Thursday, July 16, 2009

सत्रह भेदी पूजा


सत्रह भेदी पूजा १६ वीं सदी के जैन कवि श्री साधू कीर्ति की संगीतमय रचना है। भारतीय शास्त्रीय (मार्ग) संगीत की इतनी उत्कृष्ट कोटि की कोई दूसरी रचना जैन भक्ति साहित्य में उपलब्ध नहीं है। यह हिन्दी में लिखी गई सब से प्राचीन जैन पूजा भी है। साधू कीर्ति अकबर प्रतिवोधक चौथे दादा साहब श्री जिन चंद्र सूरी के आज्ञा अनुयायी थे। वे श्वेताम्बर मूर्तिपूजक समुदाय के खरतर गच्छ आम्नाय के थे। 

संवत १६१८ ( ईश्वी सन १५६२) में अनहिलपुर में उन्होंने इस पूजा की रचना की थी। साधू कीर्ति प्रख्यात गायक हरिदास, बैजू बाबरा व तानसेन के समकालीन थे। तत्कालीन भारतीय मार्ग संगीत की उत्कृष्टता सत्रह भेदी पूजा में परिलक्षित होती है। इस पूजा में अनेक रागों का प्रयोग किया गया है। 

पूजा की भूमिका राग सरपदी में है जबकि पहली न्हवन पूजा में राग देसाख, सारंग व मल्हार का प्रयोग हुआ है। दूसरी विलेपन पूजा राग रामगिरी एवं विलावल में है व इसका दोहा राग ललित में गाया जाता है। तीसरी वस्त्र युगल पूजा राग गौडी व वैराडी में है। चौथी वासक्षेप पूजा का दोहा भी राग गौडी में लिखा गया है। इस पूजा का प्रथम चरण राग सारंग में है तथा दूसरा चरण राग गौडी व पूर्वी का मिश्रण है। पांचवीं पुष्पारोहन पूजा राग कामोद व कानडा में गाया जाता है। छठी मलारोहन पूजा का दोहा राग आशावरी में तथा पूजा का प्रथम चरण रामगिरी गुर्जरी राग में है। दूसरा चरण फिर से राग आशावरी में ही है। सातवीं वर्ण पूजा केदारी गौडी व राग भैरवी में है। आठवीं गंधवटी पूजा का प्रारम्भ दोहे के स्थान पर सोरठे से किया है एवं पूजा में राग सोरठ व सामेरी का प्रयोग किया गया है। नवमी ध्वज पूजा में वस्तु छंद का उपयोग किया है जिसे राग मेघ गौडी में गाया गया है। पूजा का दूसरा चरण राग नटटनारायण में है। दसवीं आभरण पूजा का दोहा राग केदार में गाया जाता है व पूजा का प्रथम चरण राग अधवास या गूढ़ मल्हार में। पूजा का दूसरा चरण पुनः राग केदार में ही है। ग्यारहवीं फूलघर पूजा का पहला चरण रामगिरी कौतकिया में जबकि दूसरा चरण शुद्ध रामगिरी में है। वाराहवी पुष्प वर्षा के दोहे को वर्षा से संवंधित राग मल्हार में पिरोया गाया है तथा इसका पहला चरण गूढ़ मिश्र मल्हार का प्रतिनिधित्व करता है। पूजा का दूसरा चरण भी मल्हार की ही एक अन्य जाति भीम मल्हार में गुम्फित है। तेरहवीं अष्ट मांगलिक पूजा कल्याण कारक होने से इसका दोहा राग कल्याण में लिया है। पूजा का दूसरा चरण भी कल्याण राग में ही है जबकि पहला चरण वसंत राग में। चौदहवीं धुप पूजा राग विलावल व राग मालवी गौडी में है। पंद्रहवीं पूजा गीत पूजा है जिसमे पहले आर्यावृत्त छंद में संस्कृत की रचना है व दुसरे चरण को श्री राग में प्रस्तुत किया गया है। सोलहवीं नाटक पूजा प्राकृत भाषा के शार्दुल विक्रीडित छंद से प्रारम्भ होता है जिसे राग शुद्ध नट में गाने का निर्देशन है। पूजा का अगला चरण राग नट त्रिगुण में है। सत्रहवीं वाजित्र पूजा राग मधु माधवी में गाया जाता है। पूजा का अन्तिम कलश राग धन्या श्री में है। 

इस प्रकार भारतीय मार्ग (शास्त्रीय) संगीत के विशिष्ट रागों में गुम्फित यह  भक्ति व श्रृंगार रस प्रधान रचना कुल १०८ कवित्त की है। इसे पढने वाले अब कम रह गए है। अजीमगंज जियागंज में आज भी यह पूजा प्रचलित है। आज इस दुर्लभ कृति के संरक्षण व पुनः प्रचलन की आवश्यकता है । इस दिशा में ठोस कदम उठाने की जरुरत है।

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2 comments:

  1. This is wonderful. A classic Puja. Thanks to Jyoti Kothari for this marvelous post.
    Anjali Kapadia

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  2. Anjali,
    Satraha Bhedi Puja is really a unique composition of Indian classical devotional music. It contains large numbers of "Rag and Ragini".

    Thanks for visiting and posting comment.

    Jyoti Kothari

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