Thursday, July 11, 2013

अजीमगंज में नवपद मंडल पूजन की परम्परा

अजीमगंज में नवपद मंडल पूजन की परम्परा 

अजीमगंज में श्री नवपद मंडल पूजन की बहुत पुरानी परम्परा रही है। वर्तमान में प्रति वर्ष आश्विन शुक्ल पूर्णिमा अर्थात नवपद ओली के अंतिम दिन यह पूजा श्री नेमिनाथ जी के बड़े मंदिर में पढ़ाई जाती है। नवपद अर्थात सिद्धचक्र। यह पूजा सिद्धचक्र महापूजन से मिलती जुलती है।  लेकिन उससे कुछ भिन्नता लिए हुए है. अजीमगंज में यह पूजा चैत्र मॉस में करवाने का रिवाज़ नहीं है परन्तु इस वर्ष परम पूज्या सुलोचना श्री जी महाराज की उपस्थिति के कारण नवपद मंडल पूजन चैत्र शुक्ल पूर्णिमा को भी करवाया गया था .

नवपद मंडल पूजन की परंपरा संभवतः बीकानेर से यहाँ आई। महा विद्वान यति ज्ञानसार जी द्वारा बीकानेर में नवपद मंडल का उल्लेख मिलता है एवं वे तत्कालीन श्री पूज्य श्री जिन सौभाग्य सूरी के आज्ञानुवर्ती थे.  श्री जिन सौभाग्य सूरी का मुर्शिदाबाद से घनिष्ठ सम्वन्ध रहा है।

मंडल जी की पूजा पहले श्री सम्भवनाथ स्वामी का मंदिर, अजीमगंज, में दुगड़ परिवार द्वारा करवाई जाती थी. श्री हरख चन्द जी रूमाल ने सर्व प्रथम यह पूजा श्री नेमिनाथ जी के मंदिर में प्रारंभ करवार्इ. तबसे यह पूजा यहीं पर होती आ रही है। अधिकांशतः मंडल जी की पूजा संघ द्वारा करवाई जाती है लेकिन कभी कभी यह पूजा व्यक्ति विशेष के द्वारा भी करवाने की परंपरा है। प्रायः कर के ओली जी पारने वाले लोग यह पूजा करवाते हैं .

मंडल जी की पूजा यहाँ बहुत ही धूम धाम व ठाट वाट से होती है जिसमे एक विशाल चोकी पर कपड़ा बिछा कर उसमे भिन्न भिन्न रंगों के चावल से मांडला किया जाता है।  फिर शुभ मुहूर्त में चांदी की बनी हुई चिट्ठी रख कर  अरिहंत आदि नवपद एवं देवी देवताओं का आह्वान किया जाता है। इसके साथ ही शुभ मुहूर्त में ज्वारारोपण आदि किया जाता है।  ये सभी काम पूजन के तीन चार दिन पहले कर लिया जाता है। पूजन के दिन सुबह से ही धूम मची रहती है। नवपद जी की ओली करनेवाले लोग पूजा के लिए तैयार हो जाते हैं। पुरे शहर के सभी क्षेत्रपालों को तेल सिन्दूर चढ़ाया जाता है। बलि बाकूल, भूमि शुद्धि, अंग शुद्धि, आत्मा रक्षा आदि के बाद मूल पूजन का विधान प्रारंभ होता है।

सबसे पहले सिद्धचक्र के ९ पदों में गोला चढ़ाया जाता है। सूखे नारियल के गोले के अन्दर घी, मिश्री, आदि भर कर उस पर नवपद के वर्णों के अनुसार रंग किया जाता है। श्वेत एवं पीले वर्ण के लिए चांदी एवं सोने का वर्क चढ़ाया जाता है जबकि लाल हरे एवं नीले में रंगों का प्रयोग होता है। इन सुसज्जित गोलों को चांदी के सिंहासन पर विराजमान कर उसमे वर्णानुसार रत्नों की पोटली रखी जाती है। फिर इन ९ गोलों को क्रम से मंत्रोच्चार एवं प्रदक्षीना पूर्वक मंडल पर चढ़ाया जाता है। शहरवाली समाज में नवपद मंडल पूजन विशेष कर गोला चढाने का बहुत अधिक महत्व रहा हुआ है।  गोला चढ़ने के बाद अन्य वलयों की पूजा प्रारंभ होती है। यह पूजा ५-६ घंटों के लम्बे समय में पूरी होती है। इस पूजन में बहुत बड़ी मात्र में मिष्टान्न एवं फल चढ़ाया जाता है।  ओली करने वाले पूजा सम्पूर्ण होने के बाद ही आयम्बिल करते हैं एवं आयम्बिल करने का समय साम तक ही मिल पाता है। इस दिन बहुत लोग ९ दाने का ही आयम्बिल करते हैं।

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Friday, July 5, 2013

अजीमगंज की जैन पाठशाला


अजीमगंज की जैन पाठशाला का नाम पवन कुमारी ज्ञान मंदिर था। श्री परिचंद जी बोथरा परिवार ने अपनी माँ एवं प्रसन्न चंद जी बोथरा की धर्मं पत्नी के नाम से नाम से इस पाठशाला की स्थापना की गई थी।

इस पाठशाला में कक्षा शिशु से ५ वीं तक हिंदी, गणित एवं धर्म की पढाई होती थी। प्रख्यात विद्वान महोपाध्याय श्री हेमचंद जी यति के शिष्य करमचंद जी एवं प्रशिष्य श्री कीर्ति चंद जी इस जैन पाठशाला में धार्मिक अध्ययन करवाते थे. दोनों ही संस्कृत के अधिकृत विद्वान् थे एवं शुद्ध उच्चारण पर बड़ा जोर देते थे। मुख्य रूप से यहाँ सामायिक, चैत्यवंदन एवं बाद में प्रतिक्रमण सिखाया जाता था। विशिस्ट विद्यार्थियों को भक्तामर, कल्याण मंदिर आदि स्तोत्र भी सिखाया जाता था.

