Tuesday, January 31, 2012

शहरवाली शब्दकोश (शब्दावली) Murshidabad Dictionary


 शहरवाली समाज की अपनी अलग ही बोली थी. यह बोली बड़ी मीठी लगती है. यह बोली हिंदी, मारवाड़ी, उर्दू, बंगाली एवं अंग्रेजी भाषा का मिलाजुला रूप है. इसमें कहीं हिंदी का शब्द व बंगाली का व्याकरण है तो कहीं उर्दू शब्दों को हिंदी के व्याकरण में डाला गया है. कहीं कहीं इस बोली ने अपने आपको अपने ही अंदाज़ में विकसित किया है.  शहरवाली समाज को ठीक तरह से जानने के लिए इसकी बोली को जानना जरुरी है. यहाँ पर कुछ शहरवाली बोली के शब्द हिंदी अर्थ के साथ दिया जा रहा है. 

Murshidabad Dictionary
शब्दकोश (शब्दावली) 
इ पार : इस पार 
ऊ पार: उस पार 
चपना : चढ़ना 
नमना :  उतरना
जाङ : जायेंगे, जाउंगा
आमङ : आऊंगा, आयेंगे
खाङ: खाऊंगा
सुतना: सोना
बिलायती मिटटी: सीमेंट
हम    : मैं
हमलोग : हम 
नउका : नाव 
खाने का : मिठाई, नमकीन 
ड्योंठा: मठरी 
कलाई : उड़द 
हूँआँ : वहां 
हिंयां : यहाँ
चट्टी : चप्पल
बूट : चना
कद्दू: घिया
बंटा: कटोरदान
गमला: तसला
नाली: पानी की झारी
सपरिआम: अमरुद
कौंला : संतरा
बोड़: बेर
शरीफा: सीताफल
तरकारी: सब्जी
बीबीजी: ननद
बाईजी:  मिश्रानी
करछुल: करछी
चिमचा: चम्मच
बेशी (बहुत)
ओदा खोदा (कुरेदना)
उल्लोग (उनलोग)
 बी (भी)
 नई (नहीं)
 उत्ता (उतना)
टुकु (सा)
खाइस (खाया)
बैङ्गि (पानी भरने के लिए कनस्तर ले जाने का डंडा)
गोरु (गाय)
घांस (घास)
पाखी (चिड़िया)
दीजो (दे देना).
सझला (तीसरा)
फुच्ची (छठा)
नन्हा फुच्ची (सातवां) भाई
जात्रा (यात्रा)  गिया (गया)
सिरि (श्री)
 पुजजी (पूज्यजी)
 म्हाराज (महाराज)
पुषाल (पौषाल, उपाश्रय)
 हुवाँ (वहां)
 भौत (बहुत)
रहें (रहते हैं).
छक्का पंजा (मायाचारी, कपट)
बोलके (इसलिए)
भिड़ने (लड़ने)
नइ (नहीं)
मांगे (मांगता है).
इत्ता (इतना)
सट सट (नज़दीक-नज़दीक)
न्हलइयो (नहलाना)
 मु (मुँह)
बदली (बादल)
रक्खीस (रखा)
गुमस (उमस)
आंग (शरीर)
हात (हाथ)
दरद (दर्द)
होये (होता है)
कबराज (कविराज-वैद्य)
गोटे (पुरे)
बदन (शरीर)
कादा (कीचड़)
माख (मल)
चाँई-मुलाइन (सब्ज़ी बेचनेवाली जाती विशेष)
तरकारी (सब्जी)
अइयो (आना)
तरे (तरह)
खुदी जाम (जामुन की जंगली जाति, छोटा होता है)
दागरेज़ी (मरम्मत)
पायेट (मज़दूर)
सुरकी (सुर्खी)
हात (हाथ)
पुचारा (पुताई)
सर्भाव (सभी का) जीमण
अदराने (इतराने)
बोली फूटने (बोलने)
सोजा सोजी (सीधे सीधे)
इत्ता (इतना)
कडबेल (कपीठ)
पाचक (चूर्ण)
नेचु (लीची)
छाते (कमलगट्टा)
गंडा (चार)
लड़काबाला (बच्चे) लोग
उधिर (उधर)
उ (उस)
रस्ते (रास्ते)
पिच्छल (फिसलन)
गोटे (पुरे)
आंग (शरीर)
क़ादा (कीचड)
मख (लग)
बाज़ी (शर्त)
लगाइस (लगाया)
बग़ान (बगीचा)
नरंगी (नारंगी)
गाछ (पेड़)
पोतीस (रोपा)
ढेला (पत्थर या ईंट का टुकड़ा)
बड़े लोग (वयस्क)
रा (रहा)
कतली (ईंट- तास के खेल में)
झबड़े (हुकुम)
टिक्का (इक्का)
साहेब (बादशाह)
बीबी (बेगम)
माझी (नाविक)
नउका (नाव)
हेलना  (तैरना)
गल्ली (गली)
झड़ी-पानी (बरसात)
मेघ (बादल)
ढेउ (तरंग)
अक्खय (अक्षय)
मौच्छव् (महोत्सव- वरघोड़ा)
अइयो (आना).
घाउ (घाव)
नापित (नाइ)
नैड़ा (गंजा)
कबीला (विधवा)
चांदा (चन्दा)
छमछरी (संवत्सरी)
पड़कौना (प्रतिक्रमण)
उ (वह)
 इंरेजि (अंग्रेजी)
बई (किताब)
पढ़े (पढ़ रहा)
हे (है).
बाबाजी (ताऊजी)
सूत (सो)
तामे (ताम्बे)
ततैड़े (टंकी या कढ़ाई)

