मुर्शिदाबाद में जैन समुदाय अत्यंत धार्मिक एवं समृद्ध था। अतः विभिन्न गच्छों के साधू, साध्वी एवं यति गण यहाँ पधारते रहते थे। कुछ यति तो यहाँ स्थाई रूप से भी रहते थे।
मुर्शिदाबाद आकर बस्नेवालों में सेठ सर्व प्रथम थे। वे पायचन्न (पार्श्वचंद्र ) गच्छ के थे। उनके समय में पायचन्न गच्छ के साधुओं एवं का आगमन मुर्शिदाबाद में होता रहता था। बाद में अधिकांशतः खरतर गच्छ एवं तपागच्छ के साधू सध्विओं एवं यतिओ का ही पदार्पण यहाँ होता रहा है. इनमे से कई बड़े विद्वान् भी थे एवं उनलोगों ने अनेक रचनाएँ यहाँ पर रह कर की है.
तपागच्छ के महान आचार्य आत्माराम जी महाराज के प्रमुख शिष्य श्री कमल सूरी जी ने लगभग सौ वर्ष पूर्व अजीमगंज चातुर्मास किया था। राय बुध सिंह दुधोडिया परिवार ने उस चातुर्मास का लाभ लिया था। इसी प्रकार खरतर गच्छ के गणाधीश श्री सुखसागर जी महाराज के शिष्य श्री हरीसागर जी महाराज को अजीमगंज श्री संघ ने आचार्य पद प्रदान कर उनका चातुर्मास यहीं करवाया था. उसके बाद लम्बे समय तक यहाँ कोई चातुर्मास नहीं हुआ। नब्बे के दसक में फिर से यह सिलसिला चालू हुआ एवं जियागंज के दुगड़ परिवार की बेटी साध्वी श्री चारुयशा श्री जी का चातुर्मास अजीमगंज में हुआ। उसके बाद साध्वी हेम प्रज्ञा श्री जी का अजीमगंज एवं उनकी छोटी गुरु बहनों का जियागंज एक साथ चातुर्मास हुआ। उसके बाद अजीमगंज के ही सपूत आचार्य श्री पद्मसागर सूरी जी एवं साध्वी श्री शशिप्रभा श्री जी का चातुर्मास भी अजीमगंज में हुआ.
यद्यपि यहाँ साधू सध्विओं का चातुर्मास होता रहा है परन्तु शहरवाली समाज मुख्य रूप से यतिओ पर ही निर्भर रहा। बीकानेर के श्रीपूज्यजी की यहाँ बड़ी मान्यता थी। बीकानेर की बड़ी गद्दी से संपर्क जिन सौभाग्य सूरी के समय से ही प्रारंभ हो गया था। बाद में यह संपर्क इतना दृढ हो गया की बीकानेर की में के बाद श्रीपूज्यों का चातुर्मास अजीमगंज से ही प्रारंभ होता था। यह व्यवस्था आज तक प्रचलित है। श्री जिन चारित्र सूरी, जिन विजयेन्द्र सूरी, एवं जिन चन्द्र सूरी के अनेक चातुर्मास यहाँ पर हुए।
इसके अतिरिक्त बीकानेर गद्दी के एक आदेशी यति यहाँ पर हमेशा रहते थे एवं धार्मिक क्रियायों के साथ यहाँ की समाज व्यवस्था को सुचारू रूप से चलने में योगदान देते थे। अजीमगंज में श्री लक्ष्मीचंद जी यति एवं जियागंज में श्री प्यारेचंद जी यति को मैंने भी देखा है। बीकानेर के आदेशी यतियों के अलावा अन्य यति गण भी यहाँ रहते थे। संस्कृत भाषा के प्रकांड विद्वान् महा महोपाध्याय श्री हेमचंद जी एवं उनके शिष्य प्रशिष्य श्री करमचंद जी व किर्तिचंद जी अजीमगंज में आजीवन रहे. आपलोग विजय गच्छ के थे एवं कोटा गद्दी से संवंधित थे। इसके अतिरिक्त अजीमगंज में यति मोतीचंद जी एवं यति ज्ञानचंद जी भी स्थाई रूप से निवास करते थे।
श्रावकों में लोंका गच्छ के अनुयायियों की संख्या अधिक होने पर भी कभी किसी लोंका गच्छ के यति यहाँ पधारे ऐसा सुनने में नहीं आया है.
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(Vardhaman Gems, Jaipur represents Centuries Old Tradition of Excellence in Gems and Jewelry)
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