Sunday, October 26, 2014

रीति रिवाज: शहरवाली समाज में दिवाली


दिवाली पूजन 

शहरवाली समाज में दिवाली मानाने की अपनी ही परंपरा रही है जो की अन्य अनेक समाजों से अलग है. यहाँ दिवाली का धूमधाम कई दिन पहले से ही शुरू हो जाता था. हर जगह की तरह यहाँ भी दिवाली की सफाई कई दिनों पहले से शुरू हो जाती थी और पुरे घर की सफाई एवं रंग रोगन कराया जाता था.

इस त्यौहार पर बहन बेटियों को चीनी भेज कर देहली पूजने का न्योता दिया जाता था. धनतेरस के पहले बहन बेटियां पीहर आ कर वहां की देहली (चौखट) की पूजा करती थी. यह शाम के समय हुआ करता था और ऐसा माना जाता था की इससे उनके लिए पीहर के दरवाजे हमेशा खुले रहेंगे। देहली में चढ़ाया हुआ सामान फल मिठाई आदि घर के बच्चे लोग खाते थे साथ ही उस दिन बहन बेटियों को जीमा कर शकुन के रूप में कुछ रुपये दिए जाते थे.

दिवाली के उत्सव पर बड़े पैमाने पर मिठाई नमकीन बनाने का रिवाज था, बाजार से मिठाई बहुत काम ही आता था. नाइन पड्यांनी लोग आ कर घर की औरतों के साथ मिठाई बनवाती थी. इस मिठाई नमकीन में उनका भी हिस्सा होता था. दिवाली पर बहन बेटियों, रिश्तेदारों के घर मिठाई भेजी जाती थी. दीपावली पर खास तौर से जमाव, गुजिया, लड्डू, संकली आदि शहरवाल मिठाई बनती थी.

दिवाली के दिन सुबह से ही पुरे घर में खास काट अंगने में रंगोली (आल्पोना) बनाया जाता था. प्रायः कुंवारी लड़कियां रंगोली बनाने में उत्साह से भाग लेती थी. हर कमरे के बहार लक्ष्मी जी के चरण अंदर आते हुए बनाये जाते थे।  शाम को दिवाली पूजा जाता था. खास तौर से इस दिन हटरी (भगवन का समवशरण) की पूजा होतो थी. साथ ही गणेश एवं लक्ष्मी पूजन भी होता था. पूजा में चाँदी  सिक्कों का भी पक्षाल किया जाता था.

महावीर स्वामी के चौमुख देशना के प्रतीक स्वरुप चौघडा रखा जाता था जिसमे खोई भरा जाता था. चौघडे के ऊपर चौमुख दीपक रखा जाता था यह दीपक रातभर अखंड जलता था. दीपक के बुझने को अशुभ मन जाता था इसलिए रातभर उस्ली निगरानी राखी जाती थी और बारबार उसमे घी डाला जाता था.  दरवाली के दिए से काजल बनाना बड़ा शुभ मन जाता था और उस काजल को सबलोग लगते थे. नाइन पडयणि लोग भी लड्डू चढाने के बाद एकम की सुबह काजल लगाने आती थी और उन्हें शगुन के रूप में रुपये दिए जाते थे.

दूसरे दिन शुबह जल्दी उठ कर निर्वाण के उपलक्ष्य में लड्डू चढाने मंदिर जाते थे और गौतम रास का पाठ करते थे.

अजीमगंज - जियागंज के शहरवाली समाज में यतियों का बड़ा बोलबाला था और वो लोग मन्त्र तंत्र विद्या में निपुण होते थे. बहुत से लोग यतियों / श्रीपूज्यों से मन्त्र ले कर दिवाली के तीन दिन तेला कर उन मन्त्रों का जाप किया करते थे, यह जाप सिद्धिदाता माना जाता था. अगर श्रीपूज्य जी महाराज का चौमासा होता तो वो तेल कर जरूर से मन्त्र आराधना करते थे. तीन दिन तक एकांत बंद कमरे में रहते थे और किसी से भी नहीं मिलते। एकम के दिन लड्डू चढाने से पीला बंद कमरे से बहार निकलते और वसुधारा के पाठ से मंगलिक देते थे. इस मांगलिक का बहुत अधिक महत्व था और इसे सर्व कल्याणकारी माना जाता था.

