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Tuesday, March 13, 2018

अजीमगंज का प्राचीन नाम डीही जैनेश्वर था


श्री विभूति भूषण दत्त की लिखी किताब पर्यटन में मुर्शिदाबाद अजीमगंज व बड़नगर में से प्राप्त जानकारी के अनुसार अजीमगंज का प्राचीन नाम डीही जैनेश्वर था। डीही का अर्थ सरोवर अथवा ग्राम समूह होता है और जैनेश्वर अर्थात जैनों के ईश्वर या तीर्थंकर परमात्मा। अनेक जिनमंदिरों से सुशोभित यह एक अति प्राचीन तीर्थस्थल था।

পর্যটনে মুর্শিদাবাদ আজিমগঞ্জ ও বড় নগর, পৃষ্ঠ ৫১ 
 संभवतः श्रमण भगवान महावीर भी यहां आ कर ठहरे थे। कालक्रम में प्राचीन मन्दिर नष्ट हो गए, यहां की जैन वसति लुप्त हो गई।  संख्या कम होने के कई कारण थे जैसे जैनों पर महाराज शशांक का अत्याचार, वैष्णव धर्म का बढ़ता प्रभाव, जैन साधु साध्वियों का आगमन कम होना आदि.

मुर्शिदाबाद की समृद्धि से आकर्षित हो कर एवं व्यापार वाणिज्य का बड़ा केंद्र जान कर मुग़ल काल मे जब राजस्थान से ओसवाल जैन लोग पुनः मुर्शिदाबाद आकर बसने लगे तब इस प्राचीन तीर्थभूमि को पुनः अपना निवास बनाया और यहां पुनः अनेक जिनमंदिरों का निर्माण करवाकर इसके तीर्थ स्वरूप को पुनर्जीवित किया।

"बंगाल के जैन मंदिर: एक शोध परियोजना" के परियोजना निदेशक डॉ शिवप्रसाद जी कुछ दिनों पूर्व अपने शोध के सिलसिले में अजीमगंज गए थे वहां उन्होंने পর্যটনে মুর্শিদাবাদ আজিমগঞ্জ ও বড় নগর पुस्तक के लेखक श्री विभूति भूषण दत्त से मुलाकात की. उन्होंने डॉ शिवप्रसाद जी को यह पुस्तक भेंट में दी. चूँकि  डॉ शिवप्रसाद जी हिंदी भाषी हैं और बांग्ला नहीं पढ़ सकते, उन्होंने मुझे ये पुस्तक कल ला कर दी और उसमे से मुझे इस तथ्य की जानकारी मिली.

Jyoti Kothari,
Advisor, Vardhaman Infotech, Jaipur. He is a Non-resident Azimganjite.) 

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Saturday, July 11, 2015

कर्मयोगी श्री अभय चन्द जी बोथरा का स्वर्गवास


श्री अभय चन्द जी बोथरा


कर्मयोगी श्री अभय चन्द जी बोथरा का कल रात कोलकाता में स्वर्गवास हो गया है. हम उनके स्वर्गवास पर हार्दिक शोक संवेदना प्रगट करते हैं. श्री अभय चन्द जी बोथरा पुत्र स्वर्गीय श्री मोहनलाल जी बोथरा  'मारवाड़ी साथ" के थे एवं उनका विवाह अजीमगंज के पानाचंद नानकचन्द कोठारी परिवार के श्री अभय चन्द जी कोठारी की पुत्री प्रभा देवी से हुआ था.

