Friday, March 15, 2024

बंगाल की ऐतिहासिक जैन नगरी अजीमगंज-जियागंज के जिन मंदिर एवं दादाबाड़ी


बंगाल की ऐतिहासिक जैन नगरी अजीमगंज-जियागंज


पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद जिले में स्थित अजीमगंज-जियागंज ऐतिहासिक जैन नगरी है. भागीरथी (गंगा) नदी के दोनों किनारे बसी है या दोनों युगल नगरी. नबाबों के समय मुर्शिदाबाद बंगाल-बिहार- उड़ीसा इन तीन राज्यों की राजधानी थी और यहाँ का वैभव विश्वविख्यात था. नबाबों से यहाँ के समृद्धिशाली जैनों का नजदीकी सम्बन्ध था एवं जगत सेठ उस समय विश्व के धनाढ्य तम व्यक्ति थे. 

भागीरथी गंगा के किनारे बसा शहर 

उस समय वहां निवास करनेवाले जैन न केवल समृद्ध थे वल्कि अत्यंत धार्मिक एवं परोपकारी भी थे. उनलोगों ने अनेक सुविशाल, मनोरम स्थापत्य कला युक्त जिन मंदिर बनवाकर अजीमगंज-जियागंज को तीर्थ स्वरुप बना दिया था. जिन मंदिरों/ दादाबाड़ियों के अतिरिक्त अनेक विद्यालय, महाविद्यालय, चिकित्सा केंद्र, धर्मशाला, भोजनशाला आदि जन हितकर प्रतिष्ठानों का भी निर्माण करवाया था. 

अजीमगंज के जिन मंदिर 

अजीमगंज में कुल ८ जिन मंदिर एवं एक घर देरासर है. 


१. श्री नेमिनाथ स्वामी का मंदिर


मूलगंभारा श्री नेमिनाथ स्वामी मंदिर 


श्री नेमिनाथ स्वामी का मंदिर पंचायती मंदिर या बड़े मंदिर के नाम से जाना जाता है. पूर्व में यहाँ वासुपूज्य भगवन का एक प्राचीन मंदिर था. उसी स्थान पर श्री नेमिनाथ के मंदिर की भी स्थापना बाबू महासिंह मेघराज कोठारी परिवार द्वारा लगभग 125 वर्ष पूर्व करवाया गया. यहाँ कुल तीन गम्भारे हैं मूलनायक श्री नेमिनाथ स्वामी, श्री वासुपूज्य स्वामी, एवं श्री आदिनाथ स्वामी. मूल गम्भारे की तीन काले पाषाण की प्रतिमाएं सम्प्रतिकालीन मानी जाती है. 

इस परिसर में एक पौषाल (उपाश्रय), आयम्बिल शाला, भोजनशाला, एवं धर्मशाला भी है. यहाँ की नवपद ओली प्रसिद्द है. इस वर्ष 2024 आश्विन में यहाँ 108 ओली की तपस्या होनेवाली है. 

२. श्री चिंतामणि पार्श्वनाथ मंदिर 


मूलगंभारा श्री चिंतामणि पार्श्वनाथ स्वामी मंदिर


श्री चिंतामणि पार्श्वनाथ भगवान् के इस भव्य मंदिर का अभी पुनर्निर्माण हो रहा है. इस मंदिर में भी पहले श्री अजितनाथ भगवन का प्राचीन मंदिर था. उसी परिसर में बॉस में श्री चिंतामणि पार्श्वनाथ का मंदिर बनाया गया. मंदिर की सभी प्रतिमाएं अभी श्री नेमिनाथ भगवान् के मंदिर में रखी हुई है. 

हरख चंद गोलेच्छा परिवार का घर देरासर (छोटी शांतिनाथ जी) की प्रतिमाएं भी कालांतर में इसी मंदिर भी विराजमान कर दी गई थी. यहाँ श्वेताम्बर जैनों की एकमात्र रत्नमयी चौवीसी थी. गोलेछा परिवार द्वारा निर्मित एवं प्रतिष्ठित रत्नमयी चौवीसी में से कई प्रतिमाएं 1990 के दशक में चोरी हो गई थी जिनमे से कुछ वापस बरामद हुई थी. इन प्रतिमाओं के दर्शन आज भी हो सकते हैं. 

३. श्री सांवलिया पार्श्वनाथ मंदिर एवं दादाबाड़ी, रामबाग 

पांच गम्भारों एवं शिखर युक्त यह विशाल एवं भव्य मंदिर किन्ही अज्ञात यति जी के द्वारा निर्मित करवाया गया था. के साथ विशाल बाग बगीचे एवं एक सुन्दर तालाब इसकी शोभा में चार चाँद लगाते हैं. जीर्ण हो जाने के कारण वर्त्तमान में इस मंदिर का पुनर्निर्माण करवाया जा रहा है. आगामी महावीर जन्म कल्याणक दिवस पर काले पाषाण से निर्मित इस मंदिर की पुनर्प्रतिष्ठा परम पूज्य आचार्य श्री मुक्तिप्रभ सूरीश्वर जी के कर कमलों से होनेवाली है. 




मूलगंभारा रामबाग 


रामबाग स्थित श्री पार्श्वनाथ भगवान


इसी परिसर में एक विशाल दादाबाड़ी भी है. इस दादाबाड़ी में स्फटिक रत्न के चार विशाल चरण विराजमान हैं. इनमे एक भविष्य में होनेवाले इस अवसर्पिणी काल के अंतिम युगप्रधान आचार्य श्री दुप्पह सूरी का चरण भी है. इस दादाबाड़ी का जीर्णोद्धार प्रवर्तिनी साध्वी श्री शशिप्रभा श्री जी की प्रेरणा से हुआ है. 


रामबाग दादाबाड़ी में स्फटिक रत्न के प्राचीन चरण 



प्राचीन दादाबाड़ी के जीर्णोद्धार का दृश्य 

इस विशाल परिसर में गणधर गौतम गौशाला भी संचालित है जिसमे गायों के साथ घोड़े भी हैं. 


