Friday, March 15, 2024

बंगाल की ऐतिहासिक जैन नगरी अजीमगंज-जियागंज के जिन मंदिर एवं दादाबाड़ी


बंगाल की ऐतिहासिक जैन नगरी अजीमगंज-जियागंज


पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद जिले में स्थित अजीमगंज-जियागंज ऐतिहासिक जैन नगरी है. भागीरथी (गंगा) नदी के दोनों किनारे बसी है या दोनों युगल नगरी. नबाबों के समय मुर्शिदाबाद बंगाल-बिहार- उड़ीसा इन तीन राज्यों की राजधानी थी और यहाँ का वैभव विश्वविख्यात था. नबाबों से यहाँ के समृद्धिशाली जैनों का नजदीकी सम्बन्ध था एवं जगत सेठ उस समय विश्व के धनाढ्य तम व्यक्ति थे. 

भागीरथी गंगा के किनारे बसा शहर 

उस समय वहां निवास करनेवाले जैन न केवल समृद्ध थे वल्कि अत्यंत धार्मिक एवं परोपकारी भी थे. उनलोगों ने अनेक सुविशाल, मनोरम स्थापत्य कला युक्त जिन मंदिर बनवाकर अजीमगंज-जियागंज को तीर्थ स्वरुप बना दिया था. जिन मंदिरों/ दादाबाड़ियों के अतिरिक्त अनेक विद्यालय, महाविद्यालय, चिकित्सा केंद्र, धर्मशाला, भोजनशाला आदि जन हितकर प्रतिष्ठानों का भी निर्माण करवाया था. 

अजीमगंज के जिन मंदिर 

अजीमगंज में कुल ८ जिन मंदिर एवं एक घर देरासर है. 


१. श्री नेमिनाथ स्वामी का मंदिर


मूलगंभारा श्री नेमिनाथ स्वामी मंदिर 


श्री नेमिनाथ स्वामी का मंदिर पंचायती मंदिर या बड़े मंदिर के नाम से जाना जाता है. पूर्व में यहाँ वासुपूज्य भगवन का एक प्राचीन मंदिर था. उसी स्थान पर श्री नेमिनाथ के मंदिर की भी स्थापना बाबू महासिंह मेघराज कोठारी परिवार द्वारा लगभग 125 वर्ष पूर्व करवाया गया. यहाँ कुल तीन गम्भारे हैं मूलनायक श्री नेमिनाथ स्वामी, श्री वासुपूज्य स्वामी, एवं श्री आदिनाथ स्वामी. मूल गम्भारे की तीन काले पाषाण की प्रतिमाएं सम्प्रतिकालीन मानी जाती है. 

इस परिसर में एक पौषाल (उपाश्रय), आयम्बिल शाला, भोजनशाला, एवं धर्मशाला भी है. यहाँ की नवपद ओली प्रसिद्द है. इस वर्ष 2024 आश्विन में यहाँ 108 ओली की तपस्या होनेवाली है. 

२. श्री चिंतामणि पार्श्वनाथ मंदिर 


मूलगंभारा श्री चिंतामणि पार्श्वनाथ स्वामी मंदिर


श्री चिंतामणि पार्श्वनाथ भगवान् के इस भव्य मंदिर का अभी पुनर्निर्माण हो रहा है. इस मंदिर में भी पहले श्री अजितनाथ भगवन का प्राचीन मंदिर था. उसी परिसर में बॉस में श्री चिंतामणि पार्श्वनाथ का मंदिर बनाया गया. मंदिर की सभी प्रतिमाएं अभी श्री नेमिनाथ भगवान् के मंदिर में रखी हुई है. 

हरख चंद गोलेच्छा परिवार का घर देरासर (छोटी शांतिनाथ जी) की प्रतिमाएं भी कालांतर में इसी मंदिर भी विराजमान कर दी गई थी. यहाँ श्वेताम्बर जैनों की एकमात्र रत्नमयी चौवीसी थी. गोलेछा परिवार द्वारा निर्मित एवं प्रतिष्ठित रत्नमयी चौवीसी में से कई प्रतिमाएं 1990 के दशक में चोरी हो गई थी जिनमे से कुछ वापस बरामद हुई थी. इन प्रतिमाओं के दर्शन आज भी हो सकते हैं. 

३. श्री सांवलिया पार्श्वनाथ मंदिर एवं दादाबाड़ी, रामबाग 

पांच गम्भारों एवं शिखर युक्त यह विशाल एवं भव्य मंदिर किन्ही अज्ञात यति जी के द्वारा निर्मित करवाया गया था. के साथ विशाल बाग बगीचे एवं एक सुन्दर तालाब इसकी शोभा में चार चाँद लगाते हैं. जीर्ण हो जाने के कारण वर्त्तमान में इस मंदिर का पुनर्निर्माण करवाया जा रहा है. आगामी महावीर जन्म कल्याणक दिवस पर काले पाषाण से निर्मित इस मंदिर की पुनर्प्रतिष्ठा परम पूज्य आचार्य श्री मुक्तिप्रभ सूरीश्वर जी के कर कमलों से होनेवाली है. 




मूलगंभारा रामबाग 


रामबाग स्थित श्री पार्श्वनाथ भगवान


इसी परिसर में एक विशाल दादाबाड़ी भी है. इस दादाबाड़ी में स्फटिक रत्न के चार विशाल चरण विराजमान हैं. इनमे एक भविष्य में होनेवाले इस अवसर्पिणी काल के अंतिम युगप्रधान आचार्य श्री दुप्पह सूरी का चरण भी है. इस दादाबाड़ी का जीर्णोद्धार प्रवर्तिनी साध्वी श्री शशिप्रभा श्री जी की प्रेरणा से हुआ है. 


रामबाग दादाबाड़ी में स्फटिक रत्न के प्राचीन चरण 



प्राचीन दादाबाड़ी के जीर्णोद्धार का दृश्य 

इस विशाल परिसर में गणधर गौतम गौशाला भी संचालित है जिसमे गायों के साथ घोड़े भी हैं. 


४. श्री सम्भवनाथ स्वामी मंदिर एवं दादाबाड़ी 

स्वनामधन्य बुधसिंह प्रताप सिंह दुगड़ परिवार के बाबू धनपत सिंह दुगड़ ने इस विशाल मंदिर का निर्माण करवाया था. मूल मंदिर में श्री सम्भवनाथ स्वामी की 77 इंच की विशाल पञ्च तिर्थी प्रतिमा विराजमान है. इस प्रतिमा को पालीताना से लाने के लिए नलहाटी से अजीमगंज तक 47 किलोमीटर की नई रेलवे लाइन बिछाई गई थी. यह दुगड़ परिवार की निजी रेलवे थी. 

श्री संभवनाथ स्वामी मंदिर 

मूल मंदिर की दाहिनी और एक पांच शिखर युक्त मंदिर और भी है. मंदिर के साथ एक सुन्दर दादाबाड़ी भी है. किसी समय यहाँ एक उपाश्रय भी था. 

५. श्री पद्मप्रभु स्वामी मंदिर 

श्रीमाल परिवार द्वारा निर्मित यह मंदिर भी विशाल है. अभी कुछ ही समय पूर्व इस मंदिर का जीर्णोद्धार करवा कर इसे भव्य स्वरुप दिया गया है. यहाँ श्री ऋषभदेव भगवान् का एक विशाल चरण  (रायण रूंख) भी स्थापित है.  जीर्णोद्धार के समय यहाँ नवीन रत्नमयी मूर्ति भी प्रतिष्ठित कराइ गई है.  

६. श्री गौड़ी पार्श्वनाथ स्वामी का मंदिर 

यह अजीमगंज का सबसे पुराण मंदिर है. यह बुधसिंह प्रताप सिंह दुगड़ परिवार का घर देरासर था. अभी कुछ समय पूर्व इस मंदिर का जीर्णोद्धार करवा कर इसे शिखरवद्ध मंदिर का रूप दिया गया है. यह मंदिर भागीरथी गंगा के किनारे बना हुआ है. 

श्री गौड़ी पार्श्वनाथ 


७. श्री सुमतिनाथ स्वामी का मंदिर

अजीमगंज के विख्यात नाहर परिवार द्वारा निर्मित श्री सुमतिनाथ स्वामी का मंदिर शहर के बीचोबीच स्थित है. अभी कुछ समय पूर्व इस मंदिर का जीर्णोद्धार करवा कर इसे भव्य स्वरुप दिया गया है. 


श्री सुमतिनाथ स्वामी मंदिर 


८.  श्री शान्तिनाथ स्वामी का मंदिर

रेल लाइन की दूसरी तरफ बारह द्वारी में यह एकमात्र जैन मंदिर है. यह लाल मंदिर के नाम से भी प्रसिद्द है. इस मंदिर का निर्माण संभवतः जगत सेठ जी की बहन ने करवाया था. कुछ वर्षों पूर्व इस मंदिर का भी जीर्णोद्धार करवाया गया था. 

श्री शांतिनाथ भगवान, अजीमगंज 


जियागंज के जिन मंदिर

जियागंज में कुल 4 जिनमंदिर एवं एक दादाबाड़ी है. इसके अतिरिक्त जियागंज से ४ किलोमीटर की दुरी पर महिमापुर एवं वहां से कुछ ही दुरी पर कठगोला का मंदिर है. 