परीक्षा लेने के लिए शहरवाली समाज के ही धार्मिक विद्वानों को बुलाया जाता था। यति जी स्वयं परीक्षा नहीं लेते थे जिससे निष्पक्षता बनी रहे. प्रायः मेरे परिवार के लोग ही परीक्षक के रूप में उपस्थित रहते थे। स्वनाम धन्य विद्वान् श्री रणजीत सिंह जी दुधोडिया लम्बे समय तक इसकी व्यवस्था सँभालते रहे।

अजीमगंज में रहने वाले लगभग सभी लोग इस पाठशाला में पढ़ते थे परन्तु सत्तर के दशक से इसमें उपस्थिति बेहद कम होने लगी थी। धार्मिक शिक्षण के प्रति लोगों का रूझान कम होने लगा था एवं विद्यालयीन शिक्षा की ओर झुकाव बढ़ रहा था। उस समय नव स्थापित महावीर मंडल ने पाठशाला को पुनरुज्जीवित करने का सार्थक प्रयास किया एवं कुछ वर्षों के लिए छात्र संख्या भी बढ़ी थी। परन्तु यह प्रयास भी लम्बे समय तक पाठशाला को जीवित नहीं रख सका एवं अंततः यह बंद हो गया।

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Few important points for Shaharwali community book


There are few important points for Shaharwali community book, I want to put here. I am approaching to finish my writing and still need some important information. I am mentioning here those points and looking for input.

I heard that there were eight renowned politicians/ statesmen who represented in state or national assembly.  I have got five names so far e.g. Surpat Singh Dugar, Rajendra Singh Singhi, Rajpat Singh Dugar, Nabo Kumar Singh Dudhoria and  Bijay Singh Nahar. Pl info me if you know about any one else.

I read somewhere (Cannot remember where) that the river Bhagirathi was flowing like horse nail (Ashwakshurakriti) and the sand between two parts of river was called Baluchar. I urge you to confirm the same.

It is not clear to me whether Gaysabad and Dasturhat is the same place or different. I also want information about Shrimal family, their business, about Mansingh and Jalimsingh Shrimal. I need info about who established Padmaprabhu temple.

Was there any gems and Jewelery dealer in Shaharwali community in old time? Do any one know something about P C Nahata family who had their office in Paris, France?

Was their any relation with Asiatic society?

I heard about a person from Harakchand Golechha family who went to Mahavideha Kshetra with the help of Shashan Devi. He asked few questions to Seemandhar Swami and got answers. Can any one throw light on this matter?

Your answers will greatly help us in writing the book. We will be grateful to any information provider. I will gladly mention his or her name in this blog with the information. You can also help by supplying old images, news, documents and records etc.

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Tuesday, July 2, 2013

Historical findings about Shaharwali society


Historical findings about Shaharwali society

We have found several pieces of historical evidence about the Shaharwali community while researching for our new publication. Dr. Shiv Prasad, a Jain historian has become instrumental in finding this information. 

1. Learned Jain Yati Sri Gyansar (Khartar Gachh) wrote a travel description about Bengal in the 19th century (1816 AD). There is a small description of Murshidabad along with the Jain society residing here.

2. We found some details about Navpad Mandal in Bikaner while studying the biography of Yati Sri Gyansar by the famous historian Sri Agarchand Nahata. We can assume that Navpad Mandal Poojan was brought to Azimganj from Bikaner. All of us know that the Shaharwali community is closely connected with Sri Poojya of Bikaner for all religious issues.

3. We found a letter written by Sri Poojya Sri Saubhagya Suri in the 1840s. He wrote the letter from Azimganj to Bikaner Bada Upashray. I have heard from the elders that the Shaharwali community supported Sri Saubhagya Suri in a dispute with Mahendra Sagar Suri. Finally, with the support of Shaharwali Jain Sri Saubhagya Suri could inherit the seat of Sri Poojya at Bada Upasra, Bikaner. I also heard that a close relationship with Sri Poojya started during his time. A letter written from Azimganj, which we found recently is clear evidence of the Chaturmas of Sri Poojya Sri Saubhagya Suri at Azimganj.

4. Sri Agarchand Nahata had also written about a valuable gift of Jagat Seth to a Paychann Gachh yati of Bikaner. The gifted gemstone was so valuable that the Maharaja of Bikaner wanted to have it forcefully. Intervene of Yati Gyansar restricted him from doing so and the gift remained with the Yati.

5. We are now studying "History of Murshidabad", published in the early 20th century. This book has descriptions of the Nahar, Dudhoria, and Jagat Seth families of the Shaharwali community. Sri Prashant and Pradip Dudhoria of the famous Rai Budh Singh Dudhoria family became instrumental in getting this.

I urge everyone especially Shaharwalis to supply historical information to enrich the book. 

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