दूज के दिन भाई दूज मनाया जाता था. भाई दूज के लिए बहन भाई को न्योता भेजती थी और भाई बहन के घर जाता था. इसमें खास बात ये थी की राखी पर बहन न्योता नहीं देती थी, भाई अपने आप बहन के घर जाता था परन्तु भाई दूज में बहन स्वर बुलावा भेजना आवश्यक था. परिवार में चचेरी, ममेरी, फुफेरी, दूर दूर तक के रिश्ते की बहनो से तिलक कराया जाता था. यदि किसी रिश्ते को निभाना संभव न हो और भाई रिश्ता न निभाना चाहे तो वो राखी पर नहीं जाता था और यदि बहन अपनी तरफ से न निभाना चाहे तो वो भाई दूज को न्योता नहीं भेजती थी.


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Sunday, October 5, 2014

How to develop rural tourism in Azimganj and Jiaganj?




Resurgence Hritage of Mushidabad

Gemstone idols in Azimganj Jain temple

Shaharwali dress
Government of India in the leadership of Prime Minister Narendra Modi is willing to develop rural tourism in India that can support livelihood of local people. I have suggested the government few measures how to develop rural tourism in Azimganj and Jiaganj.

Azimganj and Jiaganj are small towns in Murshidabad district in West Bengal and these are place of historic importance. The small towns are situated on two sides of river Bhagirathi - Ganga. There are large numbers of Jain and Hindu temples along with few palaces in these towns. We can develop the places for tourist attraction. There are tiny villages near the towns Azimganj and Jiaganj those could also be developed as tourist places and become tool to strengthen rural economy.

Baranagar, former capital of Rani Bhvani, a nearby village is famous for its Shiva temple. The Char Bangla and Bhavanishwar temples are famous for their terracotta arts. Large numbers of Jain temples with awesome architecture are added attraction (Kathgola and Kiriteshwari temples are few of those) with several tombs of Muslim period.

1. Sailing boats in Ganga is a great fun. Large numbers of oarsmen can be employed provided facilities for sailing boats in Ganga.

2. Large numbers of trees animals and birds (Flora and Fauna) are found in this area. A bio-diversity park can be developed for Eco-tourism.

3. The small town has cluster of Hindu and Jain temples making the place ideal for Spiritual tourism.

4. The district produces huge quantity of different varieties of mango. The district perhaps has been producing highest varieties of mangoes in the world. Mango festival in the summer can be organized to attract tourists.

5. Jain people living in the town known as Shaharwali have excellent recipes in their basket. These vegetarian foods are exclusive and made in the place only. Shaharwali food festival can be proved a bonanza for the tourists especially for the vegetarians and vegans.

6. Bank of Ganga, villages full of trees and birds creates a place beautiful, charming and healthy. This place can be proved as CONVALESCENT. Hence, Medical tourism can also be promoted.

7. World's longest swimming competition takes place in Murshidabad district (Ahiran Ghat, Jangipur to Sadarghat, Berhampur, 73 KM). Swimmers worldwide swims in River Bhagirathi Ganga and passes through Azimganj - Jiaganj. However, this great event is not extensively covered by the print and electronic media. Promoting this event will be beneficial for tourism in the place.

There are railway stations, bus stand and other facilities such as primary health center, market place, inn, motels  are available in the town.

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Saturday, October 4, 2014

भागीरथी गंगा की निर्मलता में शहरवाली समाज का योगदान




शहरवाली समाज सदा से ही महान कार्यों में अग्रणी रहा है. चाहे व्यापार हो, जमींदारी  हो, मंदिर बनवाना हो या साधर्मी वात्सल्य शहरवाली समाज का योगदान हमेशा ही सराहनीय रहा है. भारत के स्वतंत्रता संग्राम में भी यहाँ के जैनों ने बड़ी भूमिका निभाई है तभी तो महात्मा गांधी और नेताजी सुभाष जैसे लोग यहाँ पर आना पसंद करते थे.