श्री सम्भवनाथ स्वामी मंदिर, जियागंज 

यह जियागंज का प्रमुख एवं पंचायती मंदिर है जिसमे मूलनायक श्री सम्भवनाथ स्वामी हैं. इस मंदिर में सीढ़ियों से चढ़ कर जाना पड़ता है क्योंकि यह लगभग एक मंजिल जितनी ऊंचाई पर बना है. मंदिर के साथ एक उपाश्रय भी है जहाँ पर अब सभी धार्मिक क्रियाएं होती है. 

श्री विमल नाथ स्वामी मंदिर

राय बहादुर लक्ष्मीपत सिंह दुगड़ परिवार ने इस मंदिर का निर्माण करवाया था. मंदिर भव्य एवं कलात्मक बना हुआ है. इस मंदिर का जीर्णोद्धार अभी कुछ दिन पूर्व ही हुआ है और इसके बहार के स्वरुप को भी बहुत सुन्दर बनाया गया है. इस मंदिर के साथ एक धर्मशाला व आयम्बिल शाला भी है, इसलिए यह आमिल खता के नाम से भी प्रसिद्द है. 

श्री आदिनाथ स्वामी मंदिर

यह जियागंज का सबसे पुराना लगभग 250 वर्ष प्राचीन मंदिर है. मंदिर में लगे पुराने समय के टाइल्स से इसके पुराने होने का आभास होता है. यह मंदिर छजलानी परिवार द्वारा निर्मित है. 


कीरतबाग मंदिर, जियागंज 


कीरत बाग मंदिर एवं दादाबाड़ी 

अजीमगंज के रामबाग के सामान शहर से दूर किरतबाग विशाल परिसर में बना जिन मंदिर एवं दादाबाड़ी है. यहाँ पर गयसाबाद के प्राचीन मंदिर से लाई गई श्री वासुपूज्य स्वामी एवं श्री पार्श्वनाथ स्वामी की काले पाषाण की युगल प्रतिमा प्रतिष्ठित है. कुछ वर्षों पूर्व आचार्य श्री पद्मसागर जी के द्वारा इसका जीर्णोद्धार करवा कर इसे सुन्दर नवीन रूप दिया गया. यह परिसर मनोरम, विशाल बाग बगीचों से सुसज्जित है. 

महिमापुर (नशिपुर) 

महिमापुर में जगत सेठ द्वारा निर्मित प्राचीन श्री पार्श्वनाथ भगवान् का कसौटी पत्थर से निर्मित मंदिर था. पुरे विश्व में कसौटी पत्थर का यह एकमात्र मंदिर था. इसमें बंगाल के 8वीं शताब्दी के पाल वंश के राजा महिपाल का कसौटी का सिंहासन भी लगा हुआ था. पूरा मंदिर कसौटी पत्थर का था. कालांतर में इसका कसौटी पत्थर यहाँ से स्थानांतरित कर दिया गया. अब भी यहाँ जिनेश्वर देव का मंदिर है. 

श्री आदिनाथ स्वामी मंदिर, काठगोला

राय बहादुर लक्ष्मीपत सिंह दुगड़ परिवार ने इस मंदिर का निर्माण करवाया था. यह मंदिर अत्यंत विशाल है. मंदिर का परिसर अत्यंत विशाल है और लगभग 100 एकड़ भूमि में फैला है. इस परिसर में एक दादाबाड़ी भी है. मंदिर परिसर बाग़ बगीचों एवं बाबड़ियों से सुशोभित है. यहाँ एक सुन्दर महल भी बना हुआ है जो पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र है. इस मंदिर का सुउच्च विशाल सिंहद्वार अपने आप में अनूठा है. 

Jyoti Kothari
 (Jyoti Kothari is proprietor of Vardhaman Gems, Jaipur, representing Centuries Old Tradition of Excellence in Gems and Jewelry. He is a Non-resident Azimganjite.) www.vardhamangems.com

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Wednesday, March 13, 2024

अजीमगंज में नवपद ओली, मंडल पूजन एवं आयम्बिल की विषेशताएं

अजीमगंज में नवपद ओली, मंडल पूजन एवं आयम्बिल की विषेशताएं 

अजीमगंज में नवपद ओली  एवं आयम्बिल की विषेशताएं

जैन धर्म में सिद्धचक्र अर्थात नवपद का विशेष महत्व है. आश्विन एवं चैत्र मास की शुक्ल सप्तमी से पूर्णिमा तक नव दिन आयम्बिल कर नवपद की आराधना की जाती है. नवपद ओली का विशेष महत्व होने के कारण पुरे भारत में उत्साहपूर्वक यह तपस्या की जाती है. मयणा सुंदरी- श्रीपाल की कथा से प्रेरित नवपद ओली की तपस्या अनेक स्थानों में होती है, फिर अजीमगंज की विशेषता क्या है? 

मयणा सुंदरी- श्रीपाल नवपद आराधना करते हुए 

पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद जिले का अजीमगंज एक छोटा सा स्थान है. यहाँ जैनों की एक छोटी सी आवादी है. अपनी जाहो-जलाली के समय भी यहाँ जैनों की बस्ती 500 से अधिक नहीं थी. इतनी कम आवादी के बाबजूद यहाँ नवपद ओली करनेवालों की बड़ी संख्या होती थी. जिस समय मैं ओली करता था (1970 से 1980) उस समय यहाँ लगभग 300 लोग रहते थे और श्री नेमिनाथ स्वामी के मंदिर में 70-80 ओली होती थी. 


श्री नेमिनाथ स्वामी मंदिर के अंदर का दृश्य 

गुजरात में बड़ी संख्या में सभी तपस्याएं होती है परन्तु वहां जैनों की जनसँख्या भी बहुत अधिक है, इसलिए गुजरात से अजीमगंज की तुलना नहीं हो सकती. दुसरी बात ये है की गुजरात में प्रायः आयम्बिल में नमक एवं कुछ अन्य वस्तुएं भी उपयोग में ली जाती है जिससे आयम्बिल करना सरल हो जाता है. जबकि अजीमगंज में आयम्बिल में नमक या अन्य वस्तुओं का उपयोग नहीं होता है केवल एक अनाज एवं पानी ही काम में लिया जाता है. इससे आयम्बिल का भोजन नीरस एवं बेस्वाद होता है और तपस्वियों को अपनी रसनेन्द्रिय का विशेष संयम करना होता है. 

बिगत वर्षों में अजीमगंज में जैनों की जनसँख्या विशेष रूप से कम हो जाने के कारण ओली करनेवालों की संख्या भी बहुत कम हो गई, 2023 में यह संख्या १२ ही रह गयी. उस समय संघ द्वारा यह संकल्प लिया गया की अगले वर्ष नवपद ओली करनेवालों की संख्या बढ़ा कर 108 की जाये. इसमें सफलता भी मिली,  9 अक्टूबर से 17 अक्टुबर 2024 तक होनेवाली आश्विन ओली के लिए अब तक 75 नाम आ चुके हैं. अभी कार्यक्रम में सात महीने का समय शेष है और पूर्ण विश्वास है की संख्या 108 के पार चली जाएगी. 

अजीमगंज में नवपद मंडल पूजन की विषेशताएं

जैन धर्म में सिद्धचक्र एवं सिद्धचक्र महापूजन का विशेष महत्व है. भारत भर में समय समय पर सिद्धचक्र महापूजन का आयोजन होता रहता है. अजीमगंज में सिद्धचक्र महापूजन नवपद मंडल पूजन के नाम से होता है. यहाँ यह पूजन अत्यंत भक्तिभाव पूर्वक विशेष आडम्बर के साथ किया जाता है. इसकी एक विशेषता ये भी है की यह एक निश्चित दिन शरद पूर्णिमा (आश्विन ओली का अंतिम दिन) को ही होता है. यह पिछले लगभग 125-150 वर्षों से हो रहा है. पहले यह श्री सम्भवनाथ स्वामी के मंदिर में होता था और विगत 60-65 वर्षों से यह श्री नेमिनाथ स्वामी के पञ्चायती मंदिर में होता है. 

श्री सम्भवनाथ स्वामी मंदिर 

पूजन के लिए लकड़ी की एक चौरस चौकी पर सफ़ेद कपडा बिछाया जाता है और उस पर चावल, गेहूं, चना, मुंग और उड़द से नवपद के 9 पद बनाये जाते हैं. सिद्धचक्र यंत्र के शेष वलय रंगीन चावल से कलात्मक रूप से बनाये  जाते हैं. मांडला करने का काम ओली करनेवालों के द्वारा ही किया जाता है. इस कार्य को पूरा करने में 4 से 5 दिन लग जाते हैं. इस तरह ओली के तपस्वियों द्वारा बनाये गए कलात्मक मांडले की सुंदरता देखते ही बनती है. 