वे सच्चे अर्थों में कर्मयोगी एवं सादा जीवन उच्च विचारों के प्रतीक थे. अपनी मेहनत से उन्होंने अपने ताले के व्यवसाय को बहुत बढ़ाया एवं व्यापर में नैतिकता के उच्चतम मानदंडों का जीवन पर्यन्त पालन किया। पिता की मृत्यु के बाद उन्होंने अपने सभी छोटे भाई-बहनो का पालन पोषण किया एवं उन्हें भी उच्च नैतिक मानदंडो का पालन करने के लिए प्रेरित करते रहे. उन्हें अध्ययन करने का एवं फोटोग्राफी का भी बहुत शौक था एवं अपनी व्यस्त दिनचर्या में से भी इन कामो के लिए समय निकल लिया करते थे।  वे बहुत ही उच्च दर्ज़े के फोटोग्राफर थे

बुद्धिमत्ता एवं धार्मिक संस्कार उन्हें विरासत में मिली जिसके कारण नित्य पूजा पाठ करने वाले होते हुए भी धर्म का कोई दकियानूसी बंधन उनमे नहीं था।  अपने जीवन के समस्त धार्मिक, सामाजिक, व्यापारिक एवं पारिवारिक कर्त्तव्य निर्वाह में उन्हें अपनी पत्नी प्रभा देवी (छोटकी) का भरपूर साथ मिला। आपके चाचा श्री शुभकरण जी बोथरा स्वनामधन्य जैन विद्वान एवं स्वतंत्रता सेनानी थे एवं मामा श्री पुनम बाबू नाहर ने जैन दीक्षा अंगीकार की थी.

ऐसे कर्मयोगी व्यक्ति का निधन परिवार एवं समाज के लिए एक अपूरणीय क्षति है परन्तु विधि के विधान के आगे किसी का वष नहीं चलता। अरिहंत परमात्मा के भक्त ऐसे व्यक्ति को अवश्य ही सद्गति प्राप्त हुई होगी, वे जहाँ भी हैं वहीँ से हम सब पर आशीर्वाद की वर्षा करते रहें यही कामना करते हैं.

Jyoti Kothari (Proprietor Vardhaman Gems, Jaipur, representing Centuries Old Tradition of Excellence in Gems and Jewelry. He is a Non-resident Azimganjite.)

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Thursday, July 11, 2013

अजीमगंज में नवपद मंडल पूजन की परम्परा

अजीमगंज में नवपद मंडल पूजन की परम्परा 

अजीमगंज में श्री नवपद मंडल पूजन की बहुत पुरानी परम्परा रही है। वर्तमान में प्रति वर्ष आश्विन शुक्ल पूर्णिमा अर्थात नवपद ओली के अंतिम दिन यह पूजा श्री नेमिनाथ जी के बड़े मंदिर में पढ़ाई जाती है। नवपद अर्थात सिद्धचक्र। यह पूजा सिद्धचक्र महापूजन से मिलती जुलती है।  लेकिन उससे कुछ भिन्नता लिए हुए है. अजीमगंज में यह पूजा चैत्र मॉस में करवाने का रिवाज़ नहीं है परन्तु इस वर्ष परम पूज्या सुलोचना श्री जी महाराज की उपस्थिति के कारण नवपद मंडल पूजन चैत्र शुक्ल पूर्णिमा को भी करवाया गया था .

नवपद मंडल पूजन की परंपरा संभवतः बीकानेर से यहाँ आई। महा विद्वान यति ज्ञानसार जी द्वारा बीकानेर में नवपद मंडल का उल्लेख मिलता है एवं वे तत्कालीन श्री पूज्य श्री जिन सौभाग्य सूरी के आज्ञानुवर्ती थे.  श्री जिन सौभाग्य सूरी का मुर्शिदाबाद से घनिष्ठ सम्वन्ध रहा है।

मंडल जी की पूजा पहले श्री सम्भवनाथ स्वामी का मंदिर, अजीमगंज, में दुगड़ परिवार द्वारा करवाई जाती थी. श्री हरख चन्द जी रूमाल ने सर्व प्रथम यह पूजा श्री नेमिनाथ जी के मंदिर में प्रारंभ करवार्इ. तबसे यह पूजा यहीं पर होती आ रही है। अधिकांशतः मंडल जी की पूजा संघ द्वारा करवाई जाती है लेकिन कभी कभी यह पूजा व्यक्ति विशेष के द्वारा भी करवाने की परंपरा है। प्रायः कर के ओली जी पारने वाले लोग यह पूजा करवाते हैं .