४. श्री सम्भवनाथ स्वामी मंदिर एवं दादाबाड़ी 

स्वनामधन्य बुधसिंह प्रताप सिंह दुगड़ परिवार के बाबू धनपत सिंह दुगड़ ने इस विशाल मंदिर का निर्माण करवाया था. मूल मंदिर में श्री सम्भवनाथ स्वामी की 77 इंच की विशाल पञ्च तिर्थी प्रतिमा विराजमान है. इस प्रतिमा को पालीताना से लाने के लिए नलहाटी से अजीमगंज तक 47 किलोमीटर की नई रेलवे लाइन बिछाई गई थी. यह दुगड़ परिवार की निजी रेलवे थी. 

श्री संभवनाथ स्वामी मंदिर 

मूल मंदिर की दाहिनी और एक पांच शिखर युक्त मंदिर और भी है. मंदिर के साथ एक सुन्दर दादाबाड़ी भी है. किसी समय यहाँ एक उपाश्रय भी था. 

५. श्री पद्मप्रभु स्वामी मंदिर 

श्रीमाल परिवार द्वारा निर्मित यह मंदिर भी विशाल है. अभी कुछ ही समय पूर्व इस मंदिर का जीर्णोद्धार करवा कर इसे भव्य स्वरुप दिया गया है. यहाँ श्री ऋषभदेव भगवान् का एक विशाल चरण  (रायण रूंख) भी स्थापित है.  जीर्णोद्धार के समय यहाँ नवीन रत्नमयी मूर्ति भी प्रतिष्ठित कराइ गई है.  

६. श्री गौड़ी पार्श्वनाथ स्वामी का मंदिर 

यह अजीमगंज का सबसे पुराण मंदिर है. यह बुधसिंह प्रताप सिंह दुगड़ परिवार का घर देरासर था. अभी कुछ समय पूर्व इस मंदिर का जीर्णोद्धार करवा कर इसे शिखरवद्ध मंदिर का रूप दिया गया है. यह मंदिर भागीरथी गंगा के किनारे बना हुआ है. 

श्री गौड़ी पार्श्वनाथ 


७. श्री सुमतिनाथ स्वामी का मंदिर

अजीमगंज के विख्यात नाहर परिवार द्वारा निर्मित श्री सुमतिनाथ स्वामी का मंदिर शहर के बीचोबीच स्थित है. अभी कुछ समय पूर्व इस मंदिर का जीर्णोद्धार करवा कर इसे भव्य स्वरुप दिया गया है. 


श्री सुमतिनाथ स्वामी मंदिर 


८.  श्री शान्तिनाथ स्वामी का मंदिर

रेल लाइन की दूसरी तरफ बारह द्वारी में यह एकमात्र जैन मंदिर है. यह लाल मंदिर के नाम से भी प्रसिद्द है. इस मंदिर का निर्माण संभवतः जगत सेठ जी की बहन ने करवाया था. कुछ वर्षों पूर्व इस मंदिर का भी जीर्णोद्धार करवाया गया था. 

श्री शांतिनाथ भगवान, अजीमगंज 


जियागंज के जिन मंदिर

जियागंज में कुल 4 जिनमंदिर एवं एक दादाबाड़ी है. इसके अतिरिक्त जियागंज से ४ किलोमीटर की दुरी पर महिमापुर एवं वहां से कुछ ही दुरी पर कठगोला का मंदिर है. 

श्री सम्भवनाथ स्वामी मंदिर, जियागंज 

यह जियागंज का प्रमुख एवं पंचायती मंदिर है जिसमे मूलनायक श्री सम्भवनाथ स्वामी हैं. इस मंदिर में सीढ़ियों से चढ़ कर जाना पड़ता है क्योंकि यह लगभग एक मंजिल जितनी ऊंचाई पर बना है. मंदिर के साथ एक उपाश्रय भी है जहाँ पर अब सभी धार्मिक क्रियाएं होती है. 

श्री विमल नाथ स्वामी मंदिर

राय बहादुर लक्ष्मीपत सिंह दुगड़ परिवार ने इस मंदिर का निर्माण करवाया था. मंदिर भव्य एवं कलात्मक बना हुआ है. इस मंदिर का जीर्णोद्धार अभी कुछ दिन पूर्व ही हुआ है और इसके बहार के स्वरुप को भी बहुत सुन्दर बनाया गया है. इस मंदिर के साथ एक धर्मशाला व आयम्बिल शाला भी है, इसलिए यह आमिल खता के नाम से भी प्रसिद्द है. 

श्री आदिनाथ स्वामी मंदिर

यह जियागंज का सबसे पुराना लगभग 250 वर्ष प्राचीन मंदिर है. मंदिर में लगे पुराने समय के टाइल्स से इसके पुराने होने का आभास होता है. यह मंदिर छजलानी परिवार द्वारा निर्मित है. 


कीरतबाग मंदिर, जियागंज 


कीरत बाग मंदिर एवं दादाबाड़ी 

अजीमगंज के रामबाग के सामान शहर से दूर किरतबाग विशाल परिसर में बना जिन मंदिर एवं दादाबाड़ी है. यहाँ पर गयसाबाद के प्राचीन मंदिर से लाई गई श्री वासुपूज्य स्वामी एवं श्री पार्श्वनाथ स्वामी की काले पाषाण की युगल प्रतिमा प्रतिष्ठित है. कुछ वर्षों पूर्व आचार्य श्री पद्मसागर जी के द्वारा इसका जीर्णोद्धार करवा कर इसे सुन्दर नवीन रूप दिया गया. यह परिसर मनोरम, विशाल बाग बगीचों से सुसज्जित है. 

महिमापुर (नशिपुर) 

महिमापुर में जगत सेठ द्वारा निर्मित प्राचीन श्री पार्श्वनाथ भगवान् का कसौटी पत्थर से निर्मित मंदिर था. पुरे विश्व में कसौटी पत्थर का यह एकमात्र मंदिर था. इसमें बंगाल के 8वीं शताब्दी के पाल वंश के राजा महिपाल का कसौटी का सिंहासन भी लगा हुआ था. पूरा मंदिर कसौटी पत्थर का था. कालांतर में इसका कसौटी पत्थर यहाँ से स्थानांतरित कर दिया गया. अब भी यहाँ जिनेश्वर देव का मंदिर है. 