मनोहर कलात्मक नवपद मण्डल 


शरद पूर्णिमा के दिन विशेष विधि विधान से उत्कृष्ट द्रव्यों एवं उपकरणों से मंडल पूजन का कार्यक्रम होता है. नवग्रह, दस दिकपाल पूजन व वली वाकुल के बाद नवपद के अरिहंत, सिद्ध आदि 9 मूल पदों की पूजा होती है।  इसमें विशेष रूप से तैयार किये हुए पञ्च वर्णी गोले चांदी के सिंहासन में विराजमान कर नवपद के प्रथम वलय में चढ़ाया जाता है. यह पूजन भी केवल मात्र नवपद ओली के तपस्वियों द्वारा ही किया जाता है. अजीमगंज में गोला चढाने का विशेष महत्व है और इस समय पूरा श्री संघ उपस्थित रहकर इस पूजन की अनुमोदना करता है. 

नवपद जी की बड़ी पूजा करते स्नात्रिये 

गोला चढाने के बाद अन्य सभी वलयों की पूजा होती है और इसमें चांदी के बने हुए कलात्मक सुन्दर फलों, पान के पत्तों आदि का उपयोग होता है. अंत में नवपद की बड़ी पूजा पढ़ा कर कलश अभिषेक किया जाता है. इस प्रकार विशिस्ट रीती से अजीमगंज में नवपद मंडल संपन्न होता है.  


Jyoti Kothari 
(Jyoti Kothari is proprietor of Vardhaman Gems, Jaipur, representing Centuries Old Tradition of Excellence in Gems and Jewelry. He is a Non-resident Azimganjite.) www.vardhamangems.com

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Tuesday, March 12, 2024

अजीमगंज मे 108 नवपद ओली आराधना आश्विन 2024


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उद्देश्य और सारांश

अजीमगंज मे नवपद ओली की समृद्ध परम्परा रही है. यहां एक समय मे बड़ी संख्या मे ओलि हुआ करता था. और आज भी श्री नेमिनाथ स्वामी मंदिर मे ओली की तपस्या प्रति वर्ष होती है. इसी परम्परा को फिर से समृद्ध करने एवं पावन परंपरा को पुनरुज्जीवित करने हेतु आगामी वर्ष आश्विन महीने मे 2024 मे (9 से 17 अक्टुबर) 108 ओली हो ऐसा संकल्प लिया गया है. आप से भी परिवार / मित्र जनों सहित सम्मिलित होने हेतु निवेदन है. आप सभी के सम्मिलित प्रयास एवं नव पद जी के प्रभाव से यह प्रयास अवश्य सफल होगा और 2024 के आश्विन मे 108 ओलि जरूर होगा.
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नवपद मंडल पूजन, अजीमगंज 

प्रति वर्ष की भांति गत वर्ष 2023 में नवपद मंडल पूजन कराने हेतु अजीमगंज गया था. कुल 12 लोग नवपद ओली कर रहे थे एक ओली अष्टापद की थी. पारणे के दिन तपस्वी अभिनन्दन समारोह था उसमे संघ के मंत्री एवं मेरे सहपाठी श्री सुनील जी चौरड़िया ने बताया की कुछ वर्ष पूर्व ओली करनेवालों की संख्या मात्र 2 रह गई थी. अनेक प्रयत्नों से अब ये संख्या 12 हुई है. उन्होंने आह्वान किया की अगले वर्ष यह संख्या 20 हो.


श्री नेमिनाथ भगवन, अजीमगंज 

 
उसी समय नवपद जी की प्रेरणा से मेरे मुँह से निकला 20  नहीं 108 !! उपस्थित सभी इसे मज़ाक में ले रहे थे, तभी मेरे मुँह से निकला (यह सब मानो नवपद जी के प्रभाव से ही मेरे मुँह से निकल रहा था), नहीं, 108 !! मैंने आगे कहा "यदि 108 का संकल्प हो तो 20 मैं अकेले जोड़ूंगा". उसी समय उपस्थित लोगों से बात करना शुरू किया, उन्हें प्रेरित किया, और नवपद जी की कृपा से २१ नाम उसी समय जुड़ गए. इसमें एक नाम संघ के अध्यक्ष संजीव जी बैद का भी था. इस घटना से संकल्प को वल मिला और उपस्थित सभी ने संकल्प लिया की अगले वर्ष आश्विन माह 2024 में 108 ओली की संख्या जरूर पुरी करेंगे.

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अजीमगंज में नवपद ओली, मंडल पूजन एवं आयम्बिल की विषेशताएं 
 

प पू प्रवर्तिनी श्री शशिप्रभा श्री जी महाराज उस समय शिष्या मंडली सहित चातुर्मास हेतु कोलकाता में विराजमान थीं. अजीमगंज से कोलकाता आने के बाद 1  नवम्बर 2023  को उनसे मिलकर पूरे घटना क्रम की जानकारी दी एवं उन्हें 108 ओलि के लिए लोगों को प्रेरित करने के लिये निवेदन किया. उन्होंने हर्षित होते हुए इस पुनीत कार्य को पूर्ण समर्थन देना स्वीकार किया. उनसे बात होती रही और चातुर्मास समापन के कार्यक्रम में उनकी प्रेरणा से 8 लोग ओली जी के लिये जुड़ गए. 

चातुर्मास समाप्ति के बाद कोलकाता व हावड़ा में विभिन्न कार्यक्रमों में उन्होंने प्रेरणा देने का कार्य जारी रखा. इसी बीच खड़गपुर में उनकी तीन समीपस्था साध्वियों के दीक्षा स्वर्ण जयंती कार्यक्रम की घोषणा हुई. मैंने निवेदन किया की साध्वी जी महाराजों की 50 वर्ष पूर्ति उपलक्ष्य में कम से कम 50  लोगों को जोड़ें। उन्होंने इस निवेदन को सहर्ष स्वीकार किया और कहा कि कम से कम 50 लोगों को तो वो जोड़ ही देंगी. उन्होंने कार्यक्रम को आशीर्वाद प्रदान किया और कहा कि यह लक्ष्य अवश्य पूरा होगा. 


प्रवर्तिनी साध्वी श्री शशिप्रभा श्री जी महाराज 


इस तरह पूज्य श्री के आशीर्वाद एवं संघ के अध्यक्ष, मंत्री एवं अन्य सभी के सम्मिलित प्रयास से कड़ी से कड़ी जुड़ती गई. अनेक लोगों ने आगे बढ़ कर प्रेरणा देना और अन्य लोगों को जोड़ना शुरू किया, इस तरह कारवाँ बढ़ता गया. प्रेरणा देने में श्रीमती डॉली गोलेच्छा, पिंकी बैद, शशिलता छाजेड़, मधुमिता धाड़ीवाल, श्री संजीव बैद, सुनील चौरड़िया, संजय बैद, मोहित बोथरा, स्नेहिल बोथरा आदि ने सराहनीय भूमिका का निर्वहन किया. (प्रेरक में यदि गलती से किसी का नाम छूट गया हो तो सूचित करें, उनका नाम जोड़ देंगे). पूज्या प्रवर्तिनी साध्वी जी, प्रेरकों, संघ के सदस्यों सभी के सम्मिलित प्रयास से अब तक 75 नाम जुड़ चुके हैं और सफर जारी है. पूरा विश्वास है की जल्द ही संख्या 108 के भी पार चली जाएगी.

 ओली करनेवालों की सम्पूर्ण आवास, भोजन, आयम्बिल, पारणे आदि की सभी व्यवस्था अजीमगंज श्री संघ की और से की जाएगी. यह सभी व्यवस्था साधर्मी वात्सल्य के अंतर्गत निःशुल्क रहेगी. कृपया शीघ्र अपना नाम लिखवाएं.

अजीमगंज में नवपद ओली का इतिहास जो जानना जरूरी है  

श्री सम्भवनाथ स्वामी, अजीमगंज 


अजीमगंज मे श्री धनपत सिंह जी दुगड ने श्री सम्भव नाथ स्वामी मंदिर के प्रतिष्ठा के समय से ही नवपद मंडल पूजन की परंपरा का शुभारंभ किया. श्री धनपत सिंह जी दुगड के पौत्र श्री सुरपत सिंह जी दुगड ने भी आजीवन ओलि की आराधना कर इस परम्परा को वल प्रदान किया. उनके पुत्र श्री नरेंद्र पत सिंह दुगड भी जब तक अजीमगंज रहे तब तक श्री सम्भव नाथ स्वामी मंदिर मे नवपद मंडल पूजन की परंपरा को चालू रखा. 

 इसके बाद श्री हरख चंद जी रुमाल ने 70 वर्ष पूर्व श्री नेमिनाथ जी के मंदिर मे नवपद मंडल पूजन की परंपरा का शुभारंभ किया, जो की अब तक चल रही है. रुमाल जी की पुत्री श्रीमती तिलक सुन्दरी नौलखा परिवार आज भी इस परम्परा को समृद्ध करने मे अग्रणी है.

 श्री धनपत सिंह जी दुगड की 2 पौत्री का विवाह अजीमगंज के कोठारी एवं बोथरा परिवार मे हुआ था. बाद के दिनों मे इन दोनों परिवार ने अजीमगंज मे नवपद ओलि की परम्परा को आगे बढ़ाने मे विशेष योगदान किया. इस सम्बंध मे श्री मोती चंद जी एवं जगत चंद जी बोथरा का नाम उल्लेखनिय है.श्री परिचंद जी बोथरा परिवार द्वारा आमिल एवं पारने का पूरा खर्च आज तक किया जा रहा है. कोठारी एवं बोथरा परिवार मे लगभग सभी लोग ओलि की तपस्या करते थे साथ ही क्रिया आदि कराने मे भी विशेष भूमिका होती थी. 