मंडल जी की पूजा यहाँ बहुत ही धूम धाम व ठाट वाट से होती है जिसमे एक विशाल चोकी पर कपड़ा बिछा कर उसमे भिन्न भिन्न रंगों के चावल से मांडला किया जाता है।  फिर शुभ मुहूर्त में चांदी की बनी हुई चिट्ठी रख कर  अरिहंत आदि नवपद एवं देवी देवताओं का आह्वान किया जाता है। इसके साथ ही शुभ मुहूर्त में ज्वारारोपण आदि किया जाता है।  ये सभी काम पूजन के तीन चार दिन पहले कर लिया जाता है। पूजन के दिन सुबह से ही धूम मची रहती है। नवपद जी की ओली करनेवाले लोग पूजा के लिए तैयार हो जाते हैं। पुरे शहर के सभी क्षेत्रपालों को तेल सिन्दूर चढ़ाया जाता है। बलि बाकूल, भूमि शुद्धि, अंग शुद्धि, आत्मा रक्षा आदि के बाद मूल पूजन का विधान प्रारंभ होता है।

सबसे पहले सिद्धचक्र के ९ पदों में गोला चढ़ाया जाता है। सूखे नारियल के गोले के अन्दर घी, मिश्री, आदि भर कर उस पर नवपद के वर्णों के अनुसार रंग किया जाता है। श्वेत एवं पीले वर्ण के लिए चांदी एवं सोने का वर्क चढ़ाया जाता है जबकि लाल हरे एवं नीले में रंगों का प्रयोग होता है। इन सुसज्जित गोलों को चांदी के सिंहासन पर विराजमान कर उसमे वर्णानुसार रत्नों की पोटली रखी जाती है। फिर इन ९ गोलों को क्रम से मंत्रोच्चार एवं प्रदक्षीना पूर्वक मंडल पर चढ़ाया जाता है। शहरवाली समाज में नवपद मंडल पूजन विशेष कर गोला चढाने का बहुत अधिक महत्व रहा हुआ है।  गोला चढ़ने के बाद अन्य वलयों की पूजा प्रारंभ होती है। यह पूजा ५-६ घंटों के लम्बे समय में पूरी होती है। इस पूजन में बहुत बड़ी मात्र में मिष्टान्न एवं फल चढ़ाया जाता है।  ओली करने वाले पूजा सम्पूर्ण होने के बाद ही आयम्बिल करते हैं एवं आयम्बिल करने का समय साम तक ही मिल पाता है। इस दिन बहुत लोग ९ दाने का ही आयम्बिल करते हैं।

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Tuesday, November 2, 2010

मुर्शिदाबाद की विरासत बचाने का प्रयास: मुर्शिदाबाद हेरिटेज डेवलपमेंट सोसायटी


 मुर्शिदाबाद हेरिटेज डेवलपमेंट सोसायटी की स्थापना मुर्शिदाबाद की विरासत बचाने  का एक प्रयास है. प्राचीन काल में मुर्शिदाबाद का क्षेत्र गौड़ के नाम से जाना जाता था. औरंगजेब के सिपहसालार मुर्शीदकुली खान ने इसे बसाया एवं ढाका के स्थान पर सन १७०४ में इसे बंगाल, बिहार, एवं उडिस्सा की राजधानी बनाया. जब मुर्शीद कुली खान यहं आये तो उनके साथ उनके परम मित्र जगत सेठ मानकचंद गेलडा को भी साथ लाये. जैनों के उत्कर्ष का काल यहाँ पर तभी से शुरू हुआ.
यह नवाबों के शहर के नाम से भी जाना जाता रहा.

मुर्शीदकुली खान के बाद नवाब  अलीवर्दी खान, नवाब सुजाउद्दीन आदि ने नवाब की गद्दी संभाली. सिराज़ुद्दौला मुर्शिदाबाद के अंतिम स्वतंत्र नवाब हुए. मुर्शिदाबाद मुग़ल एवं ब्रिटिश शक्तियों के वीच युद्ध स्थल बना. पलाशी के युद्ध में सिराज़ुद्दौला के सेनापति मीर जाफर की गद्दारी के कारन उन्हें ईस्ट इंडिया कंपनी के क्लाइव लोयेड के हाथों पराजित होना पड़ायहीं से भारत में ब्रिटिश शासन की नींव पड़ी.      