शहरवाली शब्दों का वाक्य प्रयोग: मुर्शिदाबाद की बोली भाग


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शहरवाली समाज के हिंदी वेब पन्नों की सूचि

 

शहरवाली समाज के हिंदी वेब पन्नों की सूचि  

मैंने इस ब्लॉग में अंग्रेजी एवं हिंदी दोनों भाषाओँ का प्रयोग किया है. कुछ लोग हिंदी पढना पसंद करते हैं तो कुछ लोग अंग्रेजी. कुछ वातें हिंदी में ही लिखना सुविधाजनक भी होता है जैसे रीति रिवाज़ से संवंधित बातें. कुछ चीजें हिंदी में ही लिखी जा सकती है जैसे पहेलियां. इन वातों को ध्यान में रखते हुए एवं अलग अलग भाषा के पाठकों को देखते हुए हिंदी एवं अंग्रेजी दोनो भाषाओँ का प्रयोग किया गया है. 

 

दोनों ही प्रकार के पाठकों को ध्यान में रखते हुए इस ब्लॉग को लिखा जाता रहा है. जो लोग हिंदी पढना पसंद करते हैं उनलोगों के सुविधार्थ यहां हिंदी वेब पन्नों की सूचि दी जा रही है. मुर्शिदाबाद एवं शहरवाली समाज को जानने के लिए ये पन्ने उपयोगी हो सकते हैं. कृपया निचे दिए गए लिंक्स पर क्लीक करें. 

 

मुर्शिदाबाद में आम की किस्में

 

शहरवाली समाज में आम खाने की कला

 

अजीमगंज जियागंज में नीमस, पीठा और मेवा सलोनी खिचड़ी खाने का मौसम

 

मुर्शिदाबाद की विरासत बचाने का प्रयास: मुर्शिदाबाद हेरिटेज डेवलपमेंट सोसायटी

 

अजय बोथरा एवं रविन्द्र श्रीमाल तुलापट्टी, पंचायती मंदिर कोलकाता के लिए निर्वाचित

 

अजीमगंज श्री नेमी नाथ स्वामी स्तवन

 