भारत के प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने  नमामि गंगे के नाम से गंगा की सफाई का महा अभियान छेड़ा है. अजीमगंज और जियागंज भागीरथी गंगा के दोनों किनारे में बसे हुए हैं. शहरवाली समाज में नाव के सैल का बड़ा प्रचलन रहा है साथ ही गंगा जी में नहाने का भी. इस समाज से गंगा का बड़ा पुराना  नाता है. ऐसी स्थिति में हमारा कर्तव्य भी बनता है की गंगा की सफाई के काम में हम आगे आएं और फिर से दुनिया को बता दें की शहरवाली समाज देश हित के कार्य में सदा अग्रणी रहता है. भागीरथी गंगा की निर्मलता में हमारा योगदान अवश्य होना चाहिए।

अभी कुछ वर्षों पूर्व ही आदरणीय प्रणव मुखर्जी ने जंगीपुर को अपना चुनाव क्षेत्र चुना था और अजीमगंज उनके चुनाव क्षेत्र में ही आता है. प्रणव बाबू पहले भारत के वित्त मंत्री बने और फिर माननीय राष्ट्रपति। वित्त मंत्री रहते हुते उन्होंने इस जिले मुर्शिदाबाद के लिए  कुछ पैकेज भी दिए थे जिससे गंगा पर कुछ बांध आदि भी बनने थे.  हमें इस कार्य को और आगे बढ़ाना है.

हमारे प्रधान मंत्री का आह्वान है की जो भी काम करना हो सब मिलकर करें अकेली सरकार कुछ नहीं कर सकती है. केवल सरकार के भरोसे काम नहीं हो सकता। हम कुछ आगे बढ़ें कुछ कदम बढ़ाएं और सरकार को भी अपनी भागीदारी निभाने के लिए प्रोत्साहित करें।

मुझे पूरा विश्वास है की अजीमगंज जियागंज मुर्शिदाबाद का शहरवाली समाज इस पवित्र कार्य में अपनी पूरी भागीदारी निभा कर देश के आगे एक मिशाल कायम करेगा।

एक बात मैं विशेष रूप से कहना चाहूंगा की विश्व की सबसे लम्बी तैराकी प्रतियोगिता जंगीपुर से बरहमपुर तक (७३ किमी) आयोजित की जाती है. यह सम्पूर्ण यात्रा भागीरथी गंगा में मुर्शिदाबाद जिले में से हो कर ही गुजरती है. विश्व भर के तैराकों को इस प्रतियोगिता के दौरान अजीमगंज- जियागंज हो कर ही जाना पड़ता है. इसके साथ ही जियागंज से बरहमपुर तक १९ कीमी  की तैराकी भी होती है. यह प्रतियोगिता पुरे मुर्शिदाबाद जिले के लिए गौरव की बात है और इस गौरव को जीवित रखने के लिए शहरवाली समाज का योगदान बांछनीय है.


बंगाल के जैन तीर्थ: अजीमगंज, जियागंज, मुर्शिदाबाद


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Thursday, October 2, 2014

Puja at Kodamdesar temple at Azimganj on October 3

Kodamdesar temple at Azimganj

Kodamdesar Bhairav Ji, Kuldevata of Kothari family at Azimganj
Kodamdesar Bhairav Ji is Kuldevta of Kothari family of Azimganj. There was a small shrine of the Kuldevta where the Kothari ffamily used to worship their god. A new gorgeous looking temple was built in the place just few years back with contribution of the whole Kothari family. However, the family is indebted to Pradip Kothari, presently living in Hyderabad for his initiaves in building this temple.