 अंग्रेजों ने अपनी राजधानी मुर्शिदाबाद से बदल कर कलकत्ते को बना लिया लेकिन मुर्शिदाबाद की गरिमा फिर भी बनी रही. मुर्शिदाबाद अपनी कलाप्रियता के लिए जाना जाता रहा.


मुर्शिदाबाद के अजीमगंज एवं जिआगंज में रहने वाले जैन धर्मावालम्वी ओसवालों ने यहाँ की संस्कृति में रंग भरने में अपना विशिष्ट योगदान दिया. यहाँ के जैन धर्मावलाम्वी शहरवाली के नाम से प्रसिद्द हुए.यहाँ की कला, संस्कृति, स्थापत्य आदि की उन्नति में शहरवाली समाज का योगदान कल्पनातीत है.

शहरवाली समाज के लोग उच्च शिक्षित, राईसधनवान होने के साथ ही धर्मात्मा भी थे. अनेकों जिन मंदिर एवं दादाबाड़ी उनकी धर्मं परायणता का उदहारण है. शहरवाली समाज द्वारा स्थापित अनेक विद्यालय, महाविद्यालय जहाँ उनकी शिक्षा एवं ज्ञान के प्रति रूचि दर्शाती है वहीँ उन लोगों के द्वारा स्थापित चिकित्सालय उनकी परोपकारिता को.

यहाँ के जैन मंदिर एवं कोठियां शहरवाली समाज के अतीत गौरव की याद दिलाती है. यह एक धर्मं प्राण समाज है एवं अनेक दीक्षाएं इस बात कीगवाह है. अजीमगंज व जियागंज से अनेक साधू - साध्वियां भी हुई हैं.
शहरवाली पोषाक  की अपनी अलग विशेषता है.  अजीमगंज शहरवाली साथ का खानाभी अपनी विशिष्टताओं से भरपूर है. इनकी विविधता भी निराली है. शहरवाली समाज के रीती रिवाजों में भी यहं की माती की सुगंध है.
क्रमशः.........
 अजीमगंज श्री नेमी नाथ स्वामी स्तवन

Launching Murshidabad Heritage Development Society

Images Murshidabad Heritage Development Society

With regards,
Jyoti Kothari
(N.B. Jyoti Kothari is proprietor of Vardhaman Gems, Jaipur, representing Centuries Old Tradition of Excellence in Gems and Jewelry. He is a Non-resident Azimganjite.)
 Vardhaman Infotech
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Rajasthan, India
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Thursday, December 17, 2009

अजीमगंज श्री नेमी नाथ स्वामी स्तवन

जैन श्वेताम्बर मूर्तिपूजक समुदाय के खरतर गच्छ परम्परा में, श्री सुख सागर सूरी के समुदाय में पूज्य श्री हरी सागर सूरी  आचार्य बने. उन्हें अजीमगंज में महोत्सव पूर्वक आचार्य पद प्रदान किया गया. उस समय अजीमगंज श्री नेमी नाथ स्वामी के मंदिर में अस्टान्हिका  (अट्ठाई) महोत्सव का आयोजन किया गया. उस अवसर पर मंदिर की शोभा का वर्णन करते हुए श्री जगन्नाथ पटावरी ने एक स्तवन लिखा था. यह स्तवन स्तवनावली एवं प्रभु भजनावली में भी मुद्रित है. यह भजन एक ऐतिहासिक दस्तावेज़ भी है.
स्तवन