अजीमगंज दादाबाडी में खात मुहूर्त व शिलान्यास भाग 2

 

अजीमगंज दादाबाडी में खात मुहूर्त व शिलान्यास भाग १

 

अजीमगंज दादाबाडी में भैरव जी का उत्थापन

 








कुछ रीति रिवाज़: जापा और जनम 

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रीति रिवाज़: मृत्यु एवं शोक


मृत्यु एवं शोक जीवन की एक अभिन्न प्रक्रिया है जिसे कोई नहीं चाहता परन्तु यह अवश्यम्भावी है. मुर्शिदाबाद के शहरवाली समाज में मृत्यु एवं शोक के  अपने  रीति रिवाज़ हैं. 

किसी व्यक्ति की मृत्यु होने पर पहले उसे स्नान करवा कर अर्थी में उसी प्रकार ले जाया जाता है जैसे अन्य सभी स्थानों पर.  स्मशान में मृत देह को जलने के तत्काल बाद उसे ठंडा कर दिय्स जाता है एवं अश्थी व अवशेषों को वही गंगा में प्रवाहित किया जाता है. मृत्यु के बाद जहाँ मृत देहको लेटाया गया था वहां सर के स्थान पर आटे से गोला बनाया जाता है एवं उस पर थाली ढक कर वहां दीपक जला दिया जाता है. बाद में थाली उठा कर आटे पर बना निशान देखा जाता है. ऐसा मन जाता है की आटे पर बना निशाण अगली गति की सुचना देता है. 
मृत्यु के तीसरे दिन उठावना होता है. उठावने में पहले सब लोग घर पर इकठ्ठा होते हैं उसके बाद सब मिलकर मंदिर व पौशाल जाते हैं. वहां पर यति जी या कोई श्रावक शांति का पाठ करते हैं. फिर सब लोग घर लौट आटे हैं. 

पांचवें या सातवें दिन ठंडा बार देख कर न्हावन  किया जाता है. उसमे घर के सब लोग नाख़ून, बाल बगैरह कटवाते हैं, घर की पूरी धुलाई होती है एवं नहा कर सब मंदिर जाते हैं.

१२ दिन तक शोक रखा जाता है एवं समाज के लोग बैठने आत़े हैं. शोक के समय घर वाले सर पर पल्ला लेते हैं. औरतें गुलाबी साड़ी पहनती है. बैठने आने वाली समाज की औरतें भी गुलाबी साड़ी पहन कर आती है. 

शोक निवारण के लिए पगड़ी बदलाई व वेश पलटाई होती है. लड़के के सुसराल वाले पगड़ी व वेश बदलवाते हैं. १३ वें दिन मंदिर में बारह व्रत की पूजा पढ़ाई जाती है.  आम तौर पर मृयु भोज नहीं होता है एवं शोक के समय किसी प्रकार का लें दें भी नहीं होता. यह शहरवाली समाज की एक बहुत अच्छी प्रथा है.

शोक के बारह दिन तक समाज के सब घरों से खाना भेजा जाता है और घर के एवेम बहार से आने वाले लोग वही खाते हैं. पहले तो १२ दिन तक घर में चूल्हा भी नहीं जलता था. मृत्यु के समय जहाँ अन्य सभी स्थानों व समाजों में मरनेवाले के ऊपर सब को खिलाने पिलाने व दें लें का बोझ पड़ता है वहीँ शहरवाली समाज में समाज के लोग उस परिवार के खाने पीने का इंतजाम करते हैं. ये एक बहुत ही अच्छी प्रथा है एवं इसका अनुकरण अन्य समाजों द्वारा भी किया जाना चाहिए.



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Useful and informative comments reproduced


People are interacting through this blog and I am glad viewing these comments.  Some comments carry useful information and I am posting these comments here so that readers can know more about Shaharwali society. I will be obliged if you provide some information about Shaharwali society of Azimganj, Jiaganj and Murshidabad.
Your contribution will help growing this blog. Thanks.