श्री आदिनाथ स्वामी मंदिर, काठगोला

राय बहादुर लक्ष्मीपत सिंह दुगड़ परिवार ने इस मंदिर का निर्माण करवाया था. यह मंदिर अत्यंत विशाल है. मंदिर का परिसर अत्यंत विशाल है और लगभग 100 एकड़ भूमि में फैला है. इस परिसर में एक दादाबाड़ी भी है. मंदिर परिसर बाग़ बगीचों एवं बाबड़ियों से सुशोभित है. यहाँ एक सुन्दर महल भी बना हुआ है जो पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र है. इस मंदिर का सुउच्च विशाल सिंहद्वार अपने आप में अनूठा है. 

Jyoti Kothari
 (Jyoti Kothari is proprietor of Vardhaman Gems, Jaipur, representing Centuries Old Tradition of Excellence in Gems and Jewelry. He is a Non-resident Azimganjite.) www.vardhamangems.com

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Wednesday, March 13, 2024

अजीमगंज में नवपद ओली, मंडल पूजन एवं आयम्बिल की विषेशताएं

अजीमगंज में नवपद ओली, मंडल पूजन एवं आयम्बिल की विषेशताएं 

अजीमगंज में नवपद ओली  एवं आयम्बिल की विषेशताएं

जैन धर्म में सिद्धचक्र अर्थात नवपद का विशेष महत्व है. आश्विन एवं चैत्र मास की शुक्ल सप्तमी से पूर्णिमा तक नव दिन आयम्बिल कर नवपद की आराधना की जाती है. नवपद ओली का विशेष महत्व होने के कारण पुरे भारत में उत्साहपूर्वक यह तपस्या की जाती है. मयणा सुंदरी- श्रीपाल की कथा से प्रेरित नवपद ओली की तपस्या अनेक स्थानों में होती है, फिर अजीमगंज की विशेषता क्या है? 

मयणा सुंदरी- श्रीपाल नवपद आराधना करते हुए 

पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद जिले का अजीमगंज एक छोटा सा स्थान है. यहाँ जैनों की एक छोटी सी आवादी है. अपनी जाहो-जलाली के समय भी यहाँ जैनों की बस्ती 500 से अधिक नहीं थी. इतनी कम आवादी के बाबजूद यहाँ नवपद ओली करनेवालों की बड़ी संख्या होती थी. जिस समय मैं ओली करता था (1970 से 1980) उस समय यहाँ लगभग 300 लोग रहते थे और श्री नेमिनाथ स्वामी के मंदिर में 70-80 ओली होती थी. 


श्री नेमिनाथ स्वामी मंदिर के अंदर का दृश्य 

गुजरात में बड़ी संख्या में सभी तपस्याएं होती है परन्तु वहां जैनों की जनसँख्या भी बहुत अधिक है, इसलिए गुजरात से अजीमगंज की तुलना नहीं हो सकती. दुसरी बात ये है की गुजरात में प्रायः आयम्बिल में नमक एवं कुछ अन्य वस्तुएं भी उपयोग में ली जाती है जिससे आयम्बिल करना सरल हो जाता है. जबकि अजीमगंज में आयम्बिल में नमक या अन्य वस्तुओं का उपयोग नहीं होता है केवल एक अनाज एवं पानी ही काम में लिया जाता है. इससे आयम्बिल का भोजन नीरस एवं बेस्वाद होता है और तपस्वियों को अपनी रसनेन्द्रिय का विशेष संयम करना होता है. 

बिगत वर्षों में अजीमगंज में जैनों की जनसँख्या विशेष रूप से कम हो जाने के कारण ओली करनेवालों की संख्या भी बहुत कम हो गई, 2023 में यह संख्या १२ ही रह गयी. उस समय संघ द्वारा यह संकल्प लिया गया की अगले वर्ष नवपद ओली करनेवालों की संख्या बढ़ा कर 108 की जाये. इसमें सफलता भी मिली,  9 अक्टूबर से 17 अक्टुबर 2024 तक होनेवाली आश्विन ओली के लिए अब तक 75 नाम आ चुके हैं. अभी कार्यक्रम में सात महीने का समय शेष है और पूर्ण विश्वास है की संख्या 108 के पार चली जाएगी. 

अजीमगंज में नवपद मंडल पूजन की विषेशताएं

जैन धर्म में सिद्धचक्र एवं सिद्धचक्र महापूजन का विशेष महत्व है. भारत भर में समय समय पर सिद्धचक्र महापूजन का आयोजन होता रहता है. अजीमगंज में सिद्धचक्र महापूजन नवपद मंडल पूजन के नाम से होता है. यहाँ यह पूजन अत्यंत भक्तिभाव पूर्वक विशेष आडम्बर के साथ किया जाता है. इसकी एक विशेषता ये भी है की यह एक निश्चित दिन शरद पूर्णिमा (आश्विन ओली का अंतिम दिन) को ही होता है. यह पिछले लगभग 125-150 वर्षों से हो रहा है. पहले यह श्री सम्भवनाथ स्वामी के मंदिर में होता था और विगत 60-65 वर्षों से यह श्री नेमिनाथ स्वामी के पञ्चायती मंदिर में होता है. 

श्री सम्भवनाथ स्वामी मंदिर 

पूजन के लिए लकड़ी की एक चौरस चौकी पर सफ़ेद कपडा बिछाया जाता है और उस पर चावल, गेहूं, चना, मुंग और उड़द से नवपद के 9 पद बनाये जाते हैं. सिद्धचक्र यंत्र के शेष वलय रंगीन चावल से कलात्मक रूप से बनाये  जाते हैं. मांडला करने का काम ओली करनेवालों के द्वारा ही किया जाता है. इस कार्य को पूरा करने में 4 से 5 दिन लग जाते हैं. इस तरह ओली के तपस्वियों द्वारा बनाये गए कलात्मक मांडले की सुंदरता देखते ही बनती है. 