उत्सव की आई बहार,  बहार मेरे प्यारे, उत्सव की आई बहार. 
मंगलमय धन बंगाल देशे,  अजीमगंज उदार,  उदार मेरे प्यारे, उत्सव की आई बहार. १
नेमी प्रभु जिन मंदिर सुन्दर,  देव विमान आकार,  आकार मेरे प्यारे....  २
भाविक भक्त जन पूजा रचावे,  आठ अनेक प्रकार,  प्रकार मेरे प्यारे ..३.
भाव नन्दीश्वर तीरथ राजे, पावापुरी है श्रीकार, श्रीकर मेरे प्यारे ...४
चम्पापुरी वर तीरथ अष्टापद, भव जल से तारनहार, हार मेरे प्यारे... .5
सम्मेत शिखर समवशरण की, रचना है आनंद्कार, कार मेरे प्यारे..६.
पूज्य हरी सागर सूरी पदोत्सव, संघ रचावे जयकार,  कार मेरे प्यारे ...७
साधर्मी आवे देश देश के, दर्शन वंदन कार, कार मेरे प्यारे...८
स्वर्ग निवासी देव देवी गण, आने को उत्सुक अपार, अपार  मेरे प्यारे...९
गंगा नदी जल धारा ले आवे, पाप पखालन हार, हार मेरे प्यारे...१० 
जगन्नाथ प्रभु पुण्य कृपाते, घर घर मंगलाचार, चार मेरे प्यारे...११

क्षमाकल्याण जी रचित अजीमगंज नेमिनाथ प्राचीन स्तवन 
अजीमगंज में पूजा
सत्रह भेदी पूजा
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Saturday, August 1, 2009

अरिहंत कोठारी के १६ उपवास की तपस्या

श्री विवेक पत कोठारी (छोटू), अजीमगंज के सुपुत्र श्री अरिहंत कोठारी के १६ उपवास की तपस्या के उपलक्ष्य में दिनांक अगस्त २००९ को अजीमगंज श्री नेमिनाथ जी मन्दिर में सत्रह भेदी पूजा पढ़ाई जायेगी तत्पश्चात साधर्मी वात्सल्य का आयोजन किया गया है।
श्री अरिहंत कोठारी अजीमगंज निवासी स्वर्गीय श्री अजय सिंह जी कोठारी के सुपौत्र हैं। आज उनके १२ उपवास है। तपस्वी की बहुत बहुत अनुमोदना।

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Thursday, July 16, 2009

सत्रह भेदी पूजा


सत्रह भेदी पूजा १६ वीं सदी के जैन कवि श्री साधू कीर्ति की संगीतमय रचना है। भारतीय शास्त्रीय (मार्ग) संगीत की इतनी उत्कृष्ट कोटि की कोई दूसरी रचना जैन भक्ति साहित्य में उपलब्ध नहीं है। यह हिन्दी में लिखी गई सब से प्राचीन जैन पूजा भी है। साधू कीर्ति अकबर प्रतिवोधक चौथे दादा साहब श्री जिन चंद्र सूरी के आज्ञा अनुयायी थे। वे श्वेताम्बर मूर्तिपूजक समुदाय के खरतर गच्छ आम्नाय के थे। 

संवत १६१८ ( ईश्वी सन १५६२) में अनहिलपुर में उन्होंने इस पूजा की रचना की थी। साधू कीर्ति प्रख्यात गायक हरिदास, बैजू बाबरा व तानसेन के समकालीन थे। तत्कालीन भारतीय मार्ग संगीत की उत्कृष्टता सत्रह भेदी पूजा में परिलक्षित होती है। इस पूजा में अनेक रागों का प्रयोग किया गया है। 