View some useful comments:

1.  Hi, I must congratulate you personally for this initiative. Nice to visit this site and feel the pulse of Jiagung. I am Prabir Dugar, son of Late Shri Benoy Chandji Dugar from the family of Hira Chandji Dugar, renowned Artist. My Babaji was Late Shri Indra Dugar. I am married to Suchita, d/o Shri Sajan Singhji Nahar. My sister in law Rita Parson married to Dr Narendra Parson is residing at LA. We live in Mumbai and my youngest Sister in law is also at Thane, Mumbai.

we have three daughters Tulika (married to Siddharth Bothra, Director Finance with T Mobile, of Gauhati with a son Rahul age 8 and daughter Rymah age 8 months)settled at Seatlle. Aloka/Sarika (married to Nilesh Parson working as a Principal with Microsoft and with a son Aatish age 8). The youngest Preetika is married to Comander Rohit Dalaya (Pilot with Air India). I am excited to be in touch with our Shaharwalis and keep the rich culture and finesse alive.


Prabir Dugar

2.  Hi Jyoti Bhai,

great to see this site blog here.You have been spear heading the documentation of this Jain clan from West Bengal very nicely.

I wish to add here the details of whatever I know.
Bhandia family in Kolkata is a well known Johri Saath group who have been renowned for their Jewellery and Gem Stone business.

My Grandfather Late Sri Puran Chandji Bhandia ( Johri ) Married as his second wife Smt. Suhag Sundari from the Kothari Family of Guahati who belonged to the Jiyaganj Azimganj Clan of Jains. I am the last grandson of her last son Late Shri.Kiron Singhji Bhandia residing in Coimbatore in Tamil Nadu associated in Jewellery and Textile Business. My Elder Brother Naresh Bhandia lives in Bangalore associated in manufacturing of PP Woven Sacs required in the cement industry. I will be glad to know more and even contribute to the efforts you are taking. Please feel free to get in touch. I have a Family histry Tree for our family contributing data of 13 generations. I will be happy to put in inputs in it if you have any.
thanks and regards

Dinesh Kumar Bhandia

3.  Wow! This is awesome. I am settled in the USA, Tulika Dugar daughter of Pravir Dugar/Suchita Dugar and grand daughter of Late Shri Benoy Dugar and Suhag Dugar. This is a pleasure to connect with people from our heritage. Brings back some fresh memories even though long long time ago. My husband Siddharth and I are trying our best to keep our sheherwali culture alive by talking in the Azimganj-Jiaganj dialect. We love it and our children also love it.

This is awesome. My email is tulika.dugar@gmail.com. I look forward to hearing back from you and so happy we can do this.

Thank you once again!
 Tulika Dugar

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Thursday, January 26, 2012

अजीमगंज जियागंज में नीमस, पीठा और मेवा सलोनी खिचड़ी खाने का मौसम

 ये ठन्डे (सर्दी) का मौसम है. सबलोग निहाली (रजाई) ओढ़कर सो रहे हैं. ये मौसम अजीमगंज जियागंज के जैन समाज में  में नीमस, पीठा और मेवा सलोनी खिचड़ी खाने का मौसम होता है. शहरवाली रईस लोग खाने पीने के बहुत शौकीन थे और बढ़िया बढ़िया खाने की चीजें यहाँ पर बनती थी. ठन्डे के दिन में भोरे भोर नीमस खाने का मज़ा ही कुछ और है.

याद आता है जब भोरे भोर माँ या दादीमा सुते हुए को उठा देती थीं और बोलती थीं नीमस खा लो. जब हम बच्चे थे तब रात को औंटाया हुआ दूध रात को खुले छत में कपडे से बांध कर रख दिया जाता था. उस को ओस में रखा जाता था. सुबह उस दूध को घोंटा जाता था जिससे फेन निकलता था. उस फेन में इलाइची, केशर और गुलाबजल डाल कर कटोरे में दिया जाता था.