मनोहर कलात्मक नवपद मण्डल 


शरद पूर्णिमा के दिन विशेष विधि विधान से उत्कृष्ट द्रव्यों एवं उपकरणों से मंडल पूजन का कार्यक्रम होता है. नवग्रह, दस दिकपाल पूजन व वली वाकुल के बाद नवपद के अरिहंत, सिद्ध आदि 9 मूल पदों की पूजा होती है।  इसमें विशेष रूप से तैयार किये हुए पञ्च वर्णी गोले चांदी के सिंहासन में विराजमान कर नवपद के प्रथम वलय में चढ़ाया जाता है. यह पूजन भी केवल मात्र नवपद ओली के तपस्वियों द्वारा ही किया जाता है. अजीमगंज में गोला चढाने का विशेष महत्व है और इस समय पूरा श्री संघ उपस्थित रहकर इस पूजन की अनुमोदना करता है. 

नवपद जी की बड़ी पूजा करते स्नात्रिये 

गोला चढाने के बाद अन्य सभी वलयों की पूजा होती है और इसमें चांदी के बने हुए कलात्मक सुन्दर फलों, पान के पत्तों आदि का उपयोग होता है. अंत में नवपद की बड़ी पूजा पढ़ा कर कलश अभिषेक किया जाता है. इस प्रकार विशिस्ट रीती से अजीमगंज में नवपद मंडल संपन्न होता है.  


Jyoti Kothari 
(Jyoti Kothari is proprietor of Vardhaman Gems, Jaipur, representing Centuries Old Tradition of Excellence in Gems and Jewelry. He is a Non-resident Azimganjite.) www.vardhamangems.com

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Tuesday, March 12, 2024

अजीमगंज मे 108 नवपद ओली आराधना आश्विन 2024


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उद्देश्य और सारांश

अजीमगंज मे नवपद ओली की समृद्ध परम्परा रही है. यहां एक समय मे बड़ी संख्या मे ओलि हुआ करता था. और आज भी श्री नेमिनाथ स्वामी मंदिर मे ओली की तपस्या प्रति वर्ष होती है. इसी परम्परा को फिर से समृद्ध करने एवं पावन परंपरा को पुनरुज्जीवित करने हेतु आगामी वर्ष आश्विन महीने मे 2024 मे (9 से 17 अक्टुबर) 108 ओली हो ऐसा संकल्प लिया गया है. आप से भी परिवार / मित्र जनों सहित सम्मिलित होने हेतु निवेदन है. आप सभी के सम्मिलित प्रयास एवं नव पद जी के प्रभाव से यह प्रयास अवश्य सफल होगा और 2024 के आश्विन मे 108 ओलि जरूर होगा.
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नवपद मंडल पूजन, अजीमगंज 

प्रति वर्ष की भांति गत वर्ष 2023 में नवपद मंडल पूजन कराने हेतु अजीमगंज गया था. कुल 12 लोग नवपद ओली कर रहे थे एक ओली अष्टापद की थी. पारणे के दिन तपस्वी अभिनन्दन समारोह था उसमे संघ के मंत्री एवं मेरे सहपाठी श्री सुनील जी चौरड़िया ने बताया की कुछ वर्ष पूर्व ओली करनेवालों की संख्या मात्र 2 रह गई थी. अनेक प्रयत्नों से अब ये संख्या 12 हुई है. उन्होंने आह्वान किया की अगले वर्ष यह संख्या 20 हो.


श्री नेमिनाथ भगवन, अजीमगंज 

 
उसी समय नवपद जी की प्रेरणा से मेरे मुँह से निकला 20  नहीं 108 !! उपस्थित सभी इसे मज़ाक में ले रहे थे, तभी मेरे मुँह से निकला (यह सब मानो नवपद जी के प्रभाव से ही मेरे मुँह से निकल रहा था), नहीं, 108 !! मैंने आगे कहा "यदि 108 का संकल्प हो तो 20 मैं अकेले जोड़ूंगा". उसी समय उपस्थित लोगों से बात करना शुरू किया, उन्हें प्रेरित किया, और नवपद जी की कृपा से २१ नाम उसी समय जुड़ गए. इसमें एक नाम संघ के अध्यक्ष संजीव जी बैद का भी था. इस घटना से संकल्प को वल मिला और उपस्थित सभी ने संकल्प लिया की अगले वर्ष आश्विन माह 2024 में 108 ओली की संख्या जरूर पुरी करेंगे.

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अजीमगंज में नवपद ओली, मंडल पूजन एवं आयम्बिल की विषेशताएं 
 

प पू प्रवर्तिनी श्री शशिप्रभा श्री जी महाराज उस समय शिष्या मंडली सहित चातुर्मास हेतु कोलकाता में विराजमान थीं. अजीमगंज से कोलकाता आने के बाद 1  नवम्बर 2023  को उनसे मिलकर पूरे घटना क्रम की जानकारी दी एवं उन्हें 108 ओलि के लिए लोगों को प्रेरित करने के लिये निवेदन किया. उन्होंने हर्षित होते हुए इस पुनीत कार्य को पूर्ण समर्थन देना स्वीकार किया. उनसे बात होती रही और चातुर्मास समापन के कार्यक्रम में उनकी प्रेरणा से 8 लोग ओली जी के लिये जुड़ गए. 

चातुर्मास समाप्ति के बाद कोलकाता व हावड़ा में विभिन्न कार्यक्रमों में उन्होंने प्रेरणा देने का कार्य जारी रखा. इसी बीच खड़गपुर में उनकी तीन समीपस्था साध्वियों के दीक्षा स्वर्ण जयंती कार्यक्रम की घोषणा हुई. मैंने निवेदन किया की साध्वी जी महाराजों की 50 वर्ष पूर्ति उपलक्ष्य में कम से कम 50  लोगों को जोड़ें। उन्होंने इस निवेदन को सहर्ष स्वीकार किया और कहा कि कम से कम 50 लोगों को तो वो जोड़ ही देंगी. उन्होंने कार्यक्रम को आशीर्वाद प्रदान किया और कहा कि यह लक्ष्य अवश्य पूरा होगा. 