पूजा की भूमिका राग सरपदी में है जबकि पहली न्हवन पूजा में राग देसाख, सारंग व मल्हार का प्रयोग हुआ है। दूसरी विलेपन पूजा राग रामगिरी एवं विलावल में है व इसका दोहा राग ललित में गाया जाता है। तीसरी वस्त्र युगल पूजा राग गौडी व वैराडी में है। चौथी वासक्षेप पूजा का दोहा भी राग गौडी में लिखा गया है। इस पूजा का प्रथम चरण राग सारंग में है तथा दूसरा चरण राग गौडी व पूर्वी का मिश्रण है। पांचवीं पुष्पारोहन पूजा राग कामोद व कानडा में गाया जाता है। छठी मलारोहन पूजा का दोहा राग आशावरी में तथा पूजा का प्रथम चरण रामगिरी गुर्जरी राग में है। दूसरा चरण फिर से राग आशावरी में ही है। सातवीं वर्ण पूजा केदारी गौडी व राग भैरवी में है। आठवीं गंधवटी पूजा का प्रारम्भ दोहे के स्थान पर सोरठे से किया है एवं पूजा में राग सोरठ व सामेरी का प्रयोग किया गया है। नवमी ध्वज पूजा में वस्तु छंद का उपयोग किया है जिसे राग मेघ गौडी में गाया गया है। पूजा का दूसरा चरण राग नटटनारायण में है। दसवीं आभरण पूजा का दोहा राग केदार में गाया जाता है व पूजा का प्रथम चरण राग अधवास या गूढ़ मल्हार में। पूजा का दूसरा चरण पुनः राग केदार में ही है। ग्यारहवीं फूलघर पूजा का पहला चरण रामगिरी कौतकिया में जबकि दूसरा चरण शुद्ध रामगिरी में है। वाराहवी पुष्प वर्षा के दोहे को वर्षा से संवंधित राग मल्हार में पिरोया गाया है तथा इसका पहला चरण गूढ़ मिश्र मल्हार का प्रतिनिधित्व करता है। पूजा का दूसरा चरण भी मल्हार की ही एक अन्य जाति भीम मल्हार में गुम्फित है। तेरहवीं अष्ट मांगलिक पूजा कल्याण कारक होने से इसका दोहा राग कल्याण में लिया है। पूजा का दूसरा चरण भी कल्याण राग में ही है जबकि पहला चरण वसंत राग में। चौदहवीं धुप पूजा राग विलावल व राग मालवी गौडी में है। पंद्रहवीं पूजा गीत पूजा है जिसमे पहले आर्यावृत्त छंद में संस्कृत की रचना है व दुसरे चरण को श्री राग में प्रस्तुत किया गया है। सोलहवीं नाटक पूजा प्राकृत भाषा के शार्दुल विक्रीडित छंद से प्रारम्भ होता है जिसे राग शुद्ध नट में गाने का निर्देशन है। पूजा का अगला चरण राग नट त्रिगुण में है। सत्रहवीं वाजित्र पूजा राग मधु माधवी में गाया जाता है। पूजा का अन्तिम कलश राग धन्या श्री में है। 

इस प्रकार भारतीय मार्ग (शास्त्रीय) संगीत के विशिष्ट रागों में गुम्फित यह  भक्ति व श्रृंगार रस प्रधान रचना कुल १०८ कवित्त की है। इसे पढने वाले अब कम रह गए है। अजीमगंज जियागंज में आज भी यह पूजा प्रचलित है। आज इस दुर्लभ कृति के संरक्षण व पुनः प्रचलन की आवश्यकता है । इस दिशा में ठोस कदम उठाने की जरुरत है।

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Tuesday, July 7, 2009

साध्वी श्री शशिप्रभा श्री जी का अजीमगंज में चातुर्मास प्रवेश

१ जुलाई २००९ को जैन साध्वी श्री शशिप्रभा श्री जी का अजीमगंज में चातुर्मास प्रवेश महोत्सव पूर्वक हुआ। प्रातः ७ बजे बिस्कुट फैक्ट्री से जुलुश बैंड बाजे सहित रवाना हुआ । सभी लोग परंपरागत शहरवाली पोशाक में थे। चुन्नटदार धोती, केशरिया कुरता व दुपट्टा मन को मोह रहा था। श्री शांतिनाथ स्वामी के मन्दिर में दर्शन करते हुए जुलुश आगे बढ़ा। हर घर के बाहर साध्वी मंडल के स्वागत में बैनर लगा था। हर घर में गहुली कर उनका स्वागत किया गया। बंगाली समाज की औरतें भी स्वागत में पीछे नही थी। वे शंख ध्वनि कर उनके आगमन पर हर्ष व्यक्त कर रहीं थीं।