 श्री समरेन्द्र पत जी कोठारी एवं श्री धीरेन्द्र पत जी कोठारी ने अनेक वर्षों तक नवपद मंडल पूजन हेतु कोलकाता से धन संग्रह करने एवं सामग्री आदि की व्यवस्था करने मे अपनी भूमिका निभाइ. श्री बहादूर सिंह जी एवं श्री राजेद्र सिंह जी बच्छावत परिवार व वर्तमान मे चौरड़िया परिवार का उल्लेख करना भी आवश्यक है. इस प्रकार अन्य भी अनेक लोगों के सहयोग से नवपद मंडल पूजन एवं ओलि की परम्परा आज तक चल रही है. 

मंडल जी के पूजा की सभी विधि यति श्री करमचंद जी और कीर्ति चन्द जी की देखरेख में होता था. दोनों संस्कृत के अच्छे विद्वान थे एवं स्पष्ट और शुद्ध उच्चारण से विधि विधान करवाते थे. उन दोनों के बाद श्री गजेंद्र पत जी कोठारी व उनके बाद श्री विजयपाल सिंह जी बच्छावत मंडल जी की पूजा निरंतर रूप से करवाते रहे. श्री विजयपाल सिंह जी बच्छावत गले के कैंसर से पीड़ित हो गए थे और शारीरिक अवस्था अत्यंत प्रतिकूल थी. इसके बावजूद मेरे निवेदन पर वो अंतिम बार मंडल जी की पूजा करवाने पधारे थे, एवं सुन्दर तरीके से पूजा करवाई थी. 

अंतिम बार नवपद मंडल पूजन करवाते हुए श्री विजयपाल सिंह जी बच्छावत  

 १९७० व ८० के दशक की बात है जब हमलोग अजीमगंज में ओली किया करते थे, उस समय ओली जी की सभी क्रिया करवाने मे श्री बहादुर सिंह जी बच्छावत की बड़ी भूमिका रहती थी. देव वंदन, प्रतिक्रमण आदि के ज्यादातर सूत्र वो ही बोलते थे. श्री निर्मल चंद जी बोथरा का गला बहुत अच्छा था और वो मधुर कंठ से भजन और पूजा गाते थे. श्री गजेन्द्र पत जी कोठारी संस्कृत मे चैत्य वंदन और स्तुति बोला करते थे. श्री समरेन्द्र पत जी कोठारी ओली तो नही करते पर कभी कोलकाता से आते तो प्रतिक्रमण मे गंभीर आवाज मे बड़ी शांति आदि बोलते थे. आमिल खाते मे श्रीमती कनक जी कोठारी और भानुमति जी बच्छावत बहुत सारी व्यवस्था संभालती थी.

रसोई का काम बिबली बाइ जी आदि के देखरेख मे होता था. कालीपद बर्तन धोने बगैरह काम किया करता था. मंदिर मे बड़े पुजारी छेल जी सब इंतजाम देखते थे पर छोटे पुजारी पृथ्वी चंद जी बड़े मस्त स्वभाव के थे. वो भरपूर मनोरंजन भी करते थे. 

 नव पद की महिमा अनंत है

कहते हैं  "नव पद महिमा जग मे मोटी, गणधर पार न पाए रे" 

 ऐसे नव पद का महत्व नवपद जी की पूजा (जिसे हम गाते रहते हैं) मे बताया गया है. यह पूजा उस समय के तीन अत्यंत समर्थ विद्वान आचार्य ज्ञान विमल सूरी, उपाध्याय यशोविजय जी, एवं उपाध्याय श्रीमद देवचंद जी की सम्मिलित रचना है. नवपद जी के रहस्य को इसी पूजा के माध्यम से जानने का छोटा सा प्रयास किया गया है. 
जानने के लिए इस लिंक पर क्लीक करें. 

Jyoti Kothari (Jyoti Kothari is the proprietor of Vardhaman Gems, Jaipur, representing Centuries Old Tradition of Excellence in Gems and Jewelry. He is a Non-resident Azimganjite.) www.vardhamangems.com

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Monday, March 11, 2024

ভগবান মহাবীর ও বাংলায় জৈন ধর্ম

ভগবান মহাবীর ও বাংলায় জৈন ধর্ম 

"জগৎ জুড়িয়া এক জাতি আছে, সে জাতির নাম মানুষ জাতি।
এক ই পৃথিবীর অন্নে লালিত, এক ই রবি শশী মোদের সাথী"

বাংলা ভাষার এইটি একটি প্রসিদ্ধ কবিতা। ভগবান মহাবীর কিন্তু আর ও আগে চলে গিয়েছিলেন। তিনি বললেন শুধু মানুষ নয় সমস্ত জীবজগত ই সম্মিলিত রূপে এক ই জাতি। তিনি জৈন আগম 'স্থানাংগ সূত্রে' উদাত্ত স্বরে ঘোষণা করলেন "এগে আয়া" অর্থাৎ সমস্ত জীব জগৎ এক. বসুধৈব কুটুম্বকমের এই অবধারণা ই মহাবীর কে অন্য্ সমস্ত মহাপুরুষদের থেকে ভিন্ন করে, এবং তাকে সর্বশ্রেষ্ঠ রূপে প্রস্তুত করে.

ভগবান মহাবীরের প্রাচীন চিত্র 

ভগবান মহাবীরের উপদেশ 

মহাবীরের অন্য্ একটা বিশেষত্ব নিয়ে চর্চা না করলে সেই মহাপুরুষকে ঠিক মত্ বোঝা যাবে না. কেবল জ্ঞান প্রাপ্তির পর তিনি সর্বজ্ঞ হলেন, তারপর উপদেশ প্রারম্ভ করলেন। তিনি যখন তার প্রথম উপদেশ দিলেন তখন কিন্তু সেটা নিজের নামে শুরু করেন নি. তিনি কখন ই বলেন নি যে তিনি কোনো নতুন ধর্ম প্রবর্তন করছেন। তিনি বললেন, আমার আগে অনন্ত অর্হৎ বা তীর্থঙ্কর হয়েছেন এবং ভবিষ্যতে ও হবেন। তারা সবাই এই বলেছেন, এবং ভবিষ্যতে বলবেন যে জীব মাত্রের হিংসা না করা অর্থাৎ অহিংসা ই একমাত্র ধর্ম। 

তিনি যে ধর্মের কথা বলছেন সেটা কিন্তু নতুন কিছু নয়, সেটা একটা নিত্য, সনাতন প্রবাহ। যেমন নদির প্রবাহ মাঝে মাঝে অবরুদ্ধ হয়ে যায়, এবং কোনো বিশিষ্ট শক্তিশালী মানুষ সেই প্রবাহ কে আবার  খুলে দেয় ঠিক সেই ভাবে ধর্মের প্রবাহ অবরুদ্ধ হলে, তার মধ্যে বিকৃতি এলে তীর্থঙ্কর জন্ম নেন এবং ধর্মের সেই চিরন্তন স্রোত কে পুনরায় গতি প্রদান করেন, ধর্ম রূপ গঙ্গা কে স্বচ্ছ করেন। মহাবীর দ্বারা উপদেশিত জৈন ধর্ম, যার প্রাচীন নাম অর্হৎ বা নির্গ্রন্থ ধর্ম, এই ধর্মে ব্যক্তি পূজার কোনো স্থান নেই.

২৪ তীর্থঙ্কর, আজিমগঞ্জ, মুর্শিদাবাদ 

কেবল মাত্র এই কালখন্ডে, জৈন পরিভাষায় যাকে 'অবসর্পিনী কাল' বলা হয়, ঋষভদেব থেকে প্রারম্ভ করে পার্শ্বনাথ এবং মহাবীর পর্য্যন্ত ২৪ জন তীর্থঙ্কর হয়েছেন, তারা সবাই যা বলেছেন তাই জৈন ধর্ম। মহাবীর তাদের থেকে ভিন্ন কিছু বলেন নি, মাত্র কাল সাপেক্ষে তার ব্যাখ্যা করেছেন।

জাতি প্রথার বিরোধ মহাবীরের অন্যতম অবদান। মহাবীরের সময় বৈদিক ধর্মের এক বিকৃত রূপ সামনে এসেছিল, যার ফলে শূদ্রের উপর প্রচন্ড নির্যাতন হতো. জন্ম থেকে নির্ধারিত হতো জাতি, এবং মানুষের নিজের কোনো স্বাধীনতা ছিল না. মহাবীরের উপদেশ সেই সময়ে শূদ্র এবং তথাকথিত নীচে জাতির জন্য সঞ্জীবনী হয়েছিল। তিনি জন্ম থেকে নয় কিন্তু কর্ম থেকে জাতি স্বীকার করেন।  ভগবান মহাবীর ঘোষণা করলেন.