प्रवर्तिनी साध्वी श्री शशिप्रभा श्री जी महाराज 


इस तरह पूज्य श्री के आशीर्वाद एवं संघ के अध्यक्ष, मंत्री एवं अन्य सभी के सम्मिलित प्रयास से कड़ी से कड़ी जुड़ती गई. अनेक लोगों ने आगे बढ़ कर प्रेरणा देना और अन्य लोगों को जोड़ना शुरू किया, इस तरह कारवाँ बढ़ता गया. प्रेरणा देने में श्रीमती डॉली गोलेच्छा, पिंकी बैद, शशिलता छाजेड़, मधुमिता धाड़ीवाल, श्री संजीव बैद, सुनील चौरड़िया, संजय बैद, मोहित बोथरा, स्नेहिल बोथरा आदि ने सराहनीय भूमिका का निर्वहन किया. (प्रेरक में यदि गलती से किसी का नाम छूट गया हो तो सूचित करें, उनका नाम जोड़ देंगे). पूज्या प्रवर्तिनी साध्वी जी, प्रेरकों, संघ के सदस्यों सभी के सम्मिलित प्रयास से अब तक 75 नाम जुड़ चुके हैं और सफर जारी है. पूरा विश्वास है की जल्द ही संख्या 108 के भी पार चली जाएगी.

 ओली करनेवालों की सम्पूर्ण आवास, भोजन, आयम्बिल, पारणे आदि की सभी व्यवस्था अजीमगंज श्री संघ की और से की जाएगी. यह सभी व्यवस्था साधर्मी वात्सल्य के अंतर्गत निःशुल्क रहेगी. कृपया शीघ्र अपना नाम लिखवाएं.

अजीमगंज में नवपद ओली का इतिहास जो जानना जरूरी है  

श्री सम्भवनाथ स्वामी, अजीमगंज 


अजीमगंज मे श्री धनपत सिंह जी दुगड ने श्री सम्भव नाथ स्वामी मंदिर के प्रतिष्ठा के समय से ही नवपद मंडल पूजन की परंपरा का शुभारंभ किया. श्री धनपत सिंह जी दुगड के पौत्र श्री सुरपत सिंह जी दुगड ने भी आजीवन ओलि की आराधना कर इस परम्परा को वल प्रदान किया. उनके पुत्र श्री नरेंद्र पत सिंह दुगड भी जब तक अजीमगंज रहे तब तक श्री सम्भव नाथ स्वामी मंदिर मे नवपद मंडल पूजन की परंपरा को चालू रखा. 

 इसके बाद श्री हरख चंद जी रुमाल ने 70 वर्ष पूर्व श्री नेमिनाथ जी के मंदिर मे नवपद मंडल पूजन की परंपरा का शुभारंभ किया, जो की अब तक चल रही है. रुमाल जी की पुत्री श्रीमती तिलक सुन्दरी नौलखा परिवार आज भी इस परम्परा को समृद्ध करने मे अग्रणी है.

 श्री धनपत सिंह जी दुगड की 2 पौत्री का विवाह अजीमगंज के कोठारी एवं बोथरा परिवार मे हुआ था. बाद के दिनों मे इन दोनों परिवार ने अजीमगंज मे नवपद ओलि की परम्परा को आगे बढ़ाने मे विशेष योगदान किया. इस सम्बंध मे श्री मोती चंद जी एवं जगत चंद जी बोथरा का नाम उल्लेखनिय है.श्री परिचंद जी बोथरा परिवार द्वारा आमिल एवं पारने का पूरा खर्च आज तक किया जा रहा है. कोठारी एवं बोथरा परिवार मे लगभग सभी लोग ओलि की तपस्या करते थे साथ ही क्रिया आदि कराने मे भी विशेष भूमिका होती थी. 

 श्री समरेन्द्र पत जी कोठारी एवं श्री धीरेन्द्र पत जी कोठारी ने अनेक वर्षों तक नवपद मंडल पूजन हेतु कोलकाता से धन संग्रह करने एवं सामग्री आदि की व्यवस्था करने मे अपनी भूमिका निभाइ. श्री बहादूर सिंह जी एवं श्री राजेद्र सिंह जी बच्छावत परिवार व वर्तमान मे चौरड़िया परिवार का उल्लेख करना भी आवश्यक है. इस प्रकार अन्य भी अनेक लोगों के सहयोग से नवपद मंडल पूजन एवं ओलि की परम्परा आज तक चल रही है. 

मंडल जी के पूजा की सभी विधि यति श्री करमचंद जी और कीर्ति चन्द जी की देखरेख में होता था. दोनों संस्कृत के अच्छे विद्वान थे एवं स्पष्ट और शुद्ध उच्चारण से विधि विधान करवाते थे. उन दोनों के बाद श्री गजेंद्र पत जी कोठारी व उनके बाद श्री विजयपाल सिंह जी बच्छावत मंडल जी की पूजा निरंतर रूप से करवाते रहे. श्री विजयपाल सिंह जी बच्छावत गले के कैंसर से पीड़ित हो गए थे और शारीरिक अवस्था अत्यंत प्रतिकूल थी. इसके बावजूद मेरे निवेदन पर वो अंतिम बार मंडल जी की पूजा करवाने पधारे थे, एवं सुन्दर तरीके से पूजा करवाई थी. 

अंतिम बार नवपद मंडल पूजन करवाते हुए श्री विजयपाल सिंह जी बच्छावत  

 १९७० व ८० के दशक की बात है जब हमलोग अजीमगंज में ओली किया करते थे, उस समय ओली जी की सभी क्रिया करवाने मे श्री बहादुर सिंह जी बच्छावत की बड़ी भूमिका रहती थी. देव वंदन, प्रतिक्रमण आदि के ज्यादातर सूत्र वो ही बोलते थे. श्री निर्मल चंद जी बोथरा का गला बहुत अच्छा था और वो मधुर कंठ से भजन और पूजा गाते थे. श्री गजेन्द्र पत जी कोठारी संस्कृत मे चैत्य वंदन और स्तुति बोला करते थे. श्री समरेन्द्र पत जी कोठारी ओली तो नही करते पर कभी कोलकाता से आते तो प्रतिक्रमण मे गंभीर आवाज मे बड़ी शांति आदि बोलते थे. आमिल खाते मे श्रीमती कनक जी कोठारी और भानुमति जी बच्छावत बहुत सारी व्यवस्था संभालती थी.