श्री नेमिनाथजी के पंचायती मन्दिर
में सामूहिक दर्शन व चैत्यवंदन कर साध्वी श्री ने उपाश्रय में प्रवेश किया व सभी को मंगलिका प्रदान किया। उसके बाद जुलुश पुरे जैन पट्टी की परिक्रमा कर फाटक होते हुए सिंघी सदन पहुँचा जहाँ पर भव्य कार्यक्रम आयोजित किया गया।

सर्व प्रथम साध्वीजी ने मंगलाचरण किया. उसके बाद महिला मंडल, अजीमगंज के द्वारा स्वागत गीत गाया गया. स्थानीय एवं बाहर से पधारे हुए विशिष्ट अतिथिओं को मंच पर आसीन कराया गया एवं उनका बहुमान किया गया। अजीमगंज संघ के मंत्री श्री सुनील चोरडिया ने स्वागत भाषण दिया। अखिल भारतीय खरतर गच्छ महासंघ के अध्यक्ष श्री पदम चंद नाहटा, सम्मेत शिखर तीर्थ के अध्यक्ष श्री कमल सिंह रामपुरिया, कलकत्ता बड़े मन्दिर के मानद मंत्री श्री कांतिलाल मुकीम, मुर्शिदाबाद संघ के पूर्व अध्यक्ष श्री शशि नवलखा, श्री ज्ञान चंद लुनावत, श्री महेंद्र परख, टाटानगर के श्री कमल वैद, बालाघाट की श्रीमती नीता लुनिया आदि ने भी सभा को संवोधित किया।

कलकत्ता के स्वनाम धन्य गायक श्री सुरेन्द्र बेगानी ने अपने भजन से सभी को आह्लादित किया। उनके अलावा मनिचंद बोथरा, मोहित बोथरा, किशोर सेठिया अदि ने भी भजन प्रस्तुत किया। साध्वी श्री के गुरुपूजन का लाभ श्रीमती कुसुमदेवी चोरडिया परिवार ने लिया.

अतिथिओं का स्वागत अजीमगंज श्री संघ के अध्यक्ष श्री शीतल चंद बोथरा, मुर्शिदाबाद संघ के अध्यक्ष श्री ज्योति कोठारी आदि ने अतिथिओं का माल्यार्पण कर, तिलक लगा कर, व स्मृति चिह्न भेंट कर स्वागत किया.
सभा को साध्वी श्री सम्यग्दर्शना श्री जी व साध्वी श्री शशिप्रभा श्री जी ने भी मंगल प्रवचन से लाभान्वित किया. अंत में साध्वी श्री शशिप्रभा श्री जी के मंगलाचरण के साथ सभा का समापन हुआ.

कार्यक्रम का संचालन जयपुर के श्री ज्योति कोठारी ने किया।
सभा के बाद साधर्मी वात्सल्य का आयोजन हुआ।

जैन साधू साध्विओं के चातुर्मास की शास्त्रीय (आगमिक) विधि

जैन धर्म की मूल भावना भाग २

See Video:

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Friday, December 26, 2008

शहरवाली पोषाक


शहरवाली समाज की अपनी एक अलग पोषाक है। चुन्नटदार धोती, कुर्ता, शाल व पगडी। यहाँ की पगडी भी विशेष प्रकार की होती है। शाल ओढ़ने का अलग ही अंदाज़ है। अजीमगंज के प्रसिद्ध दुगड़ परिवार के गौतम जी दुगड़ शहरवाली पोषाक में यहाँ दिख रहे हैं.