গণধর গৌতম 


"কম্মনা বম্ভনো হোই, কম্মুনা হোই ক্ষত্তিয়ো,
   কম্মনা বৈশ্য হোই, সুদ্দো হোই কম্মুনা"

অর্থাৎ কর্ম থেকে মানুষ ব্রাহ্মণ হয়, কর্ম থেকেই ক্ষত্রিয় হয়, কর্ম থেকেই বৈশ্য হয় এবং কর্ম থেকেই শূদ্র হয়. জন্ম থেকে নয়, কর্ম অর্থাৎ তার কার্য,  ব্যবহার, দক্ষতা ইত্যাদি থেকে তার জাতি নির্ধারিত হবে. ভগবান মহাবীর তার শ্রমণ সংঘে সমস্ত জাতির লোক কে গ্রহণ করেছিলেন। তার শিষ্যদের মধ্যে ইন্দ্রভূতি গৌতম  প্রমুখ ব্রাহ্মণ; শ্রেণিক, প্রসেনজিৎ প্রমুখ ক্ষত্রিয়, শালিভদ্র প্রমুখ বৈশ্য এবং হরিকেশবল ইত্যাদি শূদ্ররা স্থান পেয়েছিলেন। তিনি স্ত্রীদের সমুচিত মর্যাদার সাথে শ্রমনী সংঘে দীক্ষিত করেন, চন্দনবালা হয়েছিলেন তার সাধ্বী প্রমুখা। মহাবীর বলেছিলেন যে চার বর্ণের স্ত্রী -পুরুষ এমনকি নপুংসক ও সম্যক জ্ঞান দর্শন চারিত্র রূপ ত্রিরত্নের সাধনার বলে কেবল জ্ঞান প্রাপ্ত করে, সর্বজ্ঞ হয়ে মোক্ষ প্রাপ্তি করতে পারেন অর্থাৎ মানুষ্য মাত্র ই মুক্তি অর্থাৎ নির্বানের অধিকারী, এর মধ্যে জাতি, বর্ণ , লিঙ্গ ইত্যাদির কোনো ভেদ নেই.

ভগবান মহাবীরের অহিংসার অবধারণা ও পরিবেশ সংরক্ষণ

ভগবান মহাবীরের অহিংসার অবধারণা পরিবেশ সংরক্ষণের ক্ষেত্রে ও বিশেষ ভাবে উপযোগী। মহাবীর ই বিশ্বে একমাত্র যিনি কেবলমাত্র প্রাণীজগৎ নয়, কিন্তু উদ্ভিদের মধ্যেও ও প্রাণ আছে এই কথা  বলেছিলেন। পরবর্তী কালে বাঙালি বৈজ্ঞানিক জগদীশ চন্দ্র বসু এই কথা টা প্রমান করেন মহাবীরের ২৫০০ বছর  পরে। মহাবীরের বিরাট চিন্তন আর ও আগে তিনি মাটি, জল, অগ্নি, এবং বাতাসের মধ্যে ও জীব আছে বলেছেন এবং উদ্ভিদ, মাটি, জল, বায়ু, এবং অগ্নি এই পাঁচ তত্বের ও হিংসার নিষেধ করেছেন। এই পাঁচ তত্বের সাহায্য ছাড়া জীবন নির্বাহ অসম্ভব সেই জন্য মহাবীর উপদেশ দিলেন এদের যথাসম্ভব সীমিত ব্যবহার। আজকের পরিবেশ সংরক্ষণের এইটাই মূল সিদ্ধান্ত এবং আজকের ব্যবস্থায় Sustainable Development নাম অভিহিত।

পরিবেশ সংরক্ষণ সাঙ্গানের জৈন দাদাবাড়ি, জয়পুর 


ভগবান মহাবীরের জীবন 

সময়ের অতীতের জানলায় উঁকি দিয়ে দেখলে, পেছনে ২৬০০ বছরের ইতিহাস, তৎকালীন মগধ দেশের ক্ষত্রিয়কুন্ড নগরের রাজা সিদ্ধার্থ এবং মহারানী ত্রিশলার ঘরের আঙ্গনে এক সুন্দর রাজপুত্রের জন্ম দেখতে পাওয়া যাবে। রাজপুত্র হলে হবে কি, সংসারের মনোরম ভোগের প্রতি কোনো রুচি নেই. প্রচন্ড পরাক্রমী এবং দেবদুর্লভ শক্তি থাকা সত্বে ও সে তো শান্তির পূজারী। হৃদয়ে করুনার ধারা বয়. যৌবন বয়সে সদা জ্ঞান চিন্তনে সমাধিস্থ। মাত্র ৩০ বছর বয়সে শুধু রাজ্য নয় সদ্য বিবাহিতা রূপ লাবণ্যময়ী পত্নী যশোদা এবং একমাত্র সদ্যজাত পুত্রী সুদর্শনার মোহ ত্যাগ করে বৈরাগ্য ধারণ করে নির্গ্রন্থ দীক্ষা গ্রহণ করে গৃহত্যাগ করলেন চির শান্তি এবং পরম জ্ঞানের খোঁজে। নিজের হাতে সমস্ত অলংকার ই নয় দেহের বস্ত্র ও ত্যাগ করলেন, আর উপডে দিলেন অপরূপ লাবণ্য যুক্ত নিজের কেশ. 

তারপর প্রারম্ভ হলো দেশ ভ্রমণ; না কোনো ঘোড়া বা গাড়িতে নয় পায়ে হেঁটে। প্রায় রাত্রিবাস কোনো পাহাড়ের গুহায় অথবা ঘন অরণ্যের মধ্যে কোনো গাছের নীচে, কখনো কখনো কোনো শূন্য গৃহে বা দেবালয়ে। ঘন জঙ্গলে জীব জন্তুর আক্রমণ হোক বা মশা কামড়ায়; মহাবীর নিজের সাধনায় অবিচলিত। সাড়ে বার বছরের সাধনায় ঘুমান নি, বসেন ও নি, অতন্দ্রিত ভাবে দাঁড়িয়ে দাঁড়িয়ে নিজের আত্ম সাধনায় নিরত ছিলেন মহাবীর।

ভগবান মহাবীরের গৃহত্যাগ 

ভগবান মহাবীর ও বঙ্গদেশ 

মগধ থেকে বঙ্গ , গৌড়, কলিঙ্গ, আর উৎকল বেশি দূরে নয়. বর্তমান পশ্চিম বঙ্গ তার পদযাত্রার সাক্ষী হয়েছিল। জৈন আগমে বর্ণিত হয়েছে যে সাধনা কালে মহাবীর রাঢ় দেশের ও যাত্রা করে তাম্রলিপ্ত বন্দর পর্য্যন্ত এসেছিলেন। বাংলার বর্ধমান এবং বীরভূম জেলা মহাবীরের নাম আজ ও বহন করছে। মুর্শিদাবাদের কর্ণসুবর্ণ (রাঙামাটি) ও আজিমগঞ্জ (তৎকালীন জৈনেশ্বর ডিহি) ও হয়েছিল তার পদযাত্রার সাক্ষী। বাঁকুড়া, বীরভূম, বর্ধমান, পুরুলিয়া ইত্যাদি জেলায় আজ ও ছড়িয়ে আছে অসংখ্য জৈন মন্দিরের ধ্বংসাবশেষ


ভগবান মহাবীরের ১৫০ বছর পরে সমগ্র পূর্ব ভাৱতে  ভীষণ দুর্ভিক্ষ হয়েছিল। সেই দুর্ভিক্ষ চলে ১২ বছর পর্য্যন্ত। সেই সংকট সময়ে জৈন সাধুদের কঠিন জীবনচর্যা নির্বাহ করা প্রায় অসম্ভব হয়ে পড়েছিল। সেই সময়ে অনেক জৈন সাধুগণ অনশন করে সমাধি গ্রহণ করেন, অনেকে দক্ষিণ ভারতের দিকে প্রয়াণ করেন। সেই সময়ের প্রমুখ আচার্য ভদ্রবাহু পাটলিপুত্রের রাস্তায় নেপাল গিয়ে নিজের সাধনা কে সমর্পিত করলেন। সেই সময় থেকে পূর্ব ভারতে জৈন ধর্মের হ্রাস প্রারম্ভ হয় এবং দক্ষিণ ভারতে প্রাদুর্ভাব।

সরাক দের মন্দির 

সরাক জৈন

সেই সময়ের জৈন সাধুদের অভাবে ধর্মাবলম্বীগনের পক্ষে নিজের ধর্মে স্থির থাকা কঠিন হয়ে যায় কিন্তু তারা জৈন ধর্মের মূল আচরণ অহিংসা কে বজায় রাখেন। এই সম্প্রদায় পশ্চিম বঙ্গে সরাক নামে অভিহিত। সরাক শব্দ জৈন গৃহীদের জন্য প্রযুক্ত  শ্রাবক শব্দের তদ্ভব শব্দ। সরাক জাতির লোকেরা আজ ও বিশাল সংখ্যায় পশ্চিম বাংলার বীরভূম, বর্ধমান, বাঁকুড়া, পুরুলিয়া ইত্যাদি জেলায় বসবাস করেন।

বর্তমান কালে পশ্চিম বাংলায় জৈন ধর্ম 

পরেশনাথ মন্দির , মানিকতলা কোলকাতা 


সরাকরা ছিলেন বাংলার মূল নিবাসী জৈন. কিন্তু কালক্রমে তারা জৈন ধর্মের মুখ্য ধারার বাইরে চলে যান. মধ্যে যুগে রাজস্থান এবং গুজরাট থেকে প্রবাসী জৈনরা এসে বঙ্গ দেশে বসবাস আরাম্ভ করেন। বর্তমানে জৈন বলতে এই প্রবাসী রাজস্থানি এবং গুজরাটি জৈন কে ই বোঝায়।  

এক সময়ে মালদহ জেলার রাজমহল এবং মুর্শিদাবাদ জেলার কাশিমবাজার, গয়সবাদ, আজিমগঞ্জ, জিয়াগঞ্জ, মাহিমাপুর ইত্যাদি ছিল প্রবাসী জৈনদের মুখ্য কেন্দ্র। কিন্তু বর্তমানে জৈনদের সর্বাধিক সংখ্যা কলকাতায় বসবাস করেন। কোলকাতায় অনেক জৈন মন্দির আছে  যার মধ্যে মানিকতলা স্থিত পরেশনাথ মন্দির বিশ্ববিখ্যাত। বৃহত্তর কলকাতা তে ও অনেক জৈন মন্দির আছে. 