रसोई का काम बिबली बाइ जी आदि के देखरेख मे होता था. कालीपद बर्तन धोने बगैरह काम किया करता था. मंदिर मे बड़े पुजारी छेल जी सब इंतजाम देखते थे पर छोटे पुजारी पृथ्वी चंद जी बड़े मस्त स्वभाव के थे. वो भरपूर मनोरंजन भी करते थे. 

 नव पद की महिमा अनंत है

कहते हैं  "नव पद महिमा जग मे मोटी, गणधर पार न पाए रे" 

 ऐसे नव पद का महत्व नवपद जी की पूजा (जिसे हम गाते रहते हैं) मे बताया गया है. यह पूजा उस समय के तीन अत्यंत समर्थ विद्वान आचार्य ज्ञान विमल सूरी, उपाध्याय यशोविजय जी, एवं उपाध्याय श्रीमद देवचंद जी की सम्मिलित रचना है. नवपद जी के रहस्य को इसी पूजा के माध्यम से जानने का छोटा सा प्रयास किया गया है. 
जानने के लिए इस लिंक पर क्लीक करें. 

Jyoti Kothari (Jyoti Kothari is the proprietor of Vardhaman Gems, Jaipur, representing Centuries Old Tradition of Excellence in Gems and Jewelry. He is a Non-resident Azimganjite.) www.vardhamangems.com

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Monday, March 11, 2024

ভগবান মহাবীর ও বাংলায় জৈন ধর্ম

ভগবান মহাবীর ও বাংলায় জৈন ধর্ম 

"জগৎ জুড়িয়া এক জাতি আছে, সে জাতির নাম মানুষ জাতি।
এক ই পৃথিবীর অন্নে লালিত, এক ই রবি শশী মোদের সাথী"

বাংলা ভাষার এইটি একটি প্রসিদ্ধ কবিতা। ভগবান মহাবীর কিন্তু আর ও আগে চলে গিয়েছিলেন। তিনি বললেন শুধু মানুষ নয় সমস্ত জীবজগত ই সম্মিলিত রূপে এক ই জাতি। তিনি জৈন আগম 'স্থানাংগ সূত্রে' উদাত্ত স্বরে ঘোষণা করলেন "এগে আয়া" অর্থাৎ সমস্ত জীব জগৎ এক. বসুধৈব কুটুম্বকমের এই অবধারণা ই মহাবীর কে অন্য্ সমস্ত মহাপুরুষদের থেকে ভিন্ন করে, এবং তাকে সর্বশ্রেষ্ঠ রূপে প্রস্তুত করে.

ভগবান মহাবীরের প্রাচীন চিত্র 

ভগবান মহাবীরের উপদেশ 

মহাবীরের অন্য্ একটা বিশেষত্ব নিয়ে চর্চা না করলে সেই মহাপুরুষকে ঠিক মত্ বোঝা যাবে না. কেবল জ্ঞান প্রাপ্তির পর তিনি সর্বজ্ঞ হলেন, তারপর উপদেশ প্রারম্ভ করলেন। তিনি যখন তার প্রথম উপদেশ দিলেন তখন কিন্তু সেটা নিজের নামে শুরু করেন নি. তিনি কখন ই বলেন নি যে তিনি কোনো নতুন ধর্ম প্রবর্তন করছেন। তিনি বললেন, আমার আগে অনন্ত অর্হৎ বা তীর্থঙ্কর হয়েছেন এবং ভবিষ্যতে ও হবেন। তারা সবাই এই বলেছেন, এবং ভবিষ্যতে বলবেন যে জীব মাত্রের হিংসা না করা অর্থাৎ অহিংসা ই একমাত্র ধর্ম। 

তিনি যে ধর্মের কথা বলছেন সেটা কিন্তু নতুন কিছু নয়, সেটা একটা নিত্য, সনাতন প্রবাহ। যেমন নদির প্রবাহ মাঝে মাঝে অবরুদ্ধ হয়ে যায়, এবং কোনো বিশিষ্ট শক্তিশালী মানুষ সেই প্রবাহ কে আবার  খুলে দেয় ঠিক সেই ভাবে ধর্মের প্রবাহ অবরুদ্ধ হলে, তার মধ্যে বিকৃতি এলে তীর্থঙ্কর জন্ম নেন এবং ধর্মের সেই চিরন্তন স্রোত কে পুনরায় গতি প্রদান করেন, ধর্ম রূপ গঙ্গা কে স্বচ্ছ করেন। মহাবীর দ্বারা উপদেশিত জৈন ধর্ম, যার প্রাচীন নাম অর্হৎ বা নির্গ্রন্থ ধর্ম, এই ধর্মে ব্যক্তি পূজার কোনো স্থান নেই.

২৪ তীর্থঙ্কর, আজিমগঞ্জ, মুর্শিদাবাদ 

কেবল মাত্র এই কালখন্ডে, জৈন পরিভাষায় যাকে 'অবসর্পিনী কাল' বলা হয়, ঋষভদেব থেকে প্রারম্ভ করে পার্শ্বনাথ এবং মহাবীর পর্য্যন্ত ২৪ জন তীর্থঙ্কর হয়েছেন, তারা সবাই যা বলেছেন তাই জৈন ধর্ম। মহাবীর তাদের থেকে ভিন্ন কিছু বলেন নি, মাত্র কাল সাপেক্ষে তার ব্যাখ্যা করেছেন।

জাতি প্রথার বিরোধ মহাবীরের অন্যতম অবদান। মহাবীরের সময় বৈদিক ধর্মের এক বিকৃত রূপ সামনে এসেছিল, যার ফলে শূদ্রের উপর প্রচন্ড নির্যাতন হতো. জন্ম থেকে নির্ধারিত হতো জাতি, এবং মানুষের নিজের কোনো স্বাধীনতা ছিল না. মহাবীরের উপদেশ সেই সময়ে শূদ্র এবং তথাকথিত নীচে জাতির জন্য সঞ্জীবনী হয়েছিল। তিনি জন্ম থেকে নয় কিন্তু কর্ম থেকে জাতি স্বীকার করেন।  ভগবান মহাবীর ঘোষণা করলেন.

