बालूचर एवं बालूचरी साड़ी
बालूचरी साड़ी - गीता का उपदेश |
बालूचरी साड़ी -युद्ध का दृश्य |
बालूचरी साड़ी का इतिहास लगभग ५०० वर्ष पुराना है. बंगाल के तन्तुवाय (ताँति) अपनी दक्षता के लिए विख्यात रहे हैं. उनकी दक्षता का एक निदर्शन बालूचरी साड़ी भी है. अत्यंत दक्ष शिल्पी कड़ी मेहनत से इसे बनाते हैं. एक साड़ी बुनने में लगभग एक सप्ताह का समय लग जाता है जबकि इतने समय में १० साधारण साड़ी बनाइ जा सकती है. इसकी विशेषता इसकी पल्लू है. चौड़े पल्लू में रामायण, महाभारत, गीता आदि की कहानी दर्शाई जाती है.
बालूचरी साड़ी- नृत्यांगना |
बालूचरी साड़ी |
बाद में यह रेशम के साथ साथ सूती धागों से भी बनने लगा और तब इसकी कीमत भी कम हो गई. कालक्रम में मुर्शिदाबाद की यह कला यहाँ से लुप्त हो गई और अब यह विष्णुपुर में व्यापक रूप से बनने लगा है. रेशम कीड़े को मार कर बनता है इसलिए अहिंसा प्रेमी जैन परिवारों में विशुद्ध रेशम से परहेज किया जाता है. परन्तु सूती बालूचरी शहरवाली समाज में आज भी लोकप्रिय है.
नोट: संभवतः पुराने समय में अजीमगंज और जियागंज सम्मिलित रूप से बालूचर कहलाता था. बाद में नदी ने अपनी राह बदली और अजीमगंज-जियागंज के बीच से बहने लगी. कुछ पुराने मानचित्र इस ओर इंगित करते हैं. यह एक शोध का विषय है.
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Jyoti Kothari
(Jyoti Kothari is proprietor of Vardhaman Gems, Jaipur, representing Centuries Old Tradition of Excellence in Gems and Jewelry. He is a Non-resident Azimganjite.)
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