इसी तरह से खाने के समय पीठा बनता था. मीठा बनता था मावे से और नमकीन भापिया, दाल का. जब हूँ वहां रहते थे तब तो पीठे का न्योता भी होता था और उसमे बाई बेटी को जरूर बुलाया जाता था.

इसके साथ ही वहां मेवा सलोनी का खिचड़ी भी बनता था. मेवे का खिचड़ी मीठा होता था जिसमे बिदाम, पीसता, इलाइची और केशर डलता था. काजू और अखरोट नहीं डाला जाता था.  सलोनी का खिचड़ी मटर से बनता था. यह खिचड़ी सब जगह बन्ने वाले पुलाव से अलग था क्योंकि इसमें दही डाला जाता था. दही से इसमें थोडा खट्टापण भी आता था जो इसके स्वाद को बाधा देता था.

अब भी शहरवाली समाज में ये चीजें बनती है. जो लोग अब बहार रहने लग गए हैं वो लोग भी शायद बनाते होंगे. यहाँ जयपुर में मैंने लोगों को कई बार ये सब चीजें खिलाई है और वो लोग बहुत पसंद करते हैं.

(इस ब्लॉग में हम जान के थोडा बहोत शहरवाली बोली लिखा है. पूरा ठीक हिंदी में नहीं लिखा है)
अजीमगंज शहरवाली साथ का खाना

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Wednesday, January 25, 2012

Rai Budh Singh Bahadur and Raja Bijay Singh Schools


RBSB High School, Azimganj
 Photo curtsy: Suraj Nowlakha

 Rai Budh Singh Bahadur Dudhoria (Badi Kothi, Azimganj) was a famous Shaharwali Zemindar in Azimganj. A school was established on his memory. It was a primary school that was upgraded to a higher secondary school. It was the only high school (RBSBHSM) at Azimganj till 1965.

Large numbers of students studies in the school including me. Rai Budh Singh Bahadur primary school is situated behind Badi Kothi and opposite to Keshar Kumari Balika Bidyalaya at Azimganj City. RBSB High school is situated at Baraduari on way to Don Bosco school. The high school is near Azimganj Jn.

Both the schools have a track record of good result. RBSB schools at Azimganj are presently managed by the government.

 Raja Bijay Singh Dudhoria of the same family had also founded Edward Coronation Institute at Jiaganj. Name of the institute was changed later to  Raja Bijay Singh Bidyamandir. It is the most famou senior secondary schools.


Raja Bijay Singh Dudhoria

Raja BIJOY SINGH Bahadur, Zamindar of Azimganj 1900/1933, born in November 1879, educated privately under the tuition of Babu Abinash Chandra Das, M.A., B.L.; having attained his majority on 22nd December 1900, he took charge of his estate; he was nominated as Commissioner for Azimganj Municipality in 1903 and re-elected in 1909; Vice-President of the All-India Jain Conference in December 1904; he was appointed Honorary Magistrate of the independent Lalbagh Bench in Murshidabad in January 1907; he was granted the title of Raja in June 1908 in recognition of his public services, liberality and high personal character; Member of the District Board, Murshidabad; Member of the executive committees of the Imperial League, the King Edward Memorial Fund and of the British-Indian Association of Calcutta where he was Vice-President in 1915; married in February 1894, the youngest daughter of Rai Dhanpat Singh Bahadur of Baluchar, and had issue, one daughter. He died 1933.
Kumari (name unknown), married Babu Srichand Nahata of Baluchar. 


(Information about Raja Bijay Singh is provided by Suraj Nowlakha)

Famous people from Azimganj Part 1
Famous people from Azimganj Part 2
Famous people …….. Part 3
Famous People..........Part 4
Famous People..........Part 5
 

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