গণধর গৌতম 


"কম্মনা বম্ভনো হোই, কম্মুনা হোই ক্ষত্তিয়ো,
   কম্মনা বৈশ্য হোই, সুদ্দো হোই কম্মুনা"

অর্থাৎ কর্ম থেকে মানুষ ব্রাহ্মণ হয়, কর্ম থেকেই ক্ষত্রিয় হয়, কর্ম থেকেই বৈশ্য হয় এবং কর্ম থেকেই শূদ্র হয়. জন্ম থেকে নয়, কর্ম অর্থাৎ তার কার্য,  ব্যবহার, দক্ষতা ইত্যাদি থেকে তার জাতি নির্ধারিত হবে. ভগবান মহাবীর তার শ্রমণ সংঘে সমস্ত জাতির লোক কে গ্রহণ করেছিলেন। তার শিষ্যদের মধ্যে ইন্দ্রভূতি গৌতম  প্রমুখ ব্রাহ্মণ; শ্রেণিক, প্রসেনজিৎ প্রমুখ ক্ষত্রিয়, শালিভদ্র প্রমুখ বৈশ্য এবং হরিকেশবল ইত্যাদি শূদ্ররা স্থান পেয়েছিলেন। তিনি স্ত্রীদের সমুচিত মর্যাদার সাথে শ্রমনী সংঘে দীক্ষিত করেন, চন্দনবালা হয়েছিলেন তার সাধ্বী প্রমুখা। মহাবীর বলেছিলেন যে চার বর্ণের স্ত্রী -পুরুষ এমনকি নপুংসক ও সম্যক জ্ঞান দর্শন চারিত্র রূপ ত্রিরত্নের সাধনার বলে কেবল জ্ঞান প্রাপ্ত করে, সর্বজ্ঞ হয়ে মোক্ষ প্রাপ্তি করতে পারেন অর্থাৎ মানুষ্য মাত্র ই মুক্তি অর্থাৎ নির্বানের অধিকারী, এর মধ্যে জাতি, বর্ণ , লিঙ্গ ইত্যাদির কোনো ভেদ নেই.

ভগবান মহাবীরের অহিংসার অবধারণা ও পরিবেশ সংরক্ষণ

ভগবান মহাবীরের অহিংসার অবধারণা পরিবেশ সংরক্ষণের ক্ষেত্রে ও বিশেষ ভাবে উপযোগী। মহাবীর ই বিশ্বে একমাত্র যিনি কেবলমাত্র প্রাণীজগৎ নয়, কিন্তু উদ্ভিদের মধ্যেও ও প্রাণ আছে এই কথা  বলেছিলেন। পরবর্তী কালে বাঙালি বৈজ্ঞানিক জগদীশ চন্দ্র বসু এই কথা টা প্রমান করেন মহাবীরের ২৫০০ বছর  পরে। মহাবীরের বিরাট চিন্তন আর ও আগে তিনি মাটি, জল, অগ্নি, এবং বাতাসের মধ্যে ও জীব আছে বলেছেন এবং উদ্ভিদ, মাটি, জল, বায়ু, এবং অগ্নি এই পাঁচ তত্বের ও হিংসার নিষেধ করেছেন। এই পাঁচ তত্বের সাহায্য ছাড়া জীবন নির্বাহ অসম্ভব সেই জন্য মহাবীর উপদেশ দিলেন এদের যথাসম্ভব সীমিত ব্যবহার। আজকের পরিবেশ সংরক্ষণের এইটাই মূল সিদ্ধান্ত এবং আজকের ব্যবস্থায় Sustainable Development নাম অভিহিত।

পরিবেশ সংরক্ষণ সাঙ্গানের জৈন দাদাবাড়ি, জয়পুর 


ভগবান মহাবীরের জীবন 

সময়ের অতীতের জানলায় উঁকি দিয়ে দেখলে, পেছনে ২৬০০ বছরের ইতিহাস, তৎকালীন মগধ দেশের ক্ষত্রিয়কুন্ড নগরের রাজা সিদ্ধার্থ এবং মহারানী ত্রিশলার ঘরের আঙ্গনে এক সুন্দর রাজপুত্রের জন্ম দেখতে পাওয়া যাবে। রাজপুত্র হলে হবে কি, সংসারের মনোরম ভোগের প্রতি কোনো রুচি নেই. প্রচন্ড পরাক্রমী এবং দেবদুর্লভ শক্তি থাকা সত্বে ও সে তো শান্তির পূজারী। হৃদয়ে করুনার ধারা বয়. যৌবন বয়সে সদা জ্ঞান চিন্তনে সমাধিস্থ। মাত্র ৩০ বছর বয়সে শুধু রাজ্য নয় সদ্য বিবাহিতা রূপ লাবণ্যময়ী পত্নী যশোদা এবং একমাত্র সদ্যজাত পুত্রী সুদর্শনার মোহ ত্যাগ করে বৈরাগ্য ধারণ করে নির্গ্রন্থ দীক্ষা গ্রহণ করে গৃহত্যাগ করলেন চির শান্তি এবং পরম জ্ঞানের খোঁজে। নিজের হাতে সমস্ত অলংকার ই নয় দেহের বস্ত্র ও ত্যাগ করলেন, আর উপডে দিলেন অপরূপ লাবণ্য যুক্ত নিজের কেশ. 