 আজিমগঞ্জ, জিয়াগঞ্জ, এবং মাহিমাপুরে ১০০ থেকে ২৫০ বছর পুরোনো অনেক সুন্দর স্থাপত্য যুক্ত মন্দির দেখতে পাওয়া যাবে। এছাড়া বীরভূম জেলার সাঁইথিয়া, বোলপুর, বর্ধমান জেলার দুর্গাপুর এবং আসানসোল, মেদিনীপুর জেলার খড়্গপুর, পুরুলিয়া জেলার সান্তালডিহ ইত্যাদি স্থানে ও জৈন মন্দির বিগত ৩০-৪০ বছরে নির্মিত হয়েছে। 

Jyoti Kothari, proprietor, of Vardhaman Gems, Jaipur, represents Centuries-Old Tradition of Excellence in Gems and Jewelry.

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Thursday, August 6, 2020

अजीमगंज श्री नेमिनाथ भगवान के प्राचीन मंदिर के सम्वन्ध में ऐतिहासिक तथ्य


अजीमगंज श्री नेमिनाथ भगवान के मंदिर के सम्वन्ध में कुछ नए तथ्य मिले हैं जिससे अब इस मंदिर का इतिहास स्पष्ट हो गया है. कल अजीमगंज से श्री विजयपाल सिंह जी बच्छावत ने बताया की मूलनायक भगवन श्री नेमिनाथ एवं दोनों बाजु की दो प्रतिमाओं में एक लेख है. उस लेख के अनुसार सम्वत 1850 (1793 ईस्वी) में श्री जिन लाभ सूरी जी के शिष्य श्री जिन चंद्र सूरी के कर कमलों से प्रतिष्ठित उपरोक्त तीनों प्रतिमा सम्वत १९४३ में यहाँ प्रतिष्ठित की गई. 


अजीमगंज श्री नेमिनाथ स्वामी के मंदिर के इतिहास के सम्वन्ध में कुछ विभ्रांति, भ्रम की स्थिति थी जिसे मैंने इस ब्लॉग में पहले भी लिखा था. हमारी जानकारी के अनुसार इस मंदिर की प्रतिष्ठा सम्वत १९४३ हुई थी. लेकिन बाद में उपाध्याय श्री क्षमा कल्याण जी द्वारा लिखित अजीमगंज श्री नेमिनाथ स्वामी का एक प्राचीन स्तवन प्राप्त हुआ. यह स्तवन कम से कम दो सौ वर्ष प्राचीन है. जबकि यदि प्रतिष्ठा सम्वत १९४३ माना जाये तो यह मंदिर मात्र १३२ वर्ष पुराना है. 

एक अन्य तथ्य भी प्राप्त हुआ था जिसके अनुसार अजीमगंज में एक मंदिर गंगा (भागीरथी) के कटान में चला गया था, उसका समय पता नहीं था. जहाँ आज श्री नेमिनाथ स्वामी का मंदिर है वहां एक गंभारा श्री वासुपूज्य स्वामी का भी है जो की सम्वत 1943 से पहले का है. 

अब यह लेख मिलने से पूरी स्थिति स्पष्ट हो गई. सभी बातों को जोड़ कर यह निष्कर्ष निकलता है की अजीमगंज में श्री नेमिनाथ स्वामी का एक प्राचीन मंदिर था जिसकी प्रतिष्ठा श्री जिन लाभ सूरी जी के शिष्य श्री जिन चंद्र सूरी ने सम्वत १८५० में करवाई थी. कालांतर में वह प्राचीन मंदिर गंगा के रुख  बदलने से नदी के गर्भ में समा गया. उसके बाद जहाँ श्री वासुपूज्य भगवन का मंदिर था उसी परिसर में एक नवीन मंदिर का निर्माण कराया गया. इस नव निर्मित श्री नेमिनाथ स्वामी मंदिर में श्री नेमिनाथ स्वामी के प्राचीन मंदिर (गंगा के गर्भ में समाये हुए) से प्राप्त प्रतिमाओं की पुनर्प्रतिष्ठा सम्वत १९४३ में करवाई गई. 

अब अजीमगंज श्री नेमिनाथ स्वामी के मंदिर के इतिहास के सम्वन्ध में किसी प्रकार का कोई भ्रम नहीं है और सभी बातें पूरी तरह से स्पष्ट हो चुकी है. 


Jyoti Kothari 

(Jyoti Kothari is the proprietor of Vardhaman Gems, Jaipur, representing Centuries Old Tradition of Excellence in Gems and Jewelry. He is a Non-resident Azimganjite.) www.vardhamangems.com

अजीमगंज श्री #नेमिनाथ भगवान के #प्राचीन #मंदिर के सम्वन्ध में #ऐतिहासिक #तथ्य #इतिहास

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Wednesday, February 12, 2020

American Researcher Eric Villalobos will come to Azimganj


American Researcher Eric Villalobos will come to Azimganj in the last week of February. He is from California university and presently researching about Sripujya and Yati tradition. We all know that Azimganj-Jiaganj was a great center of Yati tradition and large numbers of Yatis from different clans such as Khrtar Gachchh, Tapagachchh, Vijay Gachchh, and Launka Gachchh were used to live in Azimganj and Jiaganj. Shaharwali community has invited and witnessed several Chaturmas of Sripujya ji right from Sri Saubhagya Suri to present Sri Jin Chandra Suri.  Moreover, we have Gaddis of Sripujya ji both at Azimganj and Jiaganj. Hence, these are great places for researching tradition.

Sripujya Ji Sri Jin Vijayendra Suri
Eric is pursuing his research work in Jaipur and will come to visit Kolkata, Azimganj, and Jiaganj. I will accompany him on his visit. He will meetSripujya Ji in Kolkata and visit Gaddis. There is a Gaddi of Jin  Rang Suri at Johri Sath Paushal.

I request everyone to help him providing information.

Jyoti Kothari
(Jyoti Kothari is the proprietor of Vardhaman Gems, Jaipur, representing Centuries Old Tradition of Excellence in Gems and Jewelry. He is a Non-resident Azimganjite.)

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Thursday, October 10, 2019

Riju Srimal has become a Senior Foreign Affairs Officer in the US


Congratulations! MS. Riju Srimal has become a Senior Foreign Affairs Officer in the US. She belongs to the famous Shrimal family of Azimganj. Sri Neptune Srimal, her father, left Azimganj and settled in America long back.  He is a lecturer at Florida International University in the US. We, as Azimganjite, are proud of both the father and the daughter. Smt. Sangeeta Srimal is her mother. Riju Srimal, presently, is living in Washington DC, the capital of the US.

Riju Srimal Senior Foreign Affairs Officer in the US
Riju Srimal
First, I have written a blog post congratulating her in 2009 when she completed her Ph. D in Neuroscience. I wished more success and achievements in her life on that blog. Now, she has made the Shaharwali society proud of her achievement.

Late Sri Hari Singh Ji Srimal, her grandfather lived in Azimganj and Kolkata and was well-known in the society. He was a Jain scholar and used to conduct marriage rituals with Jain Vidhi.

Thanks,
Jyoti Kothari (Jyoti Kothari is the proprietor of Vardhaman Gems, Jaipur, representing Centuries Old Tradition of Excellence in Gems and Jewelry. He is a Non-resident Azimganjite.) 