Pradip Kothari S/O late Sri Padamchand Kothari has tremendous devotion to the god that inspires him to go Azimganj again and again. He will be organizing a grand Puja ceremony of Bhairav Ji, Kuldevata of Kothari family at Kodamdesar temple. The Puja will be organized on 3rd October, auspicious day of Maha Navami. This is fourth day of Navpad Oli and last day of Navratri.

Several family members will be joining the ceremony.

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Wednesday, September 3, 2014

Pradyot Sethia (Naya Babu) breathed his last in Jaipur


Heartiest condolence for Pradyot Sethia (Naya Babu) who breathed his last in Jaipur on August 31, 2014. His Uthavna took place at Dadabadi, Moti Doongri road, Jaipur on September 2 evening. He was a Shaharwali from Azimganj and I express deepest condolence on behalf of the community. He was son of Sri Keshri Chandji Sethia popularly known as Mama Sethia.

Naya Babu was a man of simplicity and devoted to Jainism. He was class fellow of Acharya Sri Padmasagar Suri.  He used to go Azimganj for observing 9 days Ayambil in Navpad Oli.

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Friday, March 14, 2014

शहरवाली होली के रंग और भांग कि तरंग

शहरवाली होली के रंग और भांग कि तरंग 


होली आ रही है और ऐसे मौके पर अजीमगंज कि होली याद न आये ये कैसे हो सकता है. होली तो भारत में सभी जगह खेली जाती है पर शहरवाली होली कि बात ही कुछ और थी. न सिर्फ रंग बीर बल्कि पुआ- पकोड़ी और भांग-ठण्डाई! होली के सांग और सैल को भला कौन भूल सकता है. अब तो सब सपने जैसा लगता है।  अजीमगंज छोड़े ३० वर्ष से भी ज्यादा हो गया अब तो बस याद शेष है. होली में बचपन में इतना हुड़दंग करते थे कि …

फाल्गुन शुक्ल पूर्णिमा के दिन होली खेल जाता था और उस दिन पिचकारी भर के रंग डालते थे. मुझे याद है कि मेरे पूज्य पिताजी स्वर्गीय श्री धीरेन्द्र पत जी कोठारी हम बच्चों के साथ होली का खूब आनंद लेते थे. वो जान बुझ कर नया सफ़ेद धोती और अद्दी का कुरता पहन कर सुबह सुबह सामने आ जाते थे. बच्चे तो सब होली के दिन पुराना कपडा पहनते थे।  सफ़ेद नया धोती कुरता देख हमारा मन ललचा जाता था पर थोडा डर भी लगता था. लेकिन हिम्मत कर के मैं उन पर रंग दाल देता था और वो मुस्करा देते थे.

माँ पूवे बनती थीं होली के रंग भरे हाथों से पूवे पकौड़ी खाने का जो मजा… बाल्टी भर रंग घुले पानी किसी को नहला देना। … बलून और मोम से बनाया कुमकुम और फिर रंग छुड़ाने के लिए घंटों गंगा जी में नहाना

दूसरे दिन अबीर से खेलते थे. बड़ों के पैर में अबीर डाल उनसे आशीर्वाद लेते थे और बड़े भी बच्चों के सर पर अबीर डाल देते थे. बराबर कि उम्र वालों के मुह में अबीर मल दिया जाता था. होली के सैल में रामबाग जाते थे वहाँ जलेबी बनती थी कभी कभी दाल बाटी भी.कोई अगर ठंडाई के साथ भांग खा केता तो फिर अलग ही मज़ा आता था. होली में सांग भी सजते थे और होली का जुलुश भी निकलता था. घर में जमाई आने पर केशर गुलाब जल से चांदी के गुलाब पाश से होली खिलाया जाता था

हम लोगों ने नहीं देखा पर पहले शहरवाली समाज में सात आठ दिन तक होली खेल जाता था. श्री निर्मल कुमार सिंह जी नौलखा होली के बहुत शौक़ीन थे और शान से, रईसी से होली खेल करते थे.

होली कि बहुत बहुत शुभ कामनाएं 
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