তারপর প্রারম্ভ হলো দেশ ভ্রমণ; না কোনো ঘোড়া বা গাড়িতে নয় পায়ে হেঁটে। প্রায় রাত্রিবাস কোনো পাহাড়ের গুহায় অথবা ঘন অরণ্যের মধ্যে কোনো গাছের নীচে, কখনো কখনো কোনো শূন্য গৃহে বা দেবালয়ে। ঘন জঙ্গলে জীব জন্তুর আক্রমণ হোক বা মশা কামড়ায়; মহাবীর নিজের সাধনায় অবিচলিত। সাড়ে বার বছরের সাধনায় ঘুমান নি, বসেন ও নি, অতন্দ্রিত ভাবে দাঁড়িয়ে দাঁড়িয়ে নিজের আত্ম সাধনায় নিরত ছিলেন মহাবীর।

ভগবান মহাবীরের গৃহত্যাগ 

ভগবান মহাবীর ও বঙ্গদেশ 

মগধ থেকে বঙ্গ , গৌড়, কলিঙ্গ, আর উৎকল বেশি দূরে নয়. বর্তমান পশ্চিম বঙ্গ তার পদযাত্রার সাক্ষী হয়েছিল। জৈন আগমে বর্ণিত হয়েছে যে সাধনা কালে মহাবীর রাঢ় দেশের ও যাত্রা করে তাম্রলিপ্ত বন্দর পর্য্যন্ত এসেছিলেন। বাংলার বর্ধমান এবং বীরভূম জেলা মহাবীরের নাম আজ ও বহন করছে। মুর্শিদাবাদের কর্ণসুবর্ণ (রাঙামাটি) ও আজিমগঞ্জ (তৎকালীন জৈনেশ্বর ডিহি) ও হয়েছিল তার পদযাত্রার সাক্ষী। বাঁকুড়া, বীরভূম, বর্ধমান, পুরুলিয়া ইত্যাদি জেলায় আজ ও ছড়িয়ে আছে অসংখ্য জৈন মন্দিরের ধ্বংসাবশেষ


ভগবান মহাবীরের ১৫০ বছর পরে সমগ্র পূর্ব ভাৱতে  ভীষণ দুর্ভিক্ষ হয়েছিল। সেই দুর্ভিক্ষ চলে ১২ বছর পর্য্যন্ত। সেই সংকট সময়ে জৈন সাধুদের কঠিন জীবনচর্যা নির্বাহ করা প্রায় অসম্ভব হয়ে পড়েছিল। সেই সময়ে অনেক জৈন সাধুগণ অনশন করে সমাধি গ্রহণ করেন, অনেকে দক্ষিণ ভারতের দিকে প্রয়াণ করেন। সেই সময়ের প্রমুখ আচার্য ভদ্রবাহু পাটলিপুত্রের রাস্তায় নেপাল গিয়ে নিজের সাধনা কে সমর্পিত করলেন। সেই সময় থেকে পূর্ব ভারতে জৈন ধর্মের হ্রাস প্রারম্ভ হয় এবং দক্ষিণ ভারতে প্রাদুর্ভাব।

সরাক দের মন্দির 

সরাক জৈন

সেই সময়ের জৈন সাধুদের অভাবে ধর্মাবলম্বীগনের পক্ষে নিজের ধর্মে স্থির থাকা কঠিন হয়ে যায় কিন্তু তারা জৈন ধর্মের মূল আচরণ অহিংসা কে বজায় রাখেন। এই সম্প্রদায় পশ্চিম বঙ্গে সরাক নামে অভিহিত। সরাক শব্দ জৈন গৃহীদের জন্য প্রযুক্ত  শ্রাবক শব্দের তদ্ভব শব্দ। সরাক জাতির লোকেরা আজ ও বিশাল সংখ্যায় পশ্চিম বাংলার বীরভূম, বর্ধমান, বাঁকুড়া, পুরুলিয়া ইত্যাদি জেলায় বসবাস করেন।

বর্তমান কালে পশ্চিম বাংলায় জৈন ধর্ম 

পরেশনাথ মন্দির , মানিকতলা কোলকাতা 


সরাকরা ছিলেন বাংলার মূল নিবাসী জৈন. কিন্তু কালক্রমে তারা জৈন ধর্মের মুখ্য ধারার বাইরে চলে যান. মধ্যে যুগে রাজস্থান এবং গুজরাট থেকে প্রবাসী জৈনরা এসে বঙ্গ দেশে বসবাস আরাম্ভ করেন। বর্তমানে জৈন বলতে এই প্রবাসী রাজস্থানি এবং গুজরাটি জৈন কে ই বোঝায়।  

এক সময়ে মালদহ জেলার রাজমহল এবং মুর্শিদাবাদ জেলার কাশিমবাজার, গয়সবাদ, আজিমগঞ্জ, জিয়াগঞ্জ, মাহিমাপুর ইত্যাদি ছিল প্রবাসী জৈনদের মুখ্য কেন্দ্র। কিন্তু বর্তমানে জৈনদের সর্বাধিক সংখ্যা কলকাতায় বসবাস করেন। কোলকাতায় অনেক জৈন মন্দির আছে  যার মধ্যে মানিকতলা স্থিত পরেশনাথ মন্দির বিশ্ববিখ্যাত। বৃহত্তর কলকাতা তে ও অনেক জৈন মন্দির আছে. 

 আজিমগঞ্জ, জিয়াগঞ্জ, এবং মাহিমাপুরে ১০০ থেকে ২৫০ বছর পুরোনো অনেক সুন্দর স্থাপত্য যুক্ত মন্দির দেখতে পাওয়া যাবে। এছাড়া বীরভূম জেলার সাঁইথিয়া, বোলপুর, বর্ধমান জেলার দুর্গাপুর এবং আসানসোল, মেদিনীপুর জেলার খড়্গপুর, পুরুলিয়া জেলার সান্তালডিহ ইত্যাদি স্থানে ও জৈন মন্দির বিগত ৩০-৪০ বছরে নির্মিত হয়েছে। 

Jyoti Kothari, proprietor, of Vardhaman Gems, Jaipur, represents Centuries-Old Tradition of Excellence in Gems and Jewelry.

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