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Saturday, March 23, 2019

अजीमगंज मंडन 
श्री नेमिनाथ जिनेन्द्र स्तवन
(ढाल-नीबडलीनी)

जगपति नेमि जिनंद प्रभु म्हारा, जग. 
वावीसम शासन धनी, गिरुवा गुणनिधि राज। 
समुद्रविजय शिवा नन्द प्रभु म्हारा, जग 
सांवल वरन सुहामणा, गिरुवा गुणनिधि राज. 
यादवकुल शणगार प्रभु म्हारा,
शंख लांछन प्रभु शोभता,  गिरुवा गुणनिधि राज।
सौरिपुर अवतार प्रभु म्हारा, 
अपराजित सुरलोक थी, गिरुवा गुणनिधि राज।
देह धनुष दस मान प्रभु म्हारा,  
रूप अनूप विराजता, गिरुवा गुणनिधि राज।
आऊ थिति परमान  प्रभु म्हारा,  
वरस सहस इक अति भलो, गिरुवा गुणनिधि राज। 
प्रभु म्हारा,  गिरुवा गुणनिधि राज।
नवयौवन वर नार प्रभु म्हारा,
उग्रसेन नृप नन्दनी  गिरुवा गुणनिधि राज।
नाव भव नेह निवार प्रभु म्हारा,
राजुल राणी परिहरि, गिरुवा गुणनिधि राज।
पशुआँ तणी पुकार प्रभु म्हारा,
सांभली करुणा रास भर्या, गिरुवा गुणनिधि राज।
रथ फेरी तिण वार प्रभु म्हारा,
फिर आया निज मंदिरे,
गिरणारे संयम ग्रह्यो, गिरुवा गुणनिधि राज।
देइ संवत्सरी दान प्रभु म्हारा,  गिरुवा गुणनिधि राज।
पामी केवलज्ञान प्रभु म्हारा,
संघ चतुर्विध थपियो, गिरुवा गुणनिधि राज।
पंच सयां छत्तीस प्रभु म्हारा,
मुनिवर साथे मुनिपति, गिरुवा गुणनिधि राज।
शिव पुहूता सुजगीश प्रभु म्हारा,
पद्मासन बैठा प्रभु, गिरुवा गुणनिधि राज।
मासखमण तप मान प्रभु म्हारा,
करि अणशण आराधना, गिरुवा गुणनिधि राज।
गढ़ गिरनार प्रधान प्रभु म्हारा,
तीन कल्याणक जिहां थया, गिरुवा गुणनिधि राज।
योगीश्वर शिरताज प्रभु म्हारा,
निरुपाधिक गुण आगरु, गिरुवा गुणनिधि राज।
अविचल आतमराज प्रभु म्हारा,
पाम्यो परमानन्द मैं, गिरुवा गुणनिधि राज।
सकरण वीरज अंत प्रभु म्हारा, 
निरुपाधिक गुण आगरु,गिरुवा गुणनिधि राज।
नगर अजीमगंज भाण प्रभु म्हारा,
नेमि जिनेश्वर साहिबा,गिरुवा गुणनिधि राज।
शुद्ध क्षमाकल्याण प्रभु म्हारा,
आतम गुण मुझ दीजिये  गिरुवा गुणनिधि राज।


उपाध्याय श्री क्षमा कल्याण जी ने दो सौ वर्ष से भी ज्यादा पहले यह भजन लिखा था. 


Jyoti Kothari,  the proprietor of Vardhaman Gems, Jaipur, representing Centuries-Old Tradition of Excellence in Gems and Jewelry. He is a Non-resident Azimganjite. 

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Sunday, February 24, 2019

कैसे बनी शहरवाली बोली? मुर्शिदाबाद जैन समाज की भाषा


कैसे बनी शहरवाली बोली? मुर्शिदाबाद जैन समाज की भाषा 

हम भौत दिन से इ ब्लॉग लिक्खें हैं किन्तु हरदम हिंदी नइ तो इंग्रेजी में इ लिक्खें. लेकिन मन में किया की इ  ब्लॉगपोस्ट ठो  शहरवाली बोली में इ लिक्खङ्ग। सबको शायत मालूम नइ है की शहरवाली बोली कैसे बना. अब तो बेसी भाग आदमी शहरवाली बोलना इ  छोड़ दिस है. हो सके नया लडक़ावाला लोग को तो इसका पता इ नइ हो.

जब दो अढ़ाई सौ वरस पहले हमलोग राजस्थान- मारवाड़ से हियाँ मुर्शिदाबाद  आयें थैं तब हमलोग का बोली मारवाड़ी इ था. मारवाड़ी हिंदी के तरे इ है और धरम का बई भी सब हिंदी में था. हियाँ बीकानेर से गुरु जी और सिरिपुज्जी लोग का भौत आना जाना था, उलोग पाठशाला में भी धरम और हिंदी पढ़ाते थे इससे शहरवाली बोली हिंदी से मिलता जुलता इ था. धरम का पढ़ने से संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश भाषा का शब्द भी इसमें मिला. फेर हियाँ आने के बाद नवाब और मुसलमान लोग के संग रहेने से उलोग का बोली उर्दू उसमे मिल गिया। हियाँ का आदमी लोग बंगाली था और बँगला बोलता था तो आस्ते आस्ते उसमे बंगला भी मिल गिया। अजीमगंज, जियागंज, बालूचर में रहने वाले लोग मज़े का पढ़े लिखे थे और अच्छा इंग्रेजी भी जानते थे. साहब लोग के संग भी हियाँ के बड़े आदमी लोग का अच्छा उठ बैठ था. सो हियाँ की बोली में इंग्रेजी भी मिक्स हो गिया. थोड़ा भौत फ़ारसी, तुर्की, आर्मेनियन, फ्रेंच भाषा का शब्द भी उसमे मिला. ऐसे कर के इत्ता जगे का शब्द, भाषा और बोली मिलके शहरवाली बोली बन गिया। किन्तु इसका कोई बैकारोन नइ  है, इसलिए इसको भाषा के गिनती में  नइ लिया जा सके.

४०-५० बरस पहले जब हमलोग अजीमगंज में रहते थें तब सबकोई अइ बोली में इ बोलता था. मेरा नानाबाड़ी कलकत्ते में झौरी साथ में है, हुवाँ तो सबकोई हिंदी इ बोलता था. छोटे में जब हमलोग नानाबाडी जातें तब हमलोग के बोली का सबकोई भौत मज़ाक उड़ाता था लेकिन हमलोग ठीक से हिन्दी नइ बोल सकते थें, तो सुनना पड़ता था और अच्छा नइ लगता था. अब बेसी भाग आदमी अजीमगंज जियागंज से भार रहने लग गिया है बोलके उलोग भी अब आस्ते आस्ते अपना बोली भूलने लग गिया। नया लड़काबाला लोग बेसी करके इंग्रेजी स्कूल में पढ़े और थोड़ा हिंदी और बांग्ला भी सीखे। घर में भी अब शहरवाली बोली का चलन काम हो गया है बोलके उलोग तो अपना भाषा मोटामोटी जाने इ नई.

हम भी ३५ बरस पैले जैपुर आ गियें थैं सो हियाँ की बोली इ बोलने लगैं किन्तु अजीमगंज के बोली से अभी भी प्रेम है बोलके आज इठो लिखने का मन हो गिया। भौत  दिन बाद लिखैं बोलके कुछ भूल होये तो ठीक कर लीजेगा. और हाँ, एक ठो बात और, आप लोग भी इसमें थोड़ा लिखिए तो अपना भाषा थोड़ा लोग को मालूम पड़ेगा. नया बच्चा लोग को भी थोड़ा इसब पढईये, और बोलना सिखइये तब तो अपना भाषा ज़िंदा रैगा।

शहरवाली शब्दों का वाक्य प्रयोग: मुर्शिदाबाद की भाषा भाग ७


Jyoti Kothari
(Jyoti Kothari is the proprietor of Vardhaman Gems, Jaipur, representing a centuries-old tradition of Excellence in Gems and Jewelry. He is a Non-resident Azimganjite.) 

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शहरवाली शब्दों का वाक्य प्रयोग: मुर्शिदाबाद की भाषा भाग ७