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Saturday, December 20, 2008

अजीमगंज शहरवाली साथ का खाना

कुछ ख़ास मिठाइयाँ: मालपुआ, छुआरे की गोली, जमाओ, मोतीचूर (मिहिदाना) के लड्डू, बोडे का बुंदिया, सांकली,गुड का खाजा , चीनी का खाजा, ठेकुआ, मेथी का लड्डू, सोंठ का लड्डू, घाल का लड्डू, चिट्ठा पेडा, सत्तू का लड्डू, कोंढे का मुरब्बा, आदि कुछ मिठाइयाँ वहां की विशेषता है। चावल के लड्डू जिसे नन्द्याल कहते थे वह नवपद जी की ओली में चढाने के लिए बनता था। इस के अलावा और बहुत सी मिठाईया भी बनती है जो common है।
वहां का पीठा और नीमस भी बहुत प्रसिद्ध है। पके आम का पापड और चुरा सिर्फ़ यहीं बनता है.

ख़ास नमकीन: मोयन की पुडी, कलाई की कचोडी आदि वहां की कुछ ख़ास नमकीन है। वहां की खीरे व कमल गट्टे की कचोडी, छाते (कमल गट्टा) की खिचडी, सिंगाड़ा-दही की खिचडी, सलोनी मेवे की खिचडी, भापिया आदि भी प्रसिद्ध है। बिना नमक की मठरी जिसे खाजली कहते थे वह भी ओली जी में चढाने के लिए बनता था।

सब्जी (तरकारी) : इन्डल, डूबकी का झोल, राइ खट्टे का परवल, खट्टा मीठा, पपीते व केले का दबदबा, खीरे की राडी, कच्चे केले की राडी, कद्दू बूट का दाल, खीरा बूट का दाल, कच्चे केले एवं परवल का अकरा, दही की तरकारी, मटर के दाल का चुरा, कटहल के बीज की चटनी व कद्दू एवं कच्चे केले के छिलके की सब्जी भी बनती है। खीरे के छिलके की चटनी एवं मटर के छिलके की सब्जी यहीं की खासियत है। यहाँ अम्बल पानी बनता है जिसे खिचडी के साथ खाया जाता है। पके कट्वेल की चटनी बहुत अच्छी लगती है.

आचार व मुरब्बे : सामान्य आचारों के अलावा यहाँ की कुट्टी मिर्ची विश्व प्रसिद्ध है। बोर की राडी और टिकिया एवं कट्वेल का पाचक भी बहुत स्वादिस्ट होता है।
आम का मुरब्बा बहुत तरह का बनता था जिसमे फकिया, लच्छा, व गोलिया प्रसिद्ध है। छुहारे का मुरब्बा भी बनता था।


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कुछ निराले शहरवाली नाम

अजीमगंज के शहरवाली समाज में कुछ निराले नाम प्रचलित थे । इस प्रकार के नाम और कहीं भी देखने में नहीं आते हैं । कुछ नाम जो मुझे याद है उन्हें यहाँ पर लिख रहा हूँ। यदि आप लोगों को ऐसे कोई भी नाम और मालुम हो तो मुझे लिखने का कष्ट करें। अजीमगंज-जिआगंज-मुर्शिदाबाद के शहरवाली साथ के बारे में और भी कुछ जानकारी आप के पास हो तो जरूर मुझे बताएं। धन्यवाद।
नामावली:
पुरूष: घोंता, हुत्तु, नाडू, बेटा बाबु, नत्थू, गोलू, गोल, लोंदु, पोदु, खुद्दु, बुढा, फुचुआ, फत्तू, फुत्तुस, छेदु, चुलू, टुलू, उदु, सुदु, दुदू, कुमरू, हामू, झामू, बाह्जी, जर्मन, जापानी, हाबू, बाबू बच्चा, मिस्टर बाबू, पीला बाबू, लाल बाबू, नया बाबु, खोली भट्टाम, सिंटू, मिंटू, चीनी बाबू, लाली बाबू, बाबू राजा, बन्नू बाबू, तन्नु बाबू, लाख दो लाख।

स्त्री: लाडा, पाडा, पुप्पी, लोजेंस, बाण मति, मोंचुरिया, बीबी, रुबू, हांसी, छोटी मुन्नी, रानी मुन्नी, नन्ही मुन्नी, फुच्ची, नन्ही फुच्ची, खेंतो.


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