शुभ कामनाएं 
Thanks,
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