शहरवाली शब्दों का वाक्य प्रयोग: मुर्शिदाबाद की भाषा भाग ७ 

१. बेशी (बहुत) ओदा-खोदा (कुरेदना) करने से कुछ नहीं होगा। जो हमलोग को मालूम है उससे बेसी उल्लोग (उनलोग) को बी (भी) मालूम नई (नहीं) है.
२. उत्ता (उतना) टुकु (सा) खाइस (खाया) है.
३. कुएं से बैङ्गि में पानी पडिंदे में भर दो.
४. गोरु (गाय) को घांस (घास) और पाखी (चिड़िया) को चाबल दे दीजो (देना).
५. बड़ा भाई, मझला भाई, सझला (तीसरा) भाई, छोटा भाई, नन्हा भाई (बहुत छोटा,पांचवां)), फुच्ची (छठा) भाई और नन्हा-फुच्ची (सातवां) भाई सब कोई सझली भुआमा और नन्ही फुच्ची मासिमा के संग जात्रा (यात्रा) करने पालीताना गिया (गया) है.
६. बीकानेर में सिरि (श्री) पुजजी (पूज्यजी) म्हाराज (महाराज) का पुषाल (पौषाल, उपाश्रय) है. हुवाँ (वहां) उनके संग (साथ) भौत (बहुत) सारे गुरूजी (यति) लोग भी रहें (रहते हैं).
७. उसके मन में भौत छक्का पंजा (मायाचारी, कपट) है और सात पांच भी बेसी करे बोलके (इसलिए) उससे कोई भिड़ने नइ (नहीं) मांगे (मांगता है).
८. कोई भी मसाले के गुंड़े (चूर्ण, पाउडर) को बुकनी बोले. तरकारी सिझाने के पहले उसमे मसाले का बुकनी डालना चहिए?
९. भौत गरम है. इत्ता (इतना) सट-सट (नज़दीक-नज़दीक) के मत बैठो.
१०. बाबू को बुखार है, आज न्हलइयो (नहलाना) मत, खाली मु (मुँह)-हाथ धुला दीजो.
११. आज बदली (बादल) करके रक्खीस (रखा) है,  गुमस (उमस) है, लेकिन बरसात नइ होये.
१२. आंग (शरीर) हात (हाथ) में दरद (दर्द) होये (होता है) तो कबराज (कविराज-वैद्य) जी को दिखाओ नइ क्यों?
१३. गोटे (पुरे) बदन (शरीर) में कादा (कीचड़) माख (मल) के आया है.
१४. चाँई-मुलाइन (सब्ज़ी बेचनेवाली जाती विशेष) लोग से तरकारी (सब्जी) खरीद लियो? अच्छा जामुन ले के अइयो (आना) कल के तरे (तरह) खुदी जाम (जामुन की जंगली जाति, छोटा होता है) मत ले अइयो।
१५.  छत में एक ठो तीर और दो ठो बरगा  बदलाना है.  दागरेज़ी (मरम्मत) कराने के लिए मिस्त्री को तो बोल दियो किन्तु पायेट (मज़दूर) का बोलियो नइ. दूसरे छत के लिए सुरकी (सुर्खी) कम पडेगा थोड़ा राबिस भी ले लीजो. दीवाल का प्लास्टर आज नइ होगा क्योंकि मिस्त्री करनी तो ले आया रूसा लाना भूल गिया। पलस्तर हो जाये तो हात (हाथ) के हात पुचारा (पुताई) भी करवा लीजो (लेना).
१६. आज बड़ी कोठी के पुश्ते में सरभाव (सभी का) जीमण होगा.
१७. थोड़ा सा पैसा क्या हो गिया, अदराने (इतराने) लग गिया, बेसी (ज्यादा) बोली फूटने (बोलने) लग गिया। सोजा सोजी (सीधे सीधे) बोले तो इत्ता (इतना) घमंड हो गिया की......
१८. कडबेल (कपीठ) के पाचक (चूर्ण) से फुट्टापुड़ी खा लो.
१९. बाप दादे (बुजुर्गों) के जमाने से से देखते आये हैं नेचु (लीची) के झुक्के में २८ ठो नेचु , छाते (कमलगट्टा) के मुट्ठे में २५ ठो छाता होता था, आम तो बराबर इ २८ गंडा (चार) का सौ होये.
२०. चवारा ठो भौत दिन से बंद था, गोटे (पुरे) जाला धर गिया और एकठो कैसा गुमसानी (उमस) गंध भी हो गिया था.
२१. लड़काबाला (बच्चे) लोग को बोलियो उधिर (उधर) से नइ जाए, उ (उस) रस्ते (रास्ते) में पिच्छल (फिसलन) है गिरेगा तो गोटे (पुरे) आंग में क़ादा मख जागा।
२२. लालू हमसे बाज़ी (शर्त) लगाइस (लगाया) था की मोहनबागान जीतेगा किन्तु हार गिया।
२३ बग़ान (बगीचा) में एकठो नरंगी (नारंगी) का गाछ (पेड़) पोतीस (रोपा) था, किन्तु लगा नइ.
२४. बदमाईशी तो देखो, ढेला (पत्थर या ईंट का टुकड़ा) मार के कांच फोड़ दिस.
२५. बरात में गिये थैं हुवाँ (वहां) सब कोई तास खेलने लगे. बड़े लोग (वयस्क) रमी और स्वीप खेल रहे थे. और बच्चे लोग? तीन दो पांच, सात आठ, गधा लोडिंग, और गुलाम चोर. कोई कोई कोट-पीस भी खेल रा (रहा) था. तीन दो पांच में बुज़ को ले के बच्चे लोग में झगड़ा भी हो गिया। सबसे बेसी मजा बीबी धसानी (ब्रे) खेलने में आया था.
२६. कतली (ईंट- तास के खेल में) का छक्का खेलने में एक जने के पास झबड़े (हुकुम) का टिक्का (इक्का), साहेब (बादशाह), और कतली का बीबी (बेगम) आया था.
२७. घाट में माझी नई था, नउका (नाव) नई मिला तो गंगा जी हेल (तैर) के आ गिया।
२८. गल्ली (गली) ठो बरसात से एकदम सैंतसैंते (गीला गीला) हो गिया है.
२९. झड़ी-पानी (बरसात) का दिन है, मेघ (बादल) कर के रक्खीस है, गड़ गड़ भी करे हे, गंगा जी में ढेउ (तरंग) भी भौत (बहुत) है; अभी उ (उस) पार जाना ठीक नई.
३०. कल अक्खय (अक्षय) निधि का मौच्छव् (महोत्सव- वरघोड़ा) निकलेगा, सबकोई जरूर से अइयो (आना).
३१. उसके माथे में घाउ (घाव) हो गिया था बोलके नापित (नाइ) को दे के नैड़ा (गंजा) हो गिया।
३२. धरम चन्द जी के कबीले (विधवा) का ५ रुपिया चांदा (चन्दा) लिखा गिया था.
३३. छमछरी (संवत्सरी) का पड़कौना (प्रतिक्रमण) कियो (किया) थो (था)? सुत्तर (सूत्र- कल्पसूत्र) जी सुनियो ? (सुना क्या)?
३४. उ (वह) इंरेजि (अंग्रेजी) का बई (किताब) पढ़े (पढ़ रहा) हे (है).
३५. बाबाजी (ताऊजी) सूत (सो) गिये (गए) हैं.
३६. तामे (ताम्बे) के ततैड़े (टंकी या कढ़ाई) में पानी भरा हुआ है.
३७. पहले तो बेसी होम्बी तोम्बी (घमंड से बोलना) किस (किया) अब नैका (जैसे कुछ जानता न हो) सजके बैठा है.
३८. अबकी बरस इत्ता पानी बरसा की बान (बाढ़) आ गिया।
३९. लड़का ठो एकदम बिलल्ला हो गिया है, इत्ता बिहोद्दापना (बेहूदापन) करे की पूछो इ मत.
४०. फल सब झाँपी (बेत से बनी हुई ढंकने की) से ढांक के रखियो नइ तो मक्खी से भर जागा (जायेगा)।
४१. मेघराज बाबू हमलोग को हरदम मंडा (सन्देश जैसी छेने की मिठाई) खिलाते थें।
४२. छोटू उसको इत्ता करके बुझाइस (समझाया) तो भी मानिस (माना) नइ (नहीं).
४३. लण्ठन बुता (बुझा) के सुत (सो) जाओ. सीड़ी से चप (चढ़) के जाओगे तो उप्पर दुछत्ती है. हुवाँ से सामान ले के फेर नीचे नम (उतर) जइयो।
४४. रस्ते में देख के चलियो नइ तो गाड़ी से चापा (दब) पड़ जाओगे।
४५. अरे थोड़ा जल्दी करो, ऐसे शुटुर शुटुर (बहुत धीरे) करोगे तब तो हो गिया।
४६. बेटा, दूध गुटगुट (जल्दी से) कर के पी लो.
४७. इ देखो, सब घामड़ घिट्ट (घृनाष्पद ,गन्दा) कर दिस है.
४८. मोड़ी (नाली) से अभी कङ्गोजर (कानखजूरा) निकला था. 
४९. धनपत सिंह जी की कबीला (विधवा) ने पुशाल (उपाश्रय) के कहते में २० रूपया चिटठा भरा था।  
५०. एक दम नन्हा गिगले (एक दम छोटा बच्चा) के तरे करे हे. 
५१. उसके भौत कुटीचाली (कपटी) बुद्धि है.  
५१. तरकारी में धनिये का बुकनी (पिसा धनिया) डाल दियो?
५२. मुरब्बा बनाने के लिए तो एक गछिया (एक ही पेड़ का)) आम चहिये (चाहिए)। 
५३. माँ आज कंजाल (केले के पेड़ के तने का अंदरूनी भाग) का तरकारी बनाइन (बनाया) हैं। 
५४. खाते (कॉपी) के उप्पर (ऊपर) काली (स्याही) गिर गिया और पुरे लिभड़ (बुरी तरह फ़ैल) गिया (गया)।  
५५.  पानी में कल्का फुट गिया (उबाल आ गया) है, चुले (चूल्हे) से उतार लीजो (लेना). 


शहरवाली शब्दकोश (शब्दावली) Murshidabad Dictionary

शहरवाली शब्दों का वाक्य प्रयोग: मुर्शिदाबाद की भाषा भाग 6

शहरवाली बोली के कुछ और उदहारण: मुर्शिदाबाद की भाषा भाग ४

शहरवाली शब्दों का वाक्यों में प्रयोग: मुर्शिदाबाद की बोली भाग ३

शहरवाली शब्दों का वाक्य प्रयोग: मुर्शिदाबाद की बोली भाग २

शहरवाली शब्दों का वाक्य प्रयोग: मुर्शिदाबाद की बोली भाग १

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Jyoti Kothari, Proprietor, Vardhaman Gems, Jaipur represents Centuries-Old Tradition of Excellence in Gems and Jewelry. He is an adviser, Vardhaman Infotech, a leading IT company in Jaipur. He is also ISO 9000 